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‘वेलेंटाईन डे’ : राष्ट्र एवं धर्मकी हानि करनेवाला उत्सव !

February 14, 2015 11:00 am by: Category: सम्पादकीय Comments Off on ‘वेलेंटाईन डे’ : राष्ट्र एवं धर्मकी हानि करनेवाला उत्सव ! A+ / A-

‘वेलेंटाईन डे’ विश्वभरमें १४ फरवरीको मनाया जाता है । देशभरके युवक-युवतियों द्वारा महाविद्यालय, पाठशाला, पर्यटन स्थल इत्यादी जगह पाश्चात्त्योंकी इस ‘डे’ संस्कृतिका अंधानुकरण बडी मात्रामें किया जाता है । प्रॉईड नामक प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकने कहा है कि ‘मनको व्याप्त करनेवाली कोई कल्पना मनमें आनेपर तथा उसकी अतिशयोक्ति होनेपर मनोविकार हो सकता है ।’ इसीका परिणाम ‘डे’ संस्कृतिके रूपमें देशभरमें दिखाई दे रहा है । ‘वेलेंटाईन डे’के दुष्परिणामस्वरूप युवा पीढीका अधःपतन हो रहा है तथा यह देशके लिए एक बडी समस्या बन गई है । इस संदर्भमें एक मनोचिकित्सकके अनुभव तथा उनके विचार सनातन प्रभातके सौजन्यसे अपने पाठकोंके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं ।

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‘वेलेंटाईन डे’के दुष्परिणामोंके कुछ उदाहरण
‘वेलेंटाईन डे’के नामपर आज हमारे देशमें पाश्चात्त्य संस्कृतिका अंधानुकरण किया जा रहा है । उसकी बलि चढकर विद्यालय, महाविद्यालयोंमें छात्र-छात्राएं शुभेच्छापत्र देनेके निमित्तसे अपना प्रेम व्यक्त करते हैं । वस्तुतः वह प्रेम नहीं होता, अपितु कोमल, अपरिपक्व आयुका वह विपरीत लैंगिक आकर्षण होता है । ‘वेलेंटाईन डे’के भोगवादकी बलि चढी कुछ स्त्रियोंके संदर्भमें एक मनोचिकित्सकको हुए अनुभव उन्हींके शब्दोंमें नीचे दिए जा रहे हैं ।
१. एक महिला (आयु ३८) मानसिक उपचारके लिए ‘प्रवरा मेडिकल महाविद्यालय’के आयुर्वेद विभागमें आई थी । वह जीवनके प्रति अत्यधिक उदासीन थी । मैंने उससे ‘काउन्सलिंग’के रूपमें संवाद किया । तब उसके जीवनकी एक-एक कर घटनाएं उजागर होती गर्इं । उस युवतीने अपने घरवालोंका विरोध स्वीकार कर, अपने ही महाविद्यालयके परप्रांतीय विद्यार्थीसे ‘वेलेंटाईन डे’पर विवाह किया था । ससुराल जानेपर वहांकी संस्कृति, रहन-सहन, आचारविचार तथा वहांके लोगोंके स्वभावका भेद उसकी ध्यानमें आया तथा वह घोर निराशामें डूब गई एवं मानसिक रोगी बन गई ।

२. ‘येरळा आयुर्वेद महाविद्यालय’के पंचकर्म विभागमें एक दिन एक युगल पंचकर्म चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विषयक परामर्श लेने हेतु आया था । उन्होंने भी अंतर्जातीय विवाह किया था । महाराष्ट्रके एक निजी महाविद्यालयमें वे दोनों पढते थे । वे वर्गमित्र थे । महाविद्यालयमे ‘वेलेंटाईन डे’के समारोहमें शुभेच्छापत्रके रूपमें एक-दूसरेके प्रति प्रेम व्यक्त कर, विवाहका प्रस्ताव रखा एवं घरवालोंका विरोध होते हुए भी विवाह किया । विवाहोपरांत ज्ञात हुआ कि वह व्यक्ति ‘सैडिस्ट‘ (परपीडक) है । भिन्न स्वभाव एवं वातावरणके कारण वह युवती भावनिक, मानसिक एवं आत्मिक दुविधामें फंस गई तथा गंभीर रूपसे मानसिक रोगी बन गई ।

३. तीसरे ‘केस’में पनवेलके ‘केरलीय आयुर्वेद सेंटर’में एक युगल मानसिक उपचार हेतु आया था । कार्यालयमें दोनोंका परिचय हुआ । ‘वेलेंटाईन डे’पर दोनोंने चर्चमें जाकर विवाह किया । विवाहके पश्चात दो भिन्न संस्कृतियां, भाषा, आचारविचार तथा वैचारिक स्तरपर प्रचंड भेद देखकर उस संवेदनशील एवं भावुक युवतीको आघात पहुंचा एवं इसका परिणाम उसके स्वास्थ्यपर हुआ ।

