Tuesday , 21 May 2024

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‘सुरक्षा परिषद में सुधार के विरोधी अलथ-थलग पड़ जाएंगे’

संयुक्त राष्ट्र, 15 सितम्बर (आईएएनएस)। संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष सैम कहंबा कुटेसा ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार का विरोध करने वाले देशों को चेताते हुए कहा है कि ऐसा करने से उनके अधिक अलग-थलग पड़ने का खतरा पैदा हो जाएगा।

महासभा ने सोमवार को कुटेसा के उस मसौदे को मंजूरी दे दी, जिसमें सुरक्षा परिषद के सुधार के लिए वार्ता की बात कही गई है। उन्होंने संवाददाताओं से कहा, “सदस्यों (संयुक्त राष्ट्र के) का संदेश बिल्कुल स्पष्ट है। जो लोग सुधार का विरोध कर रहे हैं, वे आज नहीं तो कल खुद को औरों से अलग-थलग पाएंगे।”

सुरक्षा परिषद के सुधार के साथ भारत की स्थायी सदस्यता का मुद्दा जुड़ा हुआ है। एक दशक से यह मामला लटका हुआ है। इस मुद्दे पर वार्ता के लिए मसौदे को ही अंतिम रूप नहीं दिया जा सका था। कुछ देशों का कहना था कि सर्वसम्मति होने पर ही मसौदे को मंजूर किया जाए। अब सोमवार को इस मसौदे को मंजूरी मिलने के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार की गुंजाइश बनी है। सोमवार को ही कुटेसा का महासभा अध्यक्ष का कार्यकाल भी समाप्त हो गया।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई प्रतिनिधि अशोक कुमार मुखर्जी ने वार्ता मसौदे को मंजूरी मिलने को ऐतिहासिक करार दिया है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधारों का विरोध करने वालों में चीन और रूस भी शामिल हैं। इसका विरोध करने वाले देश इटली के नेतृत्व वाले युनाइटेड फॉर कन्सेस नामक समूह में शामिल हैं। इनकी पीठ पर पाकिस्तान का हाथ है।

इन देशों ने कुटेसा के वार्ता मसौदे का समर्थन किया है, लेकिन दूसरी तरफ उनकी आलोचना भी की है।

संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की स्थायी प्रनिधि मलीहा लोधी ने सुधार प्रक्रिया को खामियों से भरा बताया है और कहा है कि कुटेसा ने मनमाने तरीके से काम किया। भारत की स्थायी सदस्यता की इच्छा का जिक्र किए बगैर उन्होंने कहा कि जो लोग प्रक्रियागत तरीकों से लक्ष्य हासिल करने के लिए दांव खेल रहे हैं, वे कभी कामयाब नहीं होंगे।

लोधी और चीन के दूत लियु जीयी ने कहा कि मसौदे को मंजूरी एक तकनीकी बात है। पहले भी ऐसे मसौदों को मंजूरी मिलती रही है। यह सुधार प्रक्रिया की आस को जिंदा रखने की कोशिश है। लेकिन भारतीय प्रनिधि मुखर्जी ने कहा कि यह तकनीकी बात नहीं है। मसौदे की मंजूरी का काफी महत्व है।

कुटेसा ने संवाददाताओं से कहा कि सुधार के विरोध की एक वजह तो यह भी है कि कुछ संबद्ध देशों के बीच विवादों का लंबा इतिहास रहा है। उन्होंने कहा, “मनोवृत्ति बदलने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि किसी से कोई चीज लेकर किसी और को दे दी जाएगी। यह अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा और शांति की क्षमता बढ़ाने की कवायद है।”

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