उत्तर प्रदेश सियासत की आग में जल रहा है। राज्य की समाजवादी सरकार जहां प्रतिपक्ष के हमले को लेकर बचाव की मुद्रा में दिखती है, वहीं विपक्ष पूरी क्षमता से कैराना की सियासी पिच पर 20-20 मैच खेल रहा है, क्योंकि राजनीतिक लिहाज से यूपी सबसे अहम और बड़ा राज्य है। 2017 में यहां विधानसभा चुनाव का महायज्ञ होना है।
उत्तर प्रदेश सियासत की आग में जल रहा है। राज्य की समाजवादी सरकार जहां प्रतिपक्ष के हमले को लेकर बचाव की मुद्रा में दिखती है, वहीं विपक्ष पूरी क्षमता से कैराना की सियासी पिच पर 20-20 मैच खेल रहा है, क्योंकि राजनीतिक लिहाज से यूपी सबसे अहम और बड़ा राज्य है। 2017 में यहां विधानसभा चुनाव का महायज्ञ होना है।
चुनाव के लिहाजा से यह सब लाजमी है। मथुरा सत्याग्रह के बाद अब शामली जिले का कैराना शहर हिंदू परिवारों के पलायन को लेकर मीडिया और राजनीति की सुर्खियों में हैं। यह दिल्ली से तकरीबन 125 किलोमीटर पर स्थित है। कैराना का पलायन सिर्फ राजनीति है, ऐसा भी हम कह नहीं सकते। राजनीति की आग में जो जमीनी मसले उठाए गए हैं उसका जबाब सरकार के पास नहीं है।
प्रतिपक्ष, प्रशासन और मीडिया ने जो बात उठार्द है, उसमें कुछ तथ्यगत सवाल कुरेदते हैं और सरकार पर पर सवाल खड़ा करते हैं। यूपी में जब भी राजनीतिक बवंडर आता है, उसका केंद्र पश्चिमी यूपी होता है। बात चाहे मुजफ्फरनगर दंगों की हो या फिर बिहासड़ा में गोमांस की बात या फिर मथुरा सत्याग्रह। घर वापसी या ऑनर किलिंग.. अबकी यह आग भी शामली से उठी है।
राजनीतिक लिहाज से पूर्वी यूपी के बजाय पश्चिम की जमीन अधिक उर्वर है। अधिकांश घटनाओं में राजनीति का मुद्दा भी हिंदू और मुस्लिम आधारित रहा है, क्योंकि राजनीति में ‘धर्म’ सबसे बिकाऊ बाजारवाद पर आधारित विषय है। इसका बाजार भी बड़ा है।
यह भी अपने आप में सवाल है कि लोगों को बांटने वाली सियासी लपटें पश्चिमी यूपी से ही क्यों उठती हैं? शामिली जिले की कैराना विधानसभा है। राजनीति, मीडिया और प्रतिपक्ष अपने-अपने दाग धोने में लगे हैं। भाजपा जहां कैराना के हिंदुओं के पलायन को मसला बना वोटों का ध्रुवीकरण करना चाहती है। वहीं सरकार कानून-व्यवस्था और मुस्लिम मतों के बिगड़ने के डर से चुप है।
भाजपा ने इलाहाबाद में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में भी इसे जोर-शोर से उठाया है। पीएम मोदी ने सबसे अधिक समाजवादी पार्टी को निशाने पर रखा। सांप्रदायिकता, जातिवाद, गुंडागर्दी और भाई-भतीजावाद को आगे रख राज्य सरकार को नंगा किया। कैराना का सच अगर पलायन है तो यह अपने आप में बेहद दुखद है।
भाजपा इसे हिंदू पलायन का सबसे बड़ा मसला मान रही है। इसे सन् 1990 में कश्मीर में हुए हिंदुओं के सबसे बड़े पलायन से जोड़ रही है। कहा जा रहा है कि कैराना को कश्मीर बनाने की साजिश रची जा रही है। भाजपा सांसद की सौंपी गई सूची में 346 परिवारों का नाम दर्ज हैं जिसमें यह आरोप लगाया गया है कि सभी यहां से पलायन कर गए हैं। सिंह के दावे में पांच साल में यहां 22 फीसदी हिंदुओं की आबादी घटी है, जबकि प्रशासन इस सूची को नकार चुका है।
जिलाधिकारी की तरफ से क्रॉस चेकिंग भी कराई गई है। कहा गया है कि अधिकांश लोग रोजगार के कारण यहां से पलायन किए हैं। यहां हिंदू-मुस्लिम दंगे कभी हुए ही नहीं। हिंदू व्यापारियों के सबसे बड़े खरीदार मुस्लिम ही बताए गए हैं।
