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 नेपाल : महिलाओं ने जिंदा रखी कपड़ा बुनाई की परंपरा | dharmpath.com

Friday , 6 June 2025

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नेपाल : महिलाओं ने जिंदा रखी कपड़ा बुनाई की परंपरा

काठमांडू, 21 अगस्त (आईएएनएस)। नेपाल में अप्रैल में आए भूकंप ने देश को जो जख्म दिए वो अभी भी पूरी तरह नहीं भरे हैं। लेकिन, यहां लिखी जा रही है जिजीविषा की कहानियां। भूकंप से बेघर होने वाली उन महिला कामगारों ने फिर से अपने हुनर को आजमाना शुरू कर दिया है जो घरों में रहकर काम करती थीं।

काठमांडू, 21 अगस्त (आईएएनएस)। नेपाल में अप्रैल में आए भूकंप ने देश को जो जख्म दिए वो अभी भी पूरी तरह नहीं भरे हैं। लेकिन, यहां लिखी जा रही है जिजीविषा की कहानियां। भूकंप से बेघर होने वाली उन महिला कामगारों ने फिर से अपने हुनर को आजमाना शुरू कर दिया है जो घरों में रहकर काम करती थीं।

ये काम है हाथ से कपड़े की परंपरागत बुनाई का। हाथ से बुने ‘ढाका’ कपड़े उस वक्त भी नजर आए जब मौत और निराशा के बीच राहत का काम चल रहा था। आज चार महीने बाद यही महिलाएं फिर से अपनी इस परंपरा में जान डालने लगी हैं।

ऐसी करीब 2800 महिला कामगार हैं, जो सार्क बिजनेस एसोसिएशन आफ होम बेस्ड वर्कर्स (साबाह-नेपाल) के तहत काम कर रही हैं। ये ढाका कपड़ा बनाती हैं जो शुद्ध सूती पर एक खास ज्यामितीय अकार में बनाया जाता है या जो केला, बांस और आलो नाम के पेड़ से मिलने वाली चीजों से बनाया जाता है।

एक मीटर ढाका कपड़ा बनने में पांच दिन लग जाते हैं। महिलाएं इसके लिए रोजाना सात घंटे काम करती हैं। वे घर से भी यह काम करती हैं या फिर भक्तपुर, बुंगामति और खोखाना के सामुदायिक केंद्रों पर जाकर भी कर सकती हैं।

इस बुनावट और कपड़ों को भारतीय सिल्क और खादी के साथ जोड़ कर नेपाल की फैशन पसंद महिलाओं के लिए डिजानइर जैकेट, अन्य परिधान, ब्लाउज और कुर्ते बनाए जाते हैं। सोफे आदि का कुशन और चादरें भी बनाई जाती हैं।

भूकंप ने हालांकि इनकी जिंदगियों की रफ्तार रोक दी। इनके घर ढह गए, वे सामुदायिक केंद्र ढह गए जहां ये ढाका कपड़ा बुनती थीं।

मुक्ता श्रेष्ठ ने नेपाल की राजधानी के दौरे पर आई आईएएनएस संवाददाता से कहा, “शुरू-शुरू में तो ये घर से काम करने वाली महिला कामगार पूरी तरह से सदमे में थीं। लेकिन, फिर इनकी मनोवैज्ञानिक-सामाजिक काउंसलिंग की गई। धीरे-धीरे ये सदमे से उबरने लगीं। उनका ध्यान इस त्रासदी से हटाने और इन्हें व्यस्त रखने के लिए हमने इन महिलाओं को भूकंप राहत में काम आने वाले टेंट और बैग को सिलने का काम दिया। “

श्रेष्ठ ने कहा, “उस वक्त (भूकंप के समय) अधिकांश काम पर नहीं लौट सकीं। इन तक संदेश भेजने का कोई जरिया भी नहीं था। लेकिन अब, ये फिर से तैयार हो रही हैं। भूकंप के बाद अपनी जिंदगी को सहेजने के लिए कुछ न कुछ कर धन कमाने की कोशिश कर रही हैं। “

साबाह-नेपाल एक ऐसा सामाजिक व्यावसायिक संगठन है, जो आर्थिक रूप से कमजोर और हाशिये पर पड़ी घरेलू कामगार महिलाओं को उनकी जीविका चलाने में मदद करता है।

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