उन्होंने कहा कि बजट की दिशा बताती है कि आमजनों को महंगाई की मार का सामना करना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के लोगों को इंफ्रास्ट्रक्च र के साथ स्मार्ट सिटी व डिजिटल इंडिया के जरिए वाई-फाई का दायरा बढ़ाने, मेक इन इंडिया के जरिए नॉन-कोर सेक्टर को बढ़ावा देने, प्रदेश के उद्योगों को मुश्किलों से उबारने के लिए आर्थिक पैकेज वगैरह की आशा थी, लेकिन बजट में ये सब कहीं भी नजर नहीं आए।
रोजगार बढ़ाने के लिए डिजिटल और स्किल्ड रायपुर की उम्मीद थी, लेकिन बजट में प्रदेश को कुछ खास हासिल नहीं होने पर लोगों की उम्मीदें टूटी हैं। इस बजट ने केंद्र सरकार की दिशा का बोध करा दिया है कि उसके पास न तो दूरदृष्टि है, न ही दीर्घकालीन विकासोन्मुखी योजना का प्रारूप है।
बिस्सा ने कहा कि किसानों की बात करने वाली केंद्र की मोदी सरकार ने छत्तीसगढ़ को राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट न देकर यहां के किसानों व किसानी के साथ कुठाराघात किया है। यह सब यहां के कमजोर भाजपा सांसदों व चरण वंदना में डूबी राज्य सरकार के कारण हुआ है।
उन्होंने कहा कि गांव कल्याण की बात करने वाली सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की गांव को शहरी सुविधा जैसा परिपूर्ण बनाने की सोच वाली पुरा योजना के लिए बजटीय प्रस्ताव में स्थान न दिया जाना निंदनीय है।
बिस्सा ने कहा कि पिछले वर्ष छत्तीसगढ़ को फार्मास्युटिकल अनुसंधान केंद्र से ही संतोष करना पड़ा था, लेकिन आज की स्थिति में वह भी सिर्फ बजटीय भाषण साबित हुआ है।
मोदी सरकार से छत्तीसगढ़ को उम्मीद थी कि वह बजट में यहां की 76 प्रतिशत अति गरीब जनता को बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य के अवसर, कृषि के लिए बेहतर वातावरण, जन-जन को आर्थिक सुरक्षा, आईटी व औद्योगिक विस्तार की दिशा में कुछ ठोस प्रस्ताव पेश करेगी, लेकिन इस बजट ने लोगों को निराश किया है।