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चेन्नई के घरों में जब चप्पलें तैरने लगीं..

December 8, 2015 12:29 pm by: Category: पर्यावरण Comments Off on चेन्नई के घरों में जब चप्पलें तैरने लगीं.. A+ / A-

download (18)चेन्नई-पूरे पांच दिन और छह रातें अंधेरे में बिताने के बाद सोमवार को मानस मुखर्जी के घर में बिजली लौटी है। बाढ़ की विभीषिका झेल रहे मानस को इससे थोड़ी राहत तो मिली, लेकिन उनका मानना है कि चेन्नई को शताब्दी की इस सबसे भीषण बाढ़ और बारिश से उबरने में काफी वक्त लगेगा। इन सबके बावजूद 2009 में चेन्नई आकर बसे 44 वर्षीय मुखर्जी चेन्नई छोड़कर नहीं जाना चाहते।

मुखर्जी ने कहा, “आपदा ने पड़ोसियों के बीच भाईचारे की भावना विकसित की है। इस दौरान हम एकदूसरे के बेहद नजदीक आए।”

दक्षिणी चेन्नई स्थित तिरुवानमियूर में लगातार जारी भारी बारिश और टखने तक डूबे घर में बिना बिजली-पानी रहे स्थानीय वासियों को सोमवार तक शायद ही कोई राहत पहुंची हो।

मुखर्जी ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा, “मैं पूरी परिस्थिति को तीन शब्दों में बयां कर सकता हूं। लाइफ ऑफ पाई। क्या आपने यह फिल्म देखी है? मेरे चारों ओर पानी ही पानी था और मैं खुद को फिल्म के उस मुख्य किरदार जैसा महसूस कर रहा था।”

यह आपदा एक दिसंबर से शुरू हुई जब मुखर्जी ने आधी रात के वक्त अपने घर में चप्पलों को तैरते हुए देखा। मुखर्जी ने कहा, “वे सच में तैर रही थीं।”

मुखर्जी चेन्नई के उन हजारों लोगों की तरह चौंकते हुए उठ खड़े हुए जिनके भूतल पर स्थित घरों में बारिश का पानी आठ-आठ फुट तक भर चुका था।

यहीं से मुसीबत की शुरुआत हुई। मुखर्जी और उनकी पत्नी झट से अपने बिस्तर से उठे जमीन पर रखे कीमती सामानों को ऊंचे स्थानों पर रखने लगे।

हालांकि वह भाग्यशाली रहे कि तलघर होने के कारण पानी उससे अधिक नहीं उठा।

मुखर्जी ने कहा, “हम पूरे 20 घंटों तक घुटनों पानी में ही रहे।” हालांकि सोमवार तक भी उनके घर के बाहर सड़कों पर दो फुट पानी भरा हुआ है।

एक दिसंबर की ही रात जहां बिजली कट गई, वहीं दो दिनों में उनकी टंकी का पानी भी खत्म हो गया।

उन्होंने बताया, “हमने कई दिनों तक नहाया ही नहीं। आप विश्वास नहीं करेंगे कि हमारे पास दांत साफ करने तक के लिए पानी नहीं था। कुछ ही समय बाद हमारे पास शौच तक के लिए पानी नहीं रहा। यहां तक कि स्नानघर और शौचालय से गंदा पानी बाहर आने लगा।”

बाढ़ की भीषण आपदा झेल रहे चेन्नई में भूतल पर रहने वाले लोग जहां बड़ी संख्या में ऊपरी तल पर अपने पड़ोसियों के यहां रहने चले गए, मुखर्जी ने अपने बेहद वृद्ध माता-पिता की वजह से घर नहीं छोड़ा।

मुखर्जी ने बताया, “यह नर्क के समान था। पास वाली दुकान से सभी जरूरी दवाएं, साबुन यहां तक की मोमबत्तियां भी बिक चुकी थीं।”

शुक्र है कि उनकी कार ठीक रही जिससे वह बारिश के बीच ही पानी और अन्य जरूरी सामानों की तलाश में कई किलोमीटर चक्कर लगाने के बाद वे 100 रुपये में दो दर्जन केले लेकर घर लौटे। इस बीच रास्ते में पड़े सारे एटीएम खाली पड़े मिले।

राहत कार्य पर मुखर्जी ने कहा, “साफ-साफ कहूं तो मुझे किसी भी समय कोई भी सरकारी संस्थान राहत कार्य करता नहीं दिखा। बल्कि अब तक कोई नहीं आया। हां कुछ गैर सरकारी संगठन जरूर मदद के लिए आगे आए। जिन्हें हम जानते तक नहीं थे उन पड़ोसियों ने भी हमारी बहुत मदद की।”

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