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मशहूर शायरों की बेटियों ने किया पिता को याद

विकास दत्ता

विकास दत्ता

जयपुर, 22 जनवरी (आईएएनएस)। अपने जमाने में उर्दू के मशहूर शायरों में गिने जाने वाले और अपनी जिंदगी की राहों में विविधताओं के बावजूद सांस्कृतिक कार्यकर्ता सलीमा हाशमी के पिता फैज अहमद फैज और शबाना आजमी के पिता कैफी आजमी में कुछ महत्वपूर्ण था जो दोनों में समान था। दोनों में शायरी को समाजिक बदलाव का हथियार होने में भरोसा, भविष्य के लिए उम्मीद और घृणा फैलाने वाले से नापसंदगी शामिल थी।

अपने पिता से और खुद के लालन-पालन से जुड़ी यादों को साझा करते हुए शबाना और सलीमा दोनों ने जोर दिया कि उनकी मां भी एक महत्वपूर्ण ताकत थी और उनपर अपने पिता के पद चिन्हों का अनुसरण करने का कोई दबाव नहीं था क्योंकि वे जानते थे कि वे इस राह पर अपनी खुद की मरजी से अंतत: आए थे।

जयपुर साहित्योत्सव 2015 में एक विशेष सत्र के दौरान सलीमा (1942) ने कहा कि उनका बचपन 1946-47 के उथल-पुथल के कारण ‘बाधित’ हुआ था। उसके बाद फैज को कारागार में डाला गया और उसके बाद चार वर्ष वे दूर रहे। वे ‘वयस्क हो गई और बचपन, परिवार, दोस्ती और सच्चाई के बारे में महत्वपूर्ण पाठ पढ़ा।’

दूसरी तरफ शबाना (1950) ने अपना बचपन याद किया। बचपन अव्यवस्थित लेकिन आरामदेह था। उन्होंने कहा, “मेरे 9 वर्ष की हो जाने तक हम एक घर में रहते थे जो कुल मिलाकर कम्युनिस्ट पार्टी का कम्यून था..आठ कमरों में आठ परिवार रहते थे।”

अपनी मां के बारे में सलीमा ने कहा कि मां ‘हमारी रक्षा के लिए मदर ट्रिग्रेस’ थी। मां लंदन में स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल रही थी और कृष्ण मेनन की सचिव थीं। उन्होंने फैज साब को नैतिक रूप से ईमानदार बनाए रखा और उनके बुरे दौर और नाउम्मीदी में उनके साथ रहीं।

अभिनेत्री शबाना के यह कहने पर, “हमने उदाहरणों से सीखा कि कुछ चीजें पैसे से कभी नहीं खरीदी जा सकती..शायद उस समय नहीं, लेकिन बाद में पुनरावलोकन में” तालियां गूंज उठी। यह बात उन्होंने इसका उल्लेख करते हुए कहा कि किस तरह बांबे (मुंबई) में उनके सादे जानकी कुटीर कॉटेज में फैज, जोश मलीहाबादी, फिराक गोरखपुरी और बेगम अख्तर आया करती थीं। बेगम अख्तर किसी अमीर भक्त के यहां रुकने की अपेक्षा जानकी कुटीर कॉटेज में ठहरना पसंद करती थी।

कैरियर की पसंद के बारे में सलीमा और शबाना दोनों ने कहा कि उन पर कोई दबाव नहीं था क्योंकि उनके माता-पिता खास तौर से उनके पिता जानते थे कि वे अपनी इच्छा से समाजिक हिताहित का ज्ञान विकसित कर सकती थी।

कैफी की फिल्म में कैरियर के बारे में शबाना ने उल्लेख किया कि उन्होंने पैसे के लिए गीत लिखे। शबाना ने कहा, “अपने कुछ समकालीनों जैसे मजरूह (सुल्तानपुरी) या साहिर (लुधियानवी) की तुलना में उनका काम काफी छोटा था लेकिन फिल्म के फ्लॉप होने पर भी उनके लिखे गीत लोकप्रिय हुए.. लेकिन फिर तब क्या हुआ। धारणा बनी कि वे ‘अनलकी’ हैं और उनका इस्तेमाल बहुत ज्यादा नहीं हुआ।”

उन्होंने आगे कहा, “हालांकि एक दिन फिल्म निर्माता चेतन आनंद आए और उनपर दबाव डाला। जब मेरे पिता ने अपने रिकार्ड का उल्लेख किया तो आनंद ने कहा कि उनका भी रिकार्ड वैसा ही है और संभव है उनका खराब सितारा एक दूसरे को निकाल लाए..परिणाम के रूप में ‘हकीकत’ सामने आया”।

सलीमा और शबाना दोनों इसपर सहमत थे के उनके पिता समान रूप से रोमांटिक थे। शब्दों में भी और दिल से भी। महिलाओं का उनपर असर की याद दिलाने के लिए दोनों ने कुछ छोटी कहानियां सुनाईं।

इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।

मशहूर शायरों की बेटियों ने किया पिता को याद Reviewed by on . विकास दत्ताविकास दत्ताजयपुर, 22 जनवरी (आईएएनएस)। अपने जमाने में उर्दू के मशहूर शायरों में गिने जाने वाले और अपनी जिंदगी की राहों में विविधताओं के बावजूद सांस्कृ विकास दत्ताविकास दत्ताजयपुर, 22 जनवरी (आईएएनएस)। अपने जमाने में उर्दू के मशहूर शायरों में गिने जाने वाले और अपनी जिंदगी की राहों में विविधताओं के बावजूद सांस्कृ Rating:
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