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Thursday , 1 May 2025

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बेजोड़ हैं भारत के जौहरी

19रूस के सबसे प्रसिद्ध संग्रहालय- “मास्को क्रेमलिन संग्रहालय” में 12 अप्रैल को एक अनूठी प्रदर्शनी, “भारत: दुनिया का दिल जीतने वाले गहने” खुल रही है।

रूस के सबसे प्रसिद्ध संग्रहालय- “मास्को क्रेमलिन संग्रहालय” में 12 अप्रैल को एक अनूठी प्रदर्शनी, “भारत: दुनिया का दिल जीतने वाले गहने” खुल रही है। इस प्रदर्शनी के लिए सर्वश्रेष्ठ भारतीय और यूरोपीय जौहरियों द्वारा बनाए गए लगभग तीन सौ गहने तैयार किए गए हैं। ये गहने भारत सहित एशिया के कुछ अन्य देशों के अलावा यूरोप और अमरीका के निजी संग्रहलयों से भी लाए गए हैं।

“मास्को क्रेमलिन संग्रहालय” की महानिदेशक और कला की एक बड़ी पारखी, कला-समीक्षक और इतिहासकार येलेना गगारिना ने “रेडियो रूस” की विशेष संवाददाता नतालिया बेन्यूख को दिए अपने एक साक्षात्कार में बताया कि शुरू में हमारा समकालीन भारतीय गहनों की एक प्रदर्शनी का आयोजन करने का विचार था लेकिन हम समझ नहीं पा रहे थे कि इसका आयोजन कैसे किया जाए। येलेना गगारिना ने कहा-

जब मैं भारत पहुँची तो मुझे विभिन्न युगों से संबंधित बहुत ही शानदार गहने दिखाए गए। मैंने मुग़ल काल में बने और जवाहरात से सजे जेवरों और 21-वीं सदी में जेवर-कला की विकास-पद्धति का बड़ी गहराई से अध्ययन किया है। यह भारत में सौंदर्यशास्त्र के विकास का एक दिलचस्प मार्ग है। पिछले तीन वर्षों के दौरान हमने कई बार भारत की यात्रा की है। हमने मुम्बई,दिल्ली, उदयपुर, जयपुर और कई अन्य नगरों की यात्राएँ की हैं। हम वहां सबसे अच्छे जौहरियों से और गहनों के संग्रहकर्ताओं से मिले और हमें अति सुन्दर गहने और आभूषण देखने का अवसर प्राप्त हुआ।

रूस में पिछले एक लंबे समय से भारत से लाए गए रत्न, हीरे-जवाहरात आदि बहुत पसंद किए जाते हैं। पुराने ज़माने में भी रूस के शाही घरानों के लोग इन क़ीमती पत्थरों को बड़े चाव से ख़रीदते थे। हालांकि भारत के ये जवाहरात अक्सर तुर्की और फ़ारस में ख़रीदे जाते थे। रूस में नीलम के क़ीमती पत्थरों को तो बहुत ही चाहा जाता है। इस दिव्य पत्थर को नीले आकाश का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं कि रूसी ज़ार इवान ग्रोज़्नी को नीलम पत्थर बहुत पसंद था। भारत से लाए गए जवाहरात से देव-चित्रों और पवित्र पुस्तकों की सजावट भी की जाती थी। रूस के हीरा निधि नामक संग्रहालय में मौजूद तथाकथित “हीरक सिंहासन” को गोलकुंडा से लाए गए हीरों से सजाया गया था। इसी संग्रहालय में भारत से लाए गए कुछ अन्य बहुमूल्य हीरे भी देखे जा सकते हैं। लगभग नवासी (89) कैरेट के सबसे प्रसिद्ध हीरे को “शाह” हीरा कहा जाता है। यह हीरा सन् 1829 में तेहरान में स्थित रूसी दूतावास में घटी दुखद घटनाओं के बाद फ़ारस के हाक़िम फ़तह अली शाह ने रूसी सम्राट, निकोलाई द्वितीय को भेंट किया था। गुलाब के फूल की शक़्ल का सबसे बड़ा हीरा “ऑर्लोव” भी इस प्रदर्शनी में देखा जा सकेगा, जो रूस की महारानी येकातेरीना द्वितीय ने कभी अपने चहेते काउंट ऑर्लोव को उपहार के रूप में दिया था। इस हीरे का वज़न लगभग 190 कैरेट है। ग़ौरतलब है कि मुग़ल बादशाह शाहजहां कभी इस हीरे के स्वामी हुआ करते थे।

