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Thursday , 5 June 2025

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भारतीय राष्ट्रवादी इतिहास लेखन

डॉ. अतुल कुमार सिंह

डॉ. अतुल कुमार सिंह

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के संबंध में अनेक इतिहासकारों ने अपने-अपने तरीके से इतिहास लेखन किया है, क्योंकि इनमें से कई राष्ट्रवादी और कुछ मार्क्‍सवादी विचारधारा से प्रभावित थे। राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने अपने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित विचारों को अलग प्रकार से प्रस्तुत किया है।

राष्ट्रीय आंदोलन के क्षेत्र में दो लेखकों डॉ. रमेश चंद्र मजूमदार और डॉ. ताराचंद्र ने अपने-अपने ग्रंथों में विस्तृत इतिहास लेखन किया, परंतु दोनों की विषय-वस्तु और व्याख्या में परस्पर अंतर दिखाई देता है।

डॉ. मजूमदार द्वारा लिखित इतिहास सभी के लिए उपयोगी कहा जाता है, जबकि डॉ. ताराचंद्र ने अपनी कृति को निरपेक्ष स्वीकार नहीं किया है कि उनका ज्ञान सीमा के द्वारा नए तथ्यों के प्रकाश में राष्ट्रीय आंदोलन से संबंधित विचारधारा को संशोधित व परिवर्धित करने में सक्षम हो सकते हैं।

सबसे पहले 1952 में ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इतिहास’ लेखन की जिम्मेदारी भारत सरकार ने डॉ. मजूमदार को सौंपा था, किंतु कतिपय कारणोंवश सरकार ने उनके द्वारा लिखित इतिहास के प्रथम भाग को स्वीकार नहीं किया- उनका मुख्य कारण था- ‘बंगाल का स्वरूप बड़ा दिखाई पड़ना’।

वर्ष 1955 में डॉ. ताराचंद्र द्वारा लिखित पुस्तक का प्रकाशन भारत सरकार द्वारा कराया गया। दोनों पुस्तकों की विषय वस्तु के प्रस्तुतीकरण और तथ्यों की व्याख्या में काफी अंतर देखने को मिलता है। ताराचंद का दृष्टिकोण द्वंद्वात्मक है- अंग्रेजों के भारत आगमन के पूर्व भारतीय समाज की स्थिति ब्रिटिश शासन और स्वतंत्रता-आंदोलन का प्रतिरूप था।

डॉ. मजूमदार ने इस प्रतिरूप से सहमति प्रकट न करते हुए अपने विचार के अनुरूप स्वतंत्रता आंदोलन की रजनीतिक व्याख्या की है। फिर भी सूक्ष्म रूप से दोनों इतिहासकारों में कुछ समानताएं स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं। दोनों इतिहासविदों का मानना है कि भारतीय राष्ट्रवाद ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति की उपज है।

साम्राज्यवादी इतिहासकार हबर्ट रिजले, वैलेंटाइन शिरोल, जानस्ट्रेची व विसेंट स्मिथ ने भी इसी प्रकार वर्णन किया है। दोनों लेखक यह स्वीकार करते हैं कि भारत में राष्ट्रवाद की भावना का उदाय अंग्रेजों के काल में हुआ। 1857 की घटना को ताराचंद्र ‘राष्ट्रीय विप्लव’ नाम देते हैं, परंतु मजूमदार इसे भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को प्रथम महान चुनौती के रूप में वर्णित करते हैं।

सांप्रदायिकता के संदर्भ में दोनों इतिहासकारों के लेखन में परस्पर विरोधी ²ष्टिकोण हैं। मजूमदार हिंदू और मुसलमान को दो विरोधी जातियों के रूप में वर्णित करते हैं, वहीं डॉ. ताराचंद्र ने लिखा है कि दोनों मिश्रित संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं।

मजूमदार के अनुसार, मुसलमानों ने अपनी विशिष्टता को बनाए रखने के लिए अपने आपको भारतीय राजनीति की मुख्यधारा से संयुक्त नहीं किया और अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व के माध्यम से राष्ट्रवाद की जड़ पर प्रहार किया। डॉ. ताराचंद्र के अनुसार, अंग्रेजों के भारत आगमन से पूर्व हिंदुओं और मुसलमानों को अलग-अलग संप्रदाय के लोगों के रूप में नहीं देखा जाता था, वे ही वास्तव में दो पृथक धार्मिक संप्रदायों की भावना के जनक थे।

डॉ. मजूमदार ने लिखा है कि गांधी जी, सुभाष चंद्र बोस और मुहम्मद जिन्ना जैसे नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम एवं भारत की राजनीति को विशेष रूप से प्रभावित किया। उन्होंने अपनी पुस्तक में गांधी जी की कई स्थान पर आलोचना भी की है। वह गांधीजी को भारतीय राष्ट्रवाद का जनक नहीं मानते, बल्कि उन्हें राजनीतिक दृष्टि से एक दुर्बल व्यक्ति लिखते हैं।

उनके अनुसार, भारतीय राष्ट्रवाद के जनक की उपाधि सुरेंद्रनाथ बनर्जी को दी जानी चाहिए। डॉ. मजूमदार के अनुसार गांधी जी द्वारा चलाए गए आंदोलन समय से पूर्व ही अपनी महत्ता को खोने लगे और उनका ‘अहिंसा का सिद्धांत’ भी अधिक समय तक लोकप्रियता अर्जित नहीं कर सका और कांग्रेस का स्वरूप उत्तरोत्तर साम्राज्यवादी बनता गया, जिसके फलस्वरूप मुस्लिम लीग की सौदेबाजी की शक्ति में वृद्धि होने लगी।

परंतु डॉ. ताराचंद्र का मत है कि गांधी जी की भारतीय इतिहास में भूमिका महत्वपूर्ण व क्रांतिकारी है। मजूमदार भारत में स्वाधीनता की स्थापना का श्रेय तत्कालीन परिस्थितियों और भारतीय सेना के असंतोष को देते हैं, परंतु ताराचंद्र की मान्यता है कि यदि गांधी जी का राजनीति में प्रवेश न होता, तब निश्चय ही वस्तुस्थिति कुछ और होती।

अंत में हम यह कह सकते हैं- डॉ. मजूमदार ने केवल मुख्य राजनीतिक बिंदुओं पर ध्यान दिया और सामाजिक व आर्थिक संकटों को नकार दिया, वहीं डॉ. ताराचंद्र ने राजनीतिक घटना के साथ-साथ सामाजिक व अन्य पहलुओं पर भी चिंतन करके गांधी जी की छवि को आदर्श रूप प्रदान किया, जबकि डॉ. मजूमदार के लेखन में बंगाल को सर्वाधिक महत्व प्रदान किया और यहां की परिस्थितियों को भारतीय राष्ट्रवाद के उदय और विकास में पूर्णतया सहायक व उत्तरदायी बताया है। (आईएएनएस/आईपीएन)

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

भारतीय राष्ट्रवादी इतिहास लेखन Reviewed by on . डॉ. अतुल कुमार सिंहडॉ. अतुल कुमार सिंहभारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के संबंध में अनेक इतिहासकारों ने अपने-अपने तरीके से इतिहास लेखन किया है, क्योंकि इनमें से कई राष्ट डॉ. अतुल कुमार सिंहडॉ. अतुल कुमार सिंहभारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के संबंध में अनेक इतिहासकारों ने अपने-अपने तरीके से इतिहास लेखन किया है, क्योंकि इनमें से कई राष्ट Rating:
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