पिछले सप्ताहान्त में न्यूयार्क में एक सिक्ख प्रोफ़ेसर की पिटाई का भारत में और अमरीका में सिख समाज ने भारी विरोध किया है। लेकिन यह समस्या और ज़्यादा व्यापक है। न्यूयार्क में घटी यह अफ़सोसजनक घटना उस प्रवृत्ति का बस, एक छोटा-सा उदाहरण है, जब पश्चिमी देशों के लोग पूरब के लोगों का आदर नहीं करते। यह प्रवृत्ति पश्चिमी देशों में सिर्फ़ निम्न सामाजिक स्तर के लोगों में ही दिखाई नहीं पड़ती है, बल्कि पश्चिमी समाज के उच्च वर्ग में भी और सत्ताधारी वर्ग में भी साफ़-साफ़ उभरकर आती है।
न्यूयार्क की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के युवा प्रोफ़ेसर प्रभजोत सिंह शाम का खाना खाने के बाद कुछ देर घूमने के लिए घर से बाहर निकले थे कि तभी 15-20 किशोरों ने उन्हें घेरकर उन पर हमला कर दिया। किशोरों ने उन्हें आतंकवादी बताते हुए उनकी पिटाई करनी शुरू कर दी और उन्हें ‘ओसामा’ कहकर भी पुकारा। जब प्रोफ़ेसर प्रभजोत सिंह गिर गए, उसके बाद भी अमरीकी किशोर उनके सिर पर और चेहरे पर वार करते रहे। रेडियो रूस के विशेषज्ञ और रूस के सामरिक अध्ययन संस्थान के एक विद्वान बरीस वलख़ोन्स्की ने इस सूचना पर टिप्पणी करते हुए कहा :
इस घटना को हार्लेम नगर के कुछ ऐसे आवारा छोकरों की हरकत बताकर यूँ ही छोड़ा जा सकता है, जिन्होंने पगड़ी और दाढ़ी वाले एक आदमी को कट्टरपन्थी मुसलमान समझकर उस पर हमला कर दिया। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में घटी घटनाएँ यह दिखाती हैं कि यह घटना भी उसी प्रवृत्ति का एक हिस्सा है, जो आज के पश्चिमी समाज में बहुतायत में दिखाई दे रही है।
स्टेनफ़ोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में कराए गए एक जन-सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि 50 प्रतिशत अमरीकी लोग सिक्खों की पगड़ी देखकर तुरन्त ओसामा बिन लादेन के बारे में ही सोचने लगते हैं। जबकि सिक्खों का इस्लाम से कोई सम्बन्ध नहीं है। जन सर्वेक्षण में सामने आए परिणाम से वह प्रवृति सामने आ जाती है। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :
अमरीका के आम निवासियों से अलग दूसरी तरह के कपड़े पहनने वालों के प्रति इस तरह के सम्बन्ध यह दिखाते हैं कि सांस्कृतिक समभाव की पश्चिम की वह नीति असफल सिद्ध हुई है, जिसकी अभी तक बड़ी तारीफ़ की जाती रही है। लोगों में ज़बरदस्ती साँस्कृतिक समभाव ठूँसने का असर लोगों पर एकदम उल्टा पड़ा। उन्होंने अजनबी लोगों को अस्वीकार करना शुरू कर दिया और वे उनके प्रति इतने असहिष्णु हो उठे कि उनके ख़िलाफ़ हिंसा भी करने लगे।
जैसी घटना हाल ही में न्यूयार्क में घटी, ऐसी घटनाओं से भी पश्चिमी समाज कुछ सीखने के लिए तैयार नहीं है। प्रोफ़ेसर प्रभजोत सिंह की पिटाई होने के दो दिन बाद ही एक दूसरे अमरीकी नगर लॉस एंजेल्स से यह ख़बर मिली कि एक स्थानीय बार में सिक्खों के गुरु गुरुनानक की तस्वीर लगी हुई है। सिक्ख समाज के लोगों ने इसे अपने धर्म का अपमान बताया और बार के मालिकों से गुरुनानक की तस्वीर हटाने को कहा । बरीस वलख़ोन्स्की आगे कहते हैं :
लेकिन सबसे ज़्यादा दुःख की बात तो यह है कि पश्चिमी समाज में यह प्रवृत्ति न सिर्फ़ निम्न स्तर पर दिखाई दे रही है, बल्कि पश्चिमी समाज के राजनीतिज्ञों और बुद्धिजीवी वर्ग में भी यह प्रवृत्ति उभर आई है। आप सभी को वह घटना याद होगी, जब पिछले साल अगस्त में अमरीका के विस्कोन्सी राज्य में एक गुरुद्वारे पर हमला करके अनेक व्यक्तियों की हत्या कर दी गई थी। ये हत्याएँ भी अजनबियों को स्वीकार न करने का ही परिणाम थीं। अमरीका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार मिट्ट रोमनी ने अपने एक सार्वजनिक भाषण में सिक्खॊं के एक गुरद्वारे को ‘शेख टेम्पल’ कहा था।
सभी धर्मों के बीच समानता पैदा करने की कोशिश करते हुए पश्चिमी समाज न सिर्फ़ लोगों की जातीय और धार्मिक परम्पराओं की उपेक्षा करता है, बल्कि राजकीय नीतियों के माध्यम से इन धर्मावलम्बियों की धार्मिक भावनाओं का भी अपमान करता है। इसका सबसे ज्वलन्त उदाहरण फ़्राँस है, जहाँ सन् 2004 में यह कानून स्वीकार किया गया है कि सरकारी दफ़्तरों में और स्कूलों में कोई भी व्यक्ति किसी धर्म-विशेष से सम्बन्धित प्रतीक पहन कर नहीं जा सकता है। यह प्रतिबन्ध न सिर्फ़ मुसलमानों पर लागू होता है, बल्कि सिक्खों की पगड़ियों पर भी लागू होता है। आज फ़्राँस के 30 हज़ार सिक्खों ने पगड़ी पहनने के अपने अधिकार को पुनर्स्थापित करने के लिए एक अभियान शुरू किया है। हालाँकि हमें इस बात में सन्देह है कि पिछले दिनों जो घटनाएँ घटी हैं, उनकी पृष्ठभूमि में यह अभियान सफल होगा।