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‘पाथेर पांचाली’ को दोहराने की जरूरत नहीं : शर्मिला टैगोर

कोलकाता, 30 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय सिनेमा की दिग्गज कलाकारा शर्मिला टैगोर का मानना है कि बतौर निर्देशक सत्यजीत रे की पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ को दोहराने की जरूरत नहीं है।

कोलकाता, 30 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय सिनेमा की दिग्गज कलाकारा शर्मिला टैगोर का मानना है कि बतौर निर्देशक सत्यजीत रे की पहली फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ को दोहराने की जरूरत नहीं है।

शर्मिला ने दिवंगत सत्यजीत रे की साल 1959 में आई फिल्म ‘अपूर संसार’ से फिल्म जगत में कदम रखा था।

शर्मिला उस वक्त 13 साल की थी, जब उन्होंने इस फिल्म में सौमित्र चटर्जी के साथ सह-कलाकार के रूप में काम किया था। यह अपु ट्रायलॉजी का आखिरी हिस्सा था।

वहीं ‘पाथेर पांचाली’ अपु ट्रायलॉजी का पहला हिस्सा था।

शर्मिला ने फिल्म की 60वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित एक बैठक में एक प्रश्न का जवाब देते हुए कहा, “हमें क्यों ‘पाथेर पांचाली’ जैसी फिल्में बनानी चाहिए? क्योंकि इसने कई लोगों को प्रेरित किया था और श्याम बेनेगल का समांनतर भी शुरू हुआ था, इसलिए। हमें क्यों इसे दोहराना चाहिए।”

सत्यजीत रे की साल 1961 में आई फिल्म ‘तीन कन्या’ से बतौर कलाकार करियर की शुरुआत करने वाली फिल्मकार अर्पणा सेन ने शर्मिला के विचार का समर्थन करते हुए कहा कि किसी के अभिज्ञ चुनाव की नकल न करते हुए एक सचेत प्रयास करना चाहिए।

शर्मिला ने कहा, “लीक से हटकर फिल्में बनाना एक सदी की बात थी और वह गुजर चुकी है। मुझे नहीं लगता कि युवा लोग इसमें रुचि रखेंगे।”

विभूतिभूषण बंधोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म को स्वतंत्र भारत की पहली फिल्म का दर्जा दिया जाता है, जिसने देश को विश्व के नक्शे पर ला खड़ा किया था।

इस फिल्म को साल 1955 में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, साल 1956 में कॉन्स अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ ह्यूमन डॉक्यूमेंट पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कारों से नवाजा गया था। जिसने सत्यजीत रे को देश के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म निर्माताओं में से एक बनाया।

इस परिचर्चा का आयोजन सत्यजीत रे अभिलेखागार के संरक्षण के लिए बनी संस्था ने किया।

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