मास्को क्रेमलिन संग्रहालय में आयोजित “भारत: दुनिया का दिल जीतने वाले गहने” नामक इस प्रदर्शनी में 30 से अधिक जौहरी भाग ले रहे हैं। उनकी कला-कृतियों में भारतीय और यूरोपीय परंपराओं के आपसी प्रभाव की झलक मिलती है। इस संबंध में येलेना गगारिना ने कहा-

विश्व प्रसिद्ध दो आधुनिक भारतीय जौहरी, वीरेन भगत और मुन्नू कसलीवाला की कला-कृतियां इस प्रदर्शनी में प्रदर्शनार्थ रखी जा रही हैं। वीरेन भगत की कला-शैली पिछली सदी के तीसरे व चौथे दशकों में फ्रांसीसी जौहरियों की कला-शैली से मिलती-जुलती है। मुन्नू कसलीवाला की शैली परंपरागत दक्षिण भारतीय कला-शैली के बहुत क़रीब है। इन गहनों में शानदार डिज़ाइन और तकनीकी निपुणता का सुमेल स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। इन कला-कृतियों का सृजन इतनी बारीकी से किया गया है कि कभी कभी तो जौहरी भी यह नहीं समझ पाते हैं कि क़ीमती पत्थरों के अंदर इतनी सुन्दर नक्काशी कैसे की गई है। यहाँ तक कि इन पत्थरों पर लगे हुए धातु के फ्रेम बड़ी मुश्किल से ही दिखाई देते हैं।

भारतीय जवाहरातों का दुनिया के प्रमुख फैशन-गृहों तथा गैलरियों द्वारा ख़ूब उपयोग किया जाता है। दुनिया भर में गहनों की प्रदर्शनियों का आयोजन करनेवाले इन फैशन-गृहों तथा गैलरियों में कार्टियर, चौमेट, वान क्लीफ़ एवं आर्पेल्स, लंदन का विक्टोरिया व अल्बर्ट संग्रहालय, ब्रिटिश संग्रहालय, लंदन नेशनल पोर्ट्रेट गैलरी, जिनेवा का बार्बियेर म्यूलर संग्रहालय, अमरीका का निजी संग्रहालय और कई अन्य संग्रहालय भी शामिल हैं।

“मास्को क्रेमलिन संग्रहालय” में आयोजित प्रदर्शनी के एक विशेष खंड में “पाँच महान जवाहरात”- पाँच महारत्न भी देखे जा सकते हैं। इनमें शानदार स्पीनेल रत्न शामिल है जिसे “तैमूर का लाल” कहा जाता है। इसे कुवैत के “अल-सबाह” संग्रहालय से लाया गया है। इसके अलावा, लंदन के प्रोफेसर डेविड ख़लीली के निजी संग्रह से लाए गए अद्भुत नक्काशीदार पन्ने भी क्रेमलिन प्रदर्शनी में देखे जा सकते हैं। मुग़ल बादशाह इन हीरों-पन्नों को बेहद पसंद करते थे।

येलेना गगारिना ने बताया कि उन्हें, व्यक्तिगत रूप से, 19-वीं तथा 20-वीं सदियों में बनाई गई सोने की बड़ी-बड़ी बालियां बहुत पसंद हैं। दक्षिणी भारत में बनाई जातीं ये बालियां एक प्रकार की अमूर्त ज्यामितीय आकृतियां हैं जो रूसी अवान्गार्ड आर्ट, यानी अग्रगामी कला-शैली से बहुत मिलती-जुलती हैं। येलेना गगारिना ने इस बात पर ज़ोर दिया कि महान भारतीय जौहरियों के ये गहने, ये कला-कृतियां आज भी हमारे लिए सुंदरता के आदर्श मानक हैं और भारतीय मणिकार आज भी दुनिया के बेज़ोड़ जौहरी हैं।

 

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