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जीवन यापन के लिए आदिवासियों को आज भी अवसरों की तलाश

December 1, 2015 9:34 pm by: Category: फीचर Comments Off on जीवन यापन के लिए आदिवासियों को आज भी अवसरों की तलाश A+ / A-

063ae7da92cf22d0656f2e6ff7506224_Mधर्मपथ-छोटी कद काठी की सुमंति भगत (30) अपने ओरांव आदिवासी समुदाय में काफी चर्चित हैं। वजह है उनकी चित्रकारी जिसमें वह कुछ ऐसी तकनीक का भी इस्तेमाल करती हैं कि जिसे देखकर उनके समकालीन भी दांतों तले उंगली दबा लें। सुमंति अपने जन्म से आज तक जसपुरनगर में रह रही हैं। कैनवस पर ओरांव समुदाय के प्रतीकों और रोजमर्रा की जिंदगी को उकेरती हैं।

अपने चित्रों में सुमंति सिर्फ प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करती है। सफेद रंग के लिए चावल का आटा, लाल के लिए रेतीला पत्थर, काली मिट्टी, काले के अलग-अलग शेड के लिए चूना पत्थर, यहां तक कि सूखे गोबर और कोयले का भी इस्तेमाल वह पेंटिंग में रंग भरने के लिए करती हैं।

यहां हाल ही में हुए आदिवासी समारोह ‘संवाद’ में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।

यहीं पर आईएएनएस ने सुमंति से मुलाकत की। उन्होंने कहा कि वह खुद को खुशकिस्मत समझती हैं कि उनके हाथ में एक औजार-उनकी कला-है, जिसकी मदद से वह ‘गैर आदिवासी’ समाज के बारे में जानकारी पा सकी हैं।

उन्होंने कहा, “अपनी इस कला की वजह से मैं कई जगहों पर जा सकी और दुनिया को जान सकी। तभी मैं यह जान सकी कि मेरे पास जीवन में कुछ बड़ा करने के लिए कितने कम अवसर हैं। मुझे कला प्रदशर्नियों में बुलाया जाता है और कई बार प्रतिदिन 500 रुपया ही दिया जाता है।”

अपने चित्रों की प्रशंसा के बीच ही उन्होंने सौम्यता से लेकिन दृढ़ता से पूछा, “लेकिन, हमें बेहतर कमाने का कोई मौका क्यों नहीं दिया जाता? क्या हम भी इस देश का हिस्सा नहीं हैं?” उन्होंने कहा कि वह भी चाहती हैं कि उनके दोनों बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें।

ऐसी ही कहानी मलिका मानोव (29) की है। वह अरुणाचल प्रदेश के एक उपेक्षित कस्बे एलांग की रहने वाली हैं। दो बच्चे, पति और सास के साथ रहती हैं।

यहां ‘संवाद’ में उन्होंने अदि आदिवासी समुदाय के रहन-सहन के तौर-तरीकों को प्रदर्शित किया।

ग्रीन टी और खाने-पीने के अन्य सामानों के साथ-साथ वह जूट से बने सामान बेचती हैं।

उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मैं जहां रहती हूं वहां आज भी वस्तु विनिमय होता है। जैसे जो दाल पैदा करते हैं वे कपड़े वाले से दाल के बदले कपड़ा ले लेते हैं। लेकिन, हमें रुपया चाहिए। हम अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं।”

उन्होंने कहा कि वह पूरी कोशिश के बाद भी महीने में 7000 रुपये तक ही कमा पाती हैं। इसके लिए उन्हें स्वयंसेवी संस्थाओं से मदद मिलती है जो उन्हें प्रदर्शनियों में उनके उत्पाद के साथ ले जाती हैं। उनके पति लकड़ी की कटाई के काम में 5000 रुपये तक प्रति माह कमाते हैं।

मानोव ने कहा कि वह जूट से बने सामान और घर में बने आचार वगैरह को शहर में बेचकर पैसा कमाती हैं, लेकिन उन्हें शहर में उतना दाम नहीं मिलता जितना कि शहर के स्थानीय लोगों को ऐसे ही सामानों के बदले में मिलता है। और, वह भी तब जबकि उनके सामान के मुकाबले शहरवालों का सामान कहीं टिकता नहीं है।

आदिवासी समारोह में ऐसी ही कई सच्ची कहानियां सुनने को मिलीं। संघर्ष की और अवसरों के न मिलने की कहानियां।

जीवन यापन के लिए आदिवासियों को आज भी अवसरों की तलाश Reviewed by on . धर्मपथ-छोटी कद काठी की सुमंति भगत (30) अपने ओरांव आदिवासी समुदाय में काफी चर्चित हैं। वजह है उनकी चित्रकारी जिसमें वह कुछ ऐसी तकनीक का भी इस्तेमाल करती हैं कि ज धर्मपथ-छोटी कद काठी की सुमंति भगत (30) अपने ओरांव आदिवासी समुदाय में काफी चर्चित हैं। वजह है उनकी चित्रकारी जिसमें वह कुछ ऐसी तकनीक का भी इस्तेमाल करती हैं कि ज Rating: 0
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