धर्मपथ(भोपाल)– सात समंदर पार अर्मेनिया से हिंदी के अध्ययन की ललक सहेजे एक नवयुवती भारत में पिछले 6 वर्षों से हिंदी में पढाई कर रही है,वर्तमान में हिंदी में कर रही पीएचडी कर रही इस विद्यार्थी की हिंदी में वाक्पटुता के सम्मेलन में आये सभी प्रतिभागी कायल हो गए.इसने अपने अनुभव और समझ से सटीक टिप्पणियां प्रस्तुत कीं.चूंकि यह भारत की आत्मा से अभी तक जुडी नहीं है अतः अनुभव की कमी उसके उद्गारों में झलकी.माने के उज्जवल भविष्य की धर्मपथ शुभकामनाएं देता है.उसके विचार उसके पटल से प्रस्तुत हैं.
१०वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन समाप्त हुआ, अति व्यस्त होने के कारण आपसे कुछ साझा न कर पाई तो आज हिंदी दिवस के शुभ अवसर पर पहले तो हम सभी हिंदी प्रेमियों को बहुत-बहुत बधाई देना चाहा, दूसरा इस सम्मेलन पर अपनी कुछ बातें रखने की भी आवश्यकता महसूस हुई. कई मित्रों से एक ही प्रशन का सामना कर रही हूँ कि सम्मेलन कैसा रहा…तो दोस्तों बताऊ, इस विश्व हिंदी सम्मेलन को बेहतरीन रूप से आयोजित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा गया था. जबरदस्त तैयारी की गयी थी. प्रशंसा के योग्य अनेक बातें हैं.. लेकिन कुछ ऐसी अंदरूनी बातें हैं, जिन्हें नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता और यह हम सभी साहित्य से जुड़े विद्यार्थियों ने महसूस किया था.
यह सम्मलेन राजनीतिकरण से अछूता नहीं रहा…यह इसकी पहली और बड़ी कमी थी…बहुत अच्छे विषय चुने गये थे. हृदयग्राही नारें व् उक्तियाँ ज्यादा रही, नए सुझाव कम. पर अधिकांश प्रतिभागियों के चेहरे पर जुनून और हिंदी के भाग्य की चिंता साफ़ झलक रही थी. अधिक से अधिक सुझाव आम जनता ने ही दिया था. अच्छा, किसी के मन में संदेह न हो, पहले से ही मोदी जी ने यह घोषणा कर दी कि “मैं साहित्य की बात करने नहीं आया हूँ, मैं भाषा की बात करने आया हूँ”. इस कथन को मैं ग़लत नहीं समझती, भाषा पर अत्यधिक ज़ोर देना ग़लत नहीं, और तो और यह समय की मांग है, पर साहित्य को भाषा से विलग करना भी सही नहीं. मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जी का वक्तव्य सुनना स्वयं में एक सुखद अनुभव था. ऐसे संवेदनशील, प्रतिबद्ध और सच्चे नेताओं की बड़ी कमी है इस देश में. बातचीत करते समय उन्होंने जो पहला प्रशन पूछा वह यही था कि “आपको इस सम्मेलन में कोई परेशानी तो नहीं हुई बहिन?” मुझे पूरा विश्वास है, उनके नेतृत्व में मध्य प्रदेश विकास के पथ पर अग्रसर होगा.
बहरहाल, मित्रों, एक बात स्पष्ट है. हिंदी भाषा हमसे परीक्षा ले रही है. हिंदी का सर झुका हुआ है, अंग्रेजी न झुकाया है. यह कैसी विडंबना है! अंग्रेजों के शासन को ख़त्म कर डालने में दो सौ वर्ष लग गये, भगवान न करें कि इनकी भाषा के वर्चस्व को ख़त्म करने में हमें भी दो सौ वर्ष लग जाये. एक बात तो स्पष्ट नज़र आता है, भाषा की इस मुक्ति संग्राम में यदि भविष्य में किसी प्रदेश की उल्लेखनीय भूमिका की बात की जाएगी, तो मध्य प्रदेश के विश्वविद्यालयों का स्थान सर्वोपरी होगा. इस पुण्य कार्य में सभी जुट जाए, ऐसी मेरी शुभ कामनाएं हैं. जय हिन्द, जय हिंदी!
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संपादन -अनिल सिंह