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 भारत के स्वीडन के साथ संबंधों में सुधार | dharmpath.com

Thursday , 29 May 2025

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भारत के स्वीडन के साथ संबंधों में सुधार

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की स्वीडन यात्रा को कई अर्थो में सफल माना जा सकता है। दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए। इनसे द्विपक्षीय आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को गति मिलेगी। स्वीडन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करेगा। इसके अलवा मिसाइल और मानवरहित विमान के प्रयोग को नियंत्रित करने की मांगकर्ता देशों के एलिट समूह में भारत के प्रवेश को उसने समर्थन दिया है।

स्वीडन मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था अर्थात एमटीसीआर का प्रमुख सदस्य है। वह चाहता है कि वैश्विक शांति का समर्थक भारत भी इसका सदस्य बने। इससे समूह को बल मिलेगा। यह चौंतीस देशों का स्वैच्छिक समूह है। परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह अर्थात एनएसजी की सदस्यता का भारतीय दावा पुराना है। भारत को परमाणु मसले पर सर्वाधिक विश्वसनीय देशों में गिना जाता है। फिर भी वह एनएसजी का सदस्य नहीं है। स्वीडन इस विसंगति को दूर करना चाहता है। वह चाहता है कि भारत एनएसजी के साथ ही आस्ट्रेलिया ग्रुप और वासनर समझौते का भी सदस्य बने।

स्वीडन के साथ हुई इस प्रगति से जाहिर है कि वैश्विक स्तर पर भारत का महत्व पहले के मुकाबले बढ़ा है। यदि इस मामले में ताजा प्रकरण का उल्लेख करें, तो यमन की ओर ध्यान जाता है। जहां भारत ने हिंसा के बीच से अनेक देशों के नागरिकों को बाहर निकाला था। वैश्विक स्तर पर भारत की सूझ-बूझ को सराहा गया था। अनेक देशों ने भारत से सहायता की गुहार लगाई थी। विश्व शांति सेनाओं में भी भारत का योगदान सर्वाधिक सराहनीय माना जाता है।

अफगानिस्तान जैसे अशांत और बबार्दी झेल रहे मुल्कों में भारत के लोग अपनी जान जोखिम में डालकर निर्माण व राहत कार्य चलाते हैं। नेपाल के भूकंप में भी भरत ने सर्वाधिक महत्वपूर्ण आपदा प्रबंधन किया। वैश्विक शांति पर भारत में दलगत सीमा से ऊपर होकर राष्ट्रीय सहमति रही है। लेकिन पिछले एक वर्ष में इस दिशा में उसकी भूमिका को अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं का भी योगदान है।

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की स्वीडन यात्रा का सबसे उल्लेखनीय पहलू यह है कि इसमें भारत की वैश्विक भूमिका को जोरदार ढंग से स्वीकार किया गया। स्वीडन ने माना कि वैश्विक शांति के लिए कार्य करने वाले प्रत्येक संगठन में भारत महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। यह बात संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से लेकर परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह तथा कई अन्य संगठनों पर लागू होती है। इसमें शीघ्र ही सुधार करने की आवश्यकता है।

प्रणव मुखर्जी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के न्यायसंगत दावेदारी है। उन्होंने इसका समर्थन करने के लिए स्वीडन को धन्यवाद दिया। राष्ट्रपति ने ‘मेक इन इंडिया’ में स्वीडन के सहयोग का आान किया। इस पर स्वीडन की सकारात्मक प्रतिक्रिया थी। प्रणब मुखर्जी ने इस संबंध में स्वीडन के अनेक प्रमुख कंपनियों के प्रमुखों से मुलाकात की। ये मेक इन इंडिया में सहयोगी बनना चाहते हैं।

राष्ट्रपति ने यहां सरकार की ई-वीजा नीति का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि स्वीडन के लोगों को भारत आने के लिए शीघ्र ही ई-वीजा सुविधा दी जाएगी। इससे पर्यटन तथा व्यापार दोनों को बढ़ावा मिलेगा। स्वीडन में रहने वाले प्रवासी भारतीय भी यहां निवेश तथा अन्य कार्यों में सहयोग देने को तैयार हुए। भारत सरकार इस दिशा में आने वाली अनेक बाधाओं को हटा रही है। कूटनीतिक पासपोर्ट पर वीजा में ढील दिए जाने से संबंधित एक समझौते पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए।

राष्ट्रपति की यात्रा से एक अन्य महत्वपूर्ण उपलब्धि यह भी हासिल हुई कि करीब चार वर्ष बाद दोनों देश रणनीतिक वार्ता पुन: शुरू करने पर सहमत हुए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के माध्यम से दोनों देश न केवल वार्ता शुरू करेंगे, बल्कि रणनीतिक रिश्तों को मजबूत भी बनाएंगे।

इसके अलावा शहरी विकास क्षेत्र में सहयोग, लघु और कुटीर उद्योग, ध्रुवीय और समुद्री अनुसंधान, स्वास्थ्य सेवाओं में सहयोग बढ़ाने पर भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए। स्वीडन के प्रधानमंत्री स्टीफन लोवेन के प्रणब मुखर्जी की यात्रा को बहुत उत्साहजनक बताया। इससे दोनों देशों के बीच रिश्तों में नए सिरे से गर्मजोशी आयी है। इसी क्रम में स्वीडन के रक्षामंत्री पीटर हल्टक्वीस्ट दस जून को भारत की यात्रा करेंगे। इससे सामरिक सहयोग बढ़ाने में सहायता मिलेगी।

रक्षा क्षेत्र में भी ‘मेक इन इंडिया’ के तहत संभावना तलाशी जाएगी। यह अच्छी बात है कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपनी विदेश यात्राओं में मेक इन इंडिया अभियान को प्रमुखता से उठाते हैं। वह इसके मद्देनजर होने वाले आर्थिक सुधारों की भी चर्चा करते हैं। यही कारण है कि स्वीडन की बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने इसमें दिलचस्पी दिखाई है। इस लिहाज से भी राष्ट्रपति की यात्रा को सफल माना जा सकता है।

कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि यूरोपीय देशों से आर्थिक-व्यापारिक व सामरिक संबंध बेहतर बनाने के प्रयासों में राष्ट्रपति की स्वीडन यात्रा का भी विशेष महत्व है। इसके पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस और जर्मनी की यात्रा की थी। प्रणब मुखर्जी की स्वीडन यात्रा को भी उस क्रम में देखा जा सकता है। स्वीडन और भारत दोनों देशों में निर्वाचित सरकारों ने सत्ता संभाली है।

स्वीडन में भी संसदीय लोकतंत्र है। फर्क इतना है कि वहां राष्ट्राध्यक्ष के रूप में राजतंत्र है, जबकि भारत में निर्वाचित राष्ट्रति राष्ट्राध्यक्ष होते हैं। उनकी यात्रा से मेक इन इंडिया, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मंे स्थायी सदस्यता का दावा आदि को आगे बढ़ाने में सहायता मिली है। वहीं आर्थिक, व्यापारिक व रणनीतिक सहयोग की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। चार वर्ष के बाद भारत व स्वीडन के संबंध पटरी पर लौटे हैं। (आईएएनएस/आईपीएन)

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