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मुरथल मामला : लोगों को कारों से खींचने की गई कोशिश

नई दिल्ली, 1 मार्च (आईएएनएस)। बबिता शर्मा बीते 22 फरवरी के भयावह अनुभव को कभी नहीं भूल पाएंगी। वह उस दिन परिवार के साथ कार से राष्ट्रीय राजमार्ग-1 से सोनीपत जिले के मुरथल के पास से गुजर रही थीं।

नई दिल्ली, 1 मार्च (आईएएनएस)। बबिता शर्मा बीते 22 फरवरी के भयावह अनुभव को कभी नहीं भूल पाएंगी। वह उस दिन परिवार के साथ कार से राष्ट्रीय राजमार्ग-1 से सोनीपत जिले के मुरथल के पास से गुजर रही थीं।

सुबह होने में देर थी। तब करीब तड़के के तीन बज रहे थे। सुखदेव ढाबा से आगे बढ़ने के बाद वाहनों का जाम मिला। कुछ समझ पाते, उसके पहले भीड़ ने उनके परिवार को पकड़ लिया और उनकी पिटाई करने लगे। उनकी कार को तोड़ डाला। इतना ही नहीं, उन लोगों ने उन्हें ‘जाट-जाट’ जपने के लिए मजबूर कर दिया।

बबिता उपद्रवियों के आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाती रहीं। उन्होंने कहा, “हमारी कार को जला दो भइया, लेकिन भगवान के लिए हमें मत मारो।”

उस समय हरियाणा एक हफ्ते से जाट आंदोलन की चपेट में था। जाट समुदाय नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहा था।

बता दें कि जाट आंदोलन के दौरान हिंसा में 30 से ज्यादा लोगों की जान गई है और लगभग 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति का नुकसान हुआ है।

बबिता अभी यहां गुरु तेग बहादुर अस्पताल में हैं और पति सतीश कुमार शर्मा की देखभाल कर रही हैं। शर्मा का हाथ कई जगह टूट गया है और वह ऑपरेशन होने का इंतजार कर रहे हैं।

बबिता के भतीजे हरजिंदर के सिर में 25 टांके पड़े हैं। जो कुछ हुआ उसे देखकर बबिता का बेटा और दूसरा भतीजा सदमे में है। ईश्वर की कृपा से दोनों बाल-बाल बच गए हैं।

कार का शीशा टूटने से बबिता के शरीर पर भी जख्म आए हैं।

दिल्ली में रहने वाला यह परिवार हिमाचल प्रदेश स्थित नैना देवी का दर्शन करके लौट रहा था। उन्हें जाट आंदोलन की जानकारी थी और वह उस रास्ते से लौटने से बच सकता था।

बबिता के पति ने इस बारे में कहा, “हमलोगों ने उस रास्ते से लौटने का फैसला तब किया, जब हमें यह बताया गया कि सरकार ने उनकी बात मान ली है और आंदोलन अब शांत हो गया है।”

सतीश याद करते हुए घटना के बारे में बताते हैं, “नीली वर्दी में लोगों को देखा तो लगा कि हम सुरक्षित हैं। अचानक उन सुरक्षाकर्मियों ने हिंसा पर उतारू एक भीड़ का पीछा करना शुरू कर दिया और हमलोगों को ऐसे ही छोड़ दिया। तभी वहां हथियारों से लैस बहुत सारे युवक खेतों से निकल आए। उन्होंने आते ही हर आदमी पर हमला करना और महिलाओं के साथ बदसलूकी शुरू कर दी।”

वे लोगों को उनकी कारों से खींचकर निकालने की कोशिश कर रहे थे और लोगों को जोर-जोर से बार-बार ‘जाट-जाट’ बोलने का आदेश दे रहे थे।

सतीश बताते हैं, “मेरी पत्नी ने उनसे हमारे बच्चों को छोड़ देने की गुहार लगाई। जवाब में उन लोगों ने गालियां दीं। उन्होंने कार का दरवाजा खोलने की कोशिश की, लेकिन वे खोल नहीं पाए। मेरा गेट खुला मिल गया और उन्होंने मुझ पर हमला कर दिया। वे सभी युवक थे।”

उस समय राजमार्ग पर बहुत सी कारें थीं और वे उन पर हमला करते आगे बढ़ रहे थे।

सतीश ने बताया, “मेरे भतीजे के सिर से खून निकल रहा था। पत्नी घायल थी। हम लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। जब तक वे दूसरी कारों को निशाना रहे थे, मेरा भतीजा छुपने के लिए भागकर धान के खेत में चला गया। हम लोग भी उसके पीछे-पीछे हो लिए।”

उन्होंने आगे बताया, “उसमें एक घंटे छिपे रहने के दौरान लोगों की चीखें कानों तक आती रहीं। इसके बाद हम लोग पास के एक फार्म हाउस की तरफ बढ़े वहां ओम सिंह ने हमारी मदद की। वे हमें थाने तक ले गए। इतना ही नहीं, उन्होंने ही हम लोगों को वहां से सुरक्षित बाहर निकाला। ओम सिंह भी जाट समुदाय से हैं।”

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