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डाउन सिंड्रोम से पीड़ित भ्रूण गिराने की याचिका खारिज

नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने एक मेडिकल बोर्ड की रपट के आधार पर मंगलवार को गर्भपात कराने की एक महिला की याचिका ठुकरा दी। महिला को आशंका है कि उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण में आनुवांशिक विकार हो सकता है।

37 वर्षीय याचिकाकर्ता को अपने 23 सप्ताह के भ्रूण के डाउन सिंड्रोम से पीड़ित होने की आशंका है।

हालांकि अदालत ने कहा कि अगर गर्भावस्था जारी रहती है, तो इससे मां और शिशु की जान को कोई खतरा नहीं है।

न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे और न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव की सदस्यता वाली खंडपीठ ने एक अंतरिम आदेश में एक रपट के आधार पर फैसला सुनाया, जिसके अनुसार भ्रूण अब 26 सप्ताह का हो चुका है और उसके जीवित बचे रहने की पूरी संभावना है।

अदालत ने कहा, “इन हालातों में भ्रूण को मारने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”

अदालत ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की रपट के अनुसार, “गर्भावस्था जारी रहने पर मां की जान को कोई खतरा नहीं हैं और जहां तक भ्रूण का सवाल है, डाउन सिंड्रोम की समस्या के साथ पैदा हुए बच्चे में शारीरिक और मानसिक विकार हो सकते हैं।”

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता कॉलीन गोंसाल्वेस ने यह कहते हुए महिला के गर्भपात की अनुमति मांगी कि मेडिकल रपट के अनुसार, बच्चे में गंभीर मानसिक और शारीरिक विकार होने की संभावना है।

पीठ ने माना कि यह दुखद है कि एक मां को बेहद गंभीर मानसिक समस्या से पीड़ित बच्चे का पालन-पोषण करना पड़ेगा।

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) अधिनियम, 1971 के अनुसार, सामान्य स्थिति में 12 सप्ताह तक के गर्भ का गर्भपात कराया जा सकता है।

वहीं, 12-20 सप्ताह के बीच के गर्भ का गर्भपात तभी किया जा सकता है, जब दो डॉक्टरों की राय में गर्भावस्था को जारी रखने में गर्भवती महिला की जान को खतरा हो।

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित भ्रूण गिराने की याचिका खारिज Reviewed by on . नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने एक मेडिकल बोर्ड की रपट के आधार पर मंगलवार को गर्भपात कराने की एक महिला की याचिका ठुकरा दी। महिला को आशंका है नई दिल्ली, 28 फरवरी (आईएएनएस)। सर्वोच्च न्यायालय ने एक मेडिकल बोर्ड की रपट के आधार पर मंगलवार को गर्भपात कराने की एक महिला की याचिका ठुकरा दी। महिला को आशंका है Rating:
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