प्रशासन की सूची में दावा किया गया है कि 68 परिवार दस और 34 परिवार पांच साल पहले व्यापार या दूसरे किसी कारणों से कैराना को अलविदा कह चुके हैं। इनमें से चार की सालों पूर्व मौत हो चुकी है। ऐसा भी नहीं है कि सिर्फ हिंदू परिवारों ने ही पलायन किया है। मुस्लिमों का भी यहां से पलायन हुआ है।
लेकिन सर्वेक्षण में एक बात खुल कर आई है कि नौ परिवार ऐसे हैं जिन्होंने भय और दहशत के चलते कैराना छोड़ा। यह पड़ताल खुद जिला प्रशासन की है, जिससे समाजवादी सरकार और सीएम अखिलेश खुद मुंह नहीं छुपा सकते।
एक निजी चैनल के सर्वे में बताया गया है कि यहां तकरीबन दस साल पहले हिंदुओं की आबादी 60 फीसदी थी। लेकिन सरकारी दावे के अनुसार अब यह आठ फीसदी पर आ गई है, जबकि 2011 की जनगणना में यहां 30 फीसदी हिंदू थे और मुस्लिम आबादी 68 फीसदी रही। जबकि प्रशासनिक दावों को आधार बनाएं तो इस वक्त मुस्लिमों की आबादी 92 फीसदी है।
अगर यह बात सच है तो यहां सरकार नंगी है। निश्चित तौर पर हालात बेहद बुरे हैं। इतनी जल्दी हिंदुओं की आबादी कैसे कम हुई। सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। सरकार की रिपोर्ट छल से भरी है। रोजगार की तलाश में व्यक्ति प्रवास को जाता है पूरा समूह और परिवार पलायन नहीं करता है। अपनी जन्म भूमि कोई नहीं छोड़ना चाहता।
पलायन के पीछे यहां सबसे अहम बात है कि कैराना में कानून का राज खत्म हो चला है। यहां गुंडागर्दी और माफिया राज है। पिछले दिनों एक विशेष समुदाय की बेटी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई। हालांकि इस हत्या में इसी समुदाय के लोग शामिल हैं। लेकिन इसकी आंच भाजपा सांसद तक पहुंची है।
पलायन के पीछे की मुख्य वजह भी यही है, जबकि इस समस्या से हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग प्रभावित हैं। लेकिन सियासत इसे अपने रंग में रंगना चाहती है। पलायन को सांप्रदायिक जामा पहनाया जा रहा है। यहां किसी मुकिम गैंग का आतंक है। वह जेल में है, लेकिन आतंक की सरकार जेल से चला रहा है।
पलायन की मुख्य वजह यहां गुंडागर्दी, माफिया और रंगदारीराज है। परिवारों के पलायन के पीछे यही मुख्य वजह रही है। भाजपा सिर्फ राजनीति कर रही है। इस तरह का आरोप लगाना नाइंसाफी होगी। कैराना का पलायन पूरी मानवता के लिए कलंक है। इस पर राजनीति बंद होनी चाहिए।
हिंदुओं की घटती आबादी अगर पलायन का असली सच है तो स्थिति बेहद बुरी है। सरकार प्रतिपक्ष की आड़ में इस नंगे सच से नहीं बच सकती। हालांकि इसके लिए केवल समाजवादी सरकार को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
सरकारी पड़ताल को मानें तो दस सालों से पलायनवाद का जहर कैराना में पल रहा है। इसके लिए जितनी जिम्मेदार सपा है, उससे कम अधिक बसपा नहीं है। इस संवेदनशील मसले पर दोनों सरकारों ने आंख पर पट्टी बांध रखी है। इसका नतीजा आज सबके सामने है।
लेकिन प्रदेश में सपा की सरकार है। ऐसी स्थिति में वह नैतिक जिम्मेदारियों और जबाबदेही से पल्ला नहीं झाड़ सकती। सरकार को जमीनी सच्चाई सामने लाना चाहिए। राजनीति सिर्फ सिंहासन और व्यवस्था का सच नहीं है। कैराना राजनीति का यथार्थ ही नहीं, परिवारों के पलायन का सच भी है। (आईएएनएस/आईपीएन)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)