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मर्स से बचाव के लिए चिकित्सकों ने सरकार को दिए सुझाव

नई दिल्ली, 18 जून (आईएएनएस)। दक्षिण कोरिया में मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्राम (मर्स) के बढ़ते मामले को देखते हुए डॉक्टरों ने भारत में इससे बचने के लिए सरकार को दक्षिण कोरिया से आने वाले यात्रियों को अलग-थलग रखने का सुझाव दिया है।

उन्होंने कहा है कि मर्स स्वाइल फ्लू तथा श्वसन संबंधी किसी अन्य बीमारी से 70 गुना अधिक गंभीर है और जिससे श्वसन तंत्र काम करना बंद कर सकता है साथ ही इससे सभी अंग विशेष कर किडनी भी काम करना बंद कर देते हैं।

सर गंगा राम हॉस्पीटल के वक्षरोग विभाग में सलाहकार अमित धमीजा ने कहा, “यात्रियों को अलग-थलग करने से भारत में इस बीमारी पर रोक लगाई जा सकती है। यह बीमारी न सिर्फ श्वसन तंत्र को बेकार कर देती है, बल्कि उचित इलाज न हो पाने पर इससे मरीज की मौत भी हो सकती है।”

दक्षिण कोरिया में मर्स के 165 मामले की पुष्टि हो चुकी है, जबकि 23 लोगों की मौत हुई है।

मर्स को श्वसन संबंधी नया रोग बताते हुए धमीजा कहते हैं कि मर्स कोरोनावायरस से होता है, जिसकी पहचान सबसे पहले 2012 में सऊदी अरब में हुई थी। कोरोनावायरस वायरस का बड़ा परिवार होता है, जिससे सामान्य सर्दी-जुकाम से सार्स तक हो सकता है।

उन्होंने कहा, “यह बीमारी बिल्कुल नई है, शोधकर्ता इसकी असली वजह का पता नहीं लगा पाए हैं और इस वजह से इसका सही उपचार पता नहीं चल पाया है।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, मर्स में बुखार, खांसी, सांस लेने में कठिनाई, निमोनिया, गैस और डायरिया की समस्या पैदा होती है।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस के प्रख्यात मोलिक्युलर वायरोलोजिस्ट सुनीत के. सिंह कहते हैं कि किसी के शरीर में मर्स का प्रसार पांच से छह दिनों में होता, लेकिन इसमें दो से 14 दिन भी लग सकते हैं।

उन्होंने आईएएनएस से कहा, “मर्स के प्रसार के तरीके का पता अब तक नहीं चल पाया है, यह माना जाता है कि यह संक्रमित व्यक्ति के श्वसन संबंधी स्राव से होता है।”

सुनित ने कहा कि मर्स-सीओवी संक्रमण के उपचार का दो तरीका है, पहला पोलीमेरासे चेन रिएक्शन (पीसीआर) टेस्ट और दूसरा सर्लोजिकल टेस्ट।

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