नई दिल्ली, 22 जनवरी (आईएएनएस)। आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विचारों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि किरण बेदी जिन विचारों व मूल्यों के लिए जानी जाती हैं, उनकी पार्टी उसके ठीक विपरीत है।
नई दिल्ली, 22 जनवरी (आईएएनएस)। आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विचारों को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार किरण बेदी को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि किरण बेदी जिन विचारों व मूल्यों के लिए जानी जाती हैं, उनकी पार्टी उसके ठीक विपरीत है।
पार्टी की एक जनसभा में भाग लेने जा रहे केजरीवाल ने एक साक्षात्कार के दौरान आईएएनएस से कहा, “कई मुद्दे हैं। मैं इस बात से अचंभित हूं कि उन्होंने उस पार्टी के साथ सामंजस्य कैसे बिठाया और वह अपने बारे में लोगों को क्या जवाब देंगी।”
केजरीवाल ने कहा, “उनके भाजपा में जाने को लेकर मैं आश्चर्यचकित हूं, क्योंकि करण बेदी कहती रही हैं और जिसके लिए वह जानी जाती हैं, भाजपा उनकी सोच के ठीक विपरीत है।”
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ इस बार ‘करो या मरो’ की आक्रामकता के साथ चुनाव लड़ रहे केजरीवाल ने कहा कि उन्हें इस बात का अहसास है कि पिछले साल 49 दिनों की सरकार चलाने के बाद उनके इस्तीफे से मध्यवर्ग के कुछ लोगों का उनसे मोहभंग हुआ था, लेकिन इस्तीफे का कारण जानने के बाद अब वे लोग भारी तादाद में उनकी पार्टी के पक्ष में आ गए हैं।
उन्होंने कहा, “किरण बेदी महिला सुरक्षा की बात करती हैं। लेकिन मैं उनसे पूछता हूं कि आप अपने कदम को न्यायोचित कैसे ठहरा सकती हैं, क्योंकि आप जिस पार्टी में आप गईं उसके नेतृत्व वाली सरकार के कैबिनेट में शामिल एक व्यक्ति पर दुष्कर्म का आरोप हो?”
46 वर्षीय अरविंद केजरीवाल व 65 वर्षीय किरण बेदी वर्ष 2011 में हुए अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार-रोधी जन लोकपाल आंदोलन का प्रमुख हिस्सा थे। जब राजनीतिक पार्टी बनाने की बात चली, तब दोनों के रास्ते जुदा हो गए। किरण ने कहा था कि वह राजनीति में जाना नहीं चाहतीं।
दिल्ली में विधानसभा चुनाव की तारीख की घोषणा होते ही किरण बेदी पिछले सप्ताह भाजपा में शामिल हो गईं। 72 घंटों के अंदर पार्टी ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित कर दिया। कयास लगाया जा रहा था कि पार्टी किरण को अरविंद के खिलाफ नई दिल्ली सीट से लड़ाएगी, लेकिन उन्होंने मंगलवार को कृष्णानगर विधानसभा सीट से नामांकन दाखिल किया। कृष्णानगर डॉ. हर्षवर्धन का क्षेत्र रहा है और इसे भाजपा के लिए ‘सुरक्षित’ माना जा रहा है।
केजरीवाल ने कहा, “वह (किरण बेदी) पारदर्शिता के लिए जानी जाती हैं, लेकिन उनकी पार्टी अपनी फंडिंग को पारदर्शी नहीं रखना चाहती। भाजपा हर पार्टी से ज्यादा पैसे खर्च करती है, मगर इतने पैसे उसके पास कहां से आ रहे हैं, यह कभी नहीं बताती।”
उन्होंने कहा, “हकीकत जानने के बाद मध्यवर्ग के लोग भारी तादाद में आप के पक्ष में आ रहे हैं। राष्ट्रीय राजधानी में इतना भ्रष्टचार शर्म की बात है। लोग घूसखोरी से तंग आ चुके हैं। मैं हमेशा ईमानदार रहा हूं। लोगों को मुझ पर पूरा भरोसा है, मैंने 39 दिनों में घूसखोरी बंद की थी, यह लोग देख चुके हैं।”
केजरीवाल ने कहा, “हां, मैंने अगस्त-सितंबर में लिए गए साक्षात्कारों के दौरान स्वीकार किया था कि मध्यवर्ग हमसे खफा है।”
आप के मुख्यमंत्री उम्मीदवार ने कहा, “लेकिन अब ऐसा नहीं है। लोग दिल्ली नगर निगमों पर काबिज भाजपा का भ्रष्टाचार देख रहे हैं। लोगों को सारा माजरा समझ में आने लगा है। अब ज्यादा से ज्यादा लोग कह रहे हैं कि आप को एक मौका और मिलना चाहिए। दिल्ली आखिर राष्ट्रीय राजधानी है, यहां के लोग बहकावे में नहीं आते, मुद्दों पर वोट कर पूरे देश के सामने मिसाल पेश करते हैं।”
दिसंबर 2013 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव में उतरी आप से लोग उतना रूबरू नहीं थे, फिर भी 70 में से 28 सीटें जीतकर आप ने सबको अचंभे में डाल दिया था और इसे के साथ कांग्रेस के 15 साल के शासन का अंत हो गया था।
केजरीवाल ने कहा, “उस समय हम नए थे। अब हमें 99.9 फीसदी लोग जान चुके हैं। हम अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं।”
उन्होंने कहा, “अपने मात्र 49 दिनों के शासन के दौरान हमने अपने तमाम वादे पूरे किए। चाहे वह बिजली की दर आधी करनी हो, मुफ्त पानी देने की बात हो। भ्रष्टों को सबक सिखाने की बात हो या खाद्य पदार्थो की कीमतें कम करने की बात हो।”
यह पूछने पर कि क्या 49 दिनों की सरकार चलाने के बाद इस्तीफा देना उनकी गलती थी, केजरीवाल ने कहा, “हां यह गलती थी। गलती यह थी कि सरकार बनाने से पहले हमने जनता की राय ली थी कि कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाएं या नहीं, लेकिन जन लोकपाल विधेयक पर कांग्रेस के हाथ खींच लेने के बाद इस्तीफा देने से पहले जनता से नहीं पूछा, भावावेश में आ गया। जब कांग्रेस कोई विधेयक पारित ही नहीं होने देगी तब ऐसी सरकार चलाकर क्या करेंगे।”
उन्होंने कहा, “राजनीति में हमने एक चीज सीखा कि आपको कभी एक झटके में इस्तीफा नहीं देना चाहिए। यह बात और है कि कई लोग कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते, फजीहतों के बाद भी कुर्सी से चिपके रहते हैं।”
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।