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शांति सेना और सुरक्षा परिषद

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अधिवेशन में प्रतिवर्ष सदस्य देशों का जमावड़ा न्यूयार्क में होता है, लेकिन इस बार मुख्य समारोह से बाहर की गतिविधियों को अधिक चर्चा मिली। इसमें संयुक्त राष्ट्र पीस कीपिंग समिति का प्रमुखता से उल्लेख किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र कांफ्रेंस हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसका आयोजन किया था। इसमें महासचिव बान की मून सहित अनेक देशों के शासकों ने भाग लिया। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इसमें वैश्विक शांति पर विचार-विमर्श किया गया। विश्व के अनेक देशों में आज भी विभिन्न देशों के सैनिक शांति बहाली के कार्यो में लगे हैं।

कहने को इस सम्मेलन में पचास देश शामिल हुए, लेकिन जब संयुक्त राष्ट्र शांति सेना की बात चली तो मसला चुनिंदा देशों के बीच सिमट गया। इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों के अलावा सबसे प्रमुखता से भारत का ही नाम लिया गया। बैठक में शामिल शेष पैंतालिस देशों की भूमिका इसमें बेहद सीमित रही है।

विडम्बना देखिए, ओबामा द्वारा बुलाई गयी इस बैठक में पाकिस्तान जैसे देश भी शामिल थे जो विश्व की समस्या बढ़ाने का काम करते हैं। विश्व की प्रत्येक आतंकी वारदात के तार किसी न किसी रूप में पाकिस्तान से जुड़े रहे हैं। उसी के कारण अफगानिस्तान में शांति की स्थापना नहीं हो पा रही है।

वैसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस बैठक का पूरा फायदा उठाया। उन्होंने इसे सुरक्षा परिषद में सुधार से जोड़ दिया। परिणाम यह हुआ कि यह बैठक सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रभावी आवाज से समाप्त हुई। मोदी के तर्को का किसी के पास जवाब नहीं था। संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में भारत के सैनिकों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

अमेरिका और यूरोपीय देशों के सैनिक हवाई हमलों में निपुण होते हैं। जमीन और प्रतिकूल जलवायु व भौगोलिक स्थिति में उनकी हिम्मत जवाब देने लगती है। जबकि भारत के सैनिक प्रत्येक परिस्थिति का सामना करने को तैयार रहते हैं। अभी यमन और नेपाल में भारतीय सैनिकों ने शांतिरक्षक के रूप में अपना लोहा मनवाया है।

मोदी ने यही कहा बेहतरीन कार्य भारत के सैनिक करें, लेकिन निर्णय प्रक्रिया केवल पांच देशों के नियंत्रण में रहे। यह गलत अन्यायपूर्ण व अव्यावहारिक स्थिति कई बार अभियान को कमजोर करती है। सैनिकों के जीवन पर अनावश्यक जोखिम बढ़ता है। ऐसे में सुरक्षा परिषद का विस्तार होना चाहिए। भारत को उसका सदस्य बनाना चाहिए। यह बैठक का मुख्य मुद्दा बन गया।

कूटनीतिक सफलता

संयुक्त राष्ट्र के करीब दो सौ सदस्य सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग पर सहमत हुए। सुधार दस्तावेज के मसौदे पर अगले एक वर्ष तक चर्चा होगी। यह प्रस्ताव बिना वोटिंग के पारित हुआ। इसे खासतौर पर भारतीय कूटनीति की सफलता माना जा रहा है क्योंकि चीन सुधार का विरोधी रहा है लेकिन भारत की तैयारियों को देखते हुए वह सुधार प्रस्ताव की दस्तावेजी तैयारी पर वोट की मांग से पीछे हट गया। उसने अपनी संभावित पराजय को देखते हुए यह फैसला लिया था।

भारत इसमें सुधार का सूत्रधार बना है, अधिकांश देश बदलाव में उसके साथ हैं। इतना ही नहीं अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन ने खुले तौर पर भारत को स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन किया। बताया जाता है कि मोदी ने इन देशों के शासकों से विशेष मुलाकात करके उन्हें पहले ही राजी कर लिया था।

जाहिर है सुरक्षा परिषद में सुधार के लिए अगला एक वर्ष बेहद महत्वपूर्ण होगा। लिखित दस्तावेज का प्रस्ताव पहली बार पारित हुआ है। इसके बाद सुधार के विरोधियों का अलग-थलग पड़ना तय है। (आईएएनएस/आईपीएन)।

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