लखीमपुर-खीरी, 8 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी के पलिया ब्लॉक के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं की कसीदाकारी को पंख लग गए हैं। कभी जंगलांे से जलौनी लकड़ी बेचकर परिवार का भरण पोषण करने वाली यहां की महिलाओं ने हाथों के हुनर को आत्मनिर्भरता का जरिया बना लिया है। इन्होंने दरी कारपेट, पावदान, फाइल कवर आदि बनाना शुरू कर दिया है। एक हजार से ज्यादा महिलाओं को समूहों से जोड़कर उन्हें प्रशिक्षण देने के बाद सिलाई मशीन बांटी गई है।
लखीमपुर-खीरी, 8 जून (आईएएनएस/आईपीएन)। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर-खीरी के पलिया ब्लॉक के जंगलों में बसी थारू जनजाति की महिलाओं की कसीदाकारी को पंख लग गए हैं। कभी जंगलांे से जलौनी लकड़ी बेचकर परिवार का भरण पोषण करने वाली यहां की महिलाओं ने हाथों के हुनर को आत्मनिर्भरता का जरिया बना लिया है। इन्होंने दरी कारपेट, पावदान, फाइल कवर आदि बनाना शुरू कर दिया है। एक हजार से ज्यादा महिलाओं को समूहों से जोड़कर उन्हें प्रशिक्षण देने के बाद सिलाई मशीन बांटी गई है।
वैसे तो आधुनिकता के युग में महिलाओं को पुरूषों के बराबर खड़ा किया जा रहा है। लेकिन आज भी ग्रामीण अंचल में कन्या को तिरस्कार की नजरों से देखा जाता है। चूल्हा चैका करना, बच्चे खिलाना और घर के कामकाज करना ही नारी की परिपाटी बन चुकी है।
लेकिन दुधवा टाइगर रिजर्व के जंगलों के बीच बसी अनुसूचित जनजाति थारू की महिलाओं ने हाथों के हुनर को ही अपनी आत्मनिर्भरता का जरिया बना लिया और आज इसी के बलबूते पुरूषों के बराबर खड़ी हो गई हैं। जिसकी शुरुआत 2009 में विश्व प्रकृति निधि के सहयोग से हुई, जब थारू हथकरघा घरेलू उद्योग की शुरूआत हुई। जो अपने हाथों का कमाल दिखा रही हैं।
सीडीओ नितीश कुमार की विशेष पहल पर पलिया को एनआरएलएम मंे इंसेटिव ब्लॉक भी घोषित कर दिया गया है। अब इन महिलाओं की बनाई गयी सामग्री को मार्केट में भेजा जा रहा है।
सीडीओ नितीश कुमार ने बताया कि पलिया क्षेत्र में 20 गांवों में आदिवासी जनजाति के लोग निवास करते हैं। मूलत: जंगल के अन्दर बसे इन गांवों की महिलाएं जंगलों से जलौनी लकड़ी बेचने में लगी थीं। इन महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिये एक प्लान तैयार किया गया। इसमंे महिलाओं को समूह बनाकर प्रशिक्षण दिया गया। बात जब उद्योग लगाने की आई तो इन समूहों को एनआरएलएम से रिवाल्विंग फंड देकर हथकरघा, सिलाई मशीन आदि के व्यवस्था की गयी। यहां अब 75 समूहों का गठन किया जा चुका है।
सीडीओ ने बताया कि रिवाल्विंग फंड से हथकरघा, हैण्डलूम, पावलूम आदि लगवाए गए हैं। घरों में काम से फुर्सत पाते ही महिलायें जूट के बैग, दरी कारपेट, टाट पट्टी, योगा कारपेट आदि बना रही हैं। उन्होंने बताया कि तीन महीने मंे ही थारू महिलाएं हुनर सीखकर कई सामग्री बनाने लगी हैं। अब इसको मार्केट दिया जा रहा है। जिससे जो सामग्री बना रही है वह लोगों तक पहुंचे और इसका फायदा महिलाओं को मिले।
उपायुक्त मनरेगा अजय कुमार पाण्डेय ने बताया कि सीडीओ की पहल पर सालांे से बन्द इस प्रशिक्षण केन्द्र की मरम्मत कराकर इसे खुलवा दिया गया और यहां हथकरघा, सिलाई मशीनें आदि की व्यवस्था कर प्रशिक्षण शुरू कराया गया गया है।