युवा पीढीका अधःपतन
वहांकी हिंदू-तेलुगू युवतियां प्रांतीय अस्मिताके बलपर सुरक्षित थीं; परंतु तथाकथित अग्रसर तथा प्रगतिशील कहलानेवाले महाराष्ट्र राज्यमें पाश्चात्त्य संस्कृतिकी हवा वेगसे बहनेके कारण यहांके निजी महाविद्यालयोंमें मनाए जानेवाले ‘वेलेंटाईन डे’की बलि चढकर यहांकी युवतियां परप्रांतीय युवकोंकी भूलभुलैयामें फंस जाती हैं । इस राज्यकी युवा पीढीके होनेवाले अधःपतनकी गंभीरता वास्तवमें किसीको है क्या ? यह प्रश्न उत्पन्न होता है । इन प्रेमप्रकरणोंके कारण तथा अंतर्जातीय विवाहके कारण युवकोंका अर्थात देशकी भावी पीढीके जीवनकी हानि होना, यह देशके समक्ष बडा सामाजिक प्रश्न बनता है तथा इस प्रश्नके लिए यह ‘डे’ सहायता करता है ।
संस्कृतिविहीनता
क्षणिक आकर्षणकी बलि चढकर जीवन नष्ट हो सकता है, इसका भान इन युवाओंको नहीं होता । यह चलचित्रोंमें दिखाए जानेसमान प्रेम नहीं है, अपितु जीवनभरका प्रश्न होता है । जीवन इतना सरल नहीं है । रीतिरिवाज, पद्धति, संस्कार, वैचारिक एवं आर्थिक स्तर इत्यादिमें से किसीमें भी भेद होनेपर एक-दूसरेके साथ समयोजन करना कितना कठिन होता है, इसका अनुभव माता-पिताको होता है, जिसे वे बच्चोंके मनपर अंकित करनेमें न्यून पड जाते हैं । विद्यालय एवं महाविद्यालयोंमें किसी प्रकारकी नैतिकता तथा धर्मकी शिक्षा नहीं दी जाती । इसलिए जीवनसाथी चुनते समय क्या देखना चाहिए अथवा क्या नहीं, यह युवा पीढी समझ नहीं पाती । इसके साथ ही पश्चिमी संस्कृतिका प्रभाव युवा पीढीपर दिन प्रतिदिन बढ रहा है । दूसरी ओर पारंपरिक सांस्कृतिक नियमोंका पालन न कर, स्वयंको आधुनिक दर्शानेकी होड सी लग गई है । इन सबके परिणामस्वरूप युवक-युवतियां भावनावश आपसी संस्कृतियोंमें भेद होते हुए भी विवाह करते हैं । इसके लिए यह ‘डे’ संस्कृति प्रोत्साहित करनेवाली सिद्ध होती है ।
‘वेलेंटाईन डे’के घातक दुष्परिणामोंसे अवगत करवाना आवश्यक है । उसके लिए नैतिकताका पाठ पढाना अर्थात जीवनके नीति नियम तथा बंधन पालन करने हेतु बाध्य करनेवाली धर्मशिक्षा देना कितना अनिवार्य है, यह आपके ध्यानमें आएगा !
पाश्चात्त्य सभ्यताके अंधानुकरणके कारण हो रहे युवा पीढीके विनाशपर प्रतिबंध लगानेके लिए उसका प्रबोधन करना आज आवश्यक है । हिंदू जनजागृति समिति गत अनेक वर्षोंसे यह कार्य विविध स्तरोंपर अविरत कर रही है । ‘वेलेंटाईन डे’के विषयमें प्रबोधन करनेके लिए समिति निम्न मार्गोंसे प्रबोधन कर रही है ।
१. ‘वेलेंटाईन डे’के दुष्परिणाम दिखानेवाले हस्तपत्रक महाविद्यालय, निजि शिक्षावर्ग, रेलवे स्थानक, बस स्थानक तथा भीडभरे स्थानोंपर वितरित करना ।
२. भीडभरे स्थानोंपर होर्डिंग तथा भित्तीपत्रक (पोस्टर्स) लगाना
३. महाविद्यालयोंमें प्रबोधनात्मक व्याख्यानोंका आयोजन करना
४. समाचारप्रणालोंके चर्चासत्र तथा साक्षात्कारद्वारा प्रबोधनात्मक जानकारी देना
५. समिति तथा समवैचारिक संगठनोंके जालस्थलद्वारा प्रबोधन करना
६. प्रभातफेरी तथा वाहनफेरियोंके माध्यमसे प्रबोधन करना
७. समवैचारिक तथा धार्मिक संगठन-संप्रदायोंका संगठन कर उनके सत्संग, बैठकों तथा धर्मशिक्षावर्गोंमें प्रबोधनात्मक विषय प्रस्तुत करना
‘वेलेंटाईन डे’को सीमापार करना अकेलेका कार्य नहीं है ! हिंदू जनजागृति समितिने उस दिशामें एक कदम बढाया है । आइए, हम भी अपने स्तरपर इस कार्यमें सम्मिलित होते हैं ! योगेश्वर श्रीकृष्ण हमें अवश्य सफलता प्रदान करेंगे !

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