नई दिल्ली, 27 मई (आईएएनएस)। बॉलीवुड अभिनेत्री अदिति राव हैदरी एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्हें पता है कि उनके लिए कोई न तो फिल्में बना रहा है और ना ही उनके करियर के लिए योजना बना रहा है, लेकिन उनके अंदर आत्मविश्वास है, जिसके कारण वे निडर होकर फैसला लेती हैं। वे लड़कियों की पढ़ाई की पुरजोर वकालत करती हैं, क्योंकि इससे महिला समुदाय तथा पूरा देश समृद्ध होगा।
नई दिल्ली, 27 मई (आईएएनएस)। बॉलीवुड अभिनेत्री अदिति राव हैदरी एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जिन्हें पता है कि उनके लिए कोई न तो फिल्में बना रहा है और ना ही उनके करियर के लिए योजना बना रहा है, लेकिन उनके अंदर आत्मविश्वास है, जिसके कारण वे निडर होकर फैसला लेती हैं। वे लड़कियों की पढ़ाई की पुरजोर वकालत करती हैं, क्योंकि इससे महिला समुदाय तथा पूरा देश समृद्ध होगा।
अदिति ने आईएएनएस को ईमेल के जरिए दिए इंटरव्यू में बताया, “मैं वर्तमान में जीती हूं और हमेशा आगे का सोचती हूं। मैं 2010-11 से काम कर रही हूं। कभी-कभी लड़खड़ाई भी, लेकिन बाद में संभल गई।”
हैदराबाद में जन्मीं और दिल्ली में पलीं-बढ़ीं अदिति ने राकेश ओम प्रकाश मेहरा की फिल्म ‘दिल्ली-6’ से बॉलीवुड में कदम रखा था। इसके बाद वह हिंदी और तमिल सिनेमा में काम कर रही हैं। उनका कहना है कि ऐसे भी दिन आए जब उन्हें लगा कि वे फिल्मी दुनिया से बाहर हो सकती हैं।
उन्होंने कहा, “मैं ज्यादा करने, ज्यादा सीखने और ज्यादा चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहती हूं।”
बॉलीवुड में जगह बनाने के सवाल पर उन्होंने कहा, “अगर आप किसी बच्चे को अंधेरे में छोड़ दें तो उसकी आंखें अंधेरे की आदी हो जाती हैं और वे अंधेरे में भी रोशनी ढूंढ लेती हैं, इसी तरह मेरे संघर्ष ने मुझे इससे लड़ने की शक्ति दी। कोई मेरे लिए फिल्में नहीं बना रहा है ना मेरा करियर बनाने के लिए योजना बना रहा है।”
अदिति ने हिंदी फिल्मों ‘ये साली जिंदगी’, ‘रॉकस्टार’, ‘लंदन पेरिस न्यूयार्क’, ‘मर्डर 3’, ‘बोस’, ‘खूबसूरत’, ‘गुड्डू रंगीला’, ‘वजीर’, ‘भूमि’ और ‘पद्मावत’ के अलावा दक्षिण सिनेमा में ‘प्रजापति’, ‘श्रंगारम्’, ‘कातरू वेलीयीदई’ जैसी फिल्मों में काम किया है।
दुनियाभर में चल रही लैंगिक समानता की बहस के बीच अदिति को लगता है कि भारत में लैंगिक असंतुलन बड़े स्तर पर है।
उन्होंने कहा, “मैं इसके बारे में मुखर हूं, क्योंकि यह मुझे परेशान करती है। मैं बदलाव चाहती हूं, हम बदलाव चाहते हैं, और शिक्षा को प्राथमिकता देकर ही यह हो सकता है. हमें साक्षरता नहीं, बल्कि अच्छी शिक्षा चाहिए। जब आप एक लड़की को पढ़ाते हैं, जब आप उसे समान अवसर प्रदान करते हैं तो आप उसके परिवार को शिक्षित करते हैं इससे उसका समुदाय और पूरा देश समृद्ध होता है।”
उन्होंने कहा, “इसके साथ-साथ हमें पुरुषों को भी सशक्त करने की जरूरत है, जिससे वे लैंगिक समानता को अपने जीवन का हिस्सा मानकर चलें।”