Wednesday , 22 May 2024

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ेउप्र में दिवाली पर उल्लुओं की होगी खास निगरानी

निर्देश में यह कहा गया है कि प्रदेश के उन सभी स्थानों (पक्षी बाजारों) पर छापेमारी की जाए, जहां पर इनकी खरीद-फरोख्त किए जाने की संभावना है। इसके साथ ही पहले से चिह्न्ति बहेलियों व शिकारियों की गतिविधियों पर पैनी निगाह रखी जाए। दिवाली त्योहार लक्ष्मी की सवारी माने जाने वाले उल्लू के लिए दिन भी अमावस की रात की तरह होता है।

दरअसल, कुछ अंधविश्वासी लोग अपनी सुख-समृद्धि बढ़ाने के लालसा में उल्लुओं की बलि देते हैं। इसके अलावा कुछ तांत्रिक भी दिवाली के मौके पर उल्लुओं की हत्या कर अपनी तंत्र-साधना करते हैं। लोगों की इस प्रवृत्ति का फायदा उठाने के लिए पक्षियों के शिकारी (बहेलिए) दिवाली नजदीक आते ही जंगलों में सक्रिय हो जाते हैं। जंगलों से इस बेजुबान पक्षी को पकड़कर ऊंचे दामों में धनाढ्यों को बेच देते हैं। अंधविश्वास के चलते इस रात्रिचर पक्षी की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है।

अंधविश्वासियों के कारण दिवाली पर होने वाले उल्लुओं के अवैध शिकार को रोकने के लिए प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) एस.के. उपाध्याय ने प्रदेश के सभी डीएफओ व प्रभागीय निदेशकों को निर्देश जारी किया है।

उन्होंने कहा है कि दिवाली पर उल्लुओं का अवैध शिकार तथा व्यापार बड़े पैमाने पर किया जाता है। इसे रोकने के लिए सभी वनाधिकारी प्रभावी कार्रवाई करें। इसके लिए सभी रेंजों में विशेष टीमों का गठन करके वन क्षेत्र में लगातार गश्त की जाए। उल्लुओं का शिकार रोकने के लिए कृषि विभाग, पुलिस विभाग, स्थानीय इको क्लब व वन्यजीव क्षेत्र में क्रियाशील स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद भी ली जाए।

दिवाली के अवसर पर राजधानी में उल्लू 10 हजार से 50 हजार रुपये में बिकता है। इसकी कीमत इसके वजन व प्रजाति के अनुसार बढ़ जाती है। राजधानी के बहेलिए छोटे से छोटे उल्लू को भी कम से कम 10 हजार रुपये में बेचते हैं। वजन अधिक होने पर इसकी कीमत 50 हजार रुपये तक पहुंच जाती है। लखनऊ के बाहर दिल्ली व मुंबई पहुंचने पर ये उल्लू की कीमत 10 लाख रुपये तक लगाते हैं। है।

‘वार्न आउल’ प्रजाति का उल्लू (सफेद रंग व हल्के कत्थई धब्बे) अंधविश्वासियों के लिए बेशकीमती होता है। वे इसके लिए कोई भी कीमत देने को तैयार रहते हैं।

प्रमुख वन संरक्षक के मुताबिक, बड़े पैमाने पर शिकार होने के बावजूद लखनऊ के वन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में उल्लू प्रवास करते हैं। काकोरी, माल, मलिहाबाद, कुकरैल, बख्शी का तालाब, मोहनलालगंज सहित अन्य संरक्षित वन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में उल्लुओं की कई प्रजातियां मौजूद हैं।

उन्होंने बताया कि दिवाली पर उल्लुओं को बचाने के लिए डीएफओ (अवध) श्रद्धा यादव ने रेंज अफसरों के नेतृत्व में विशेष टीमें गठित की हैं।

ये सभी टीमें काकोरी, माल, मलिहाबाद, कुकरैल, बख्शी का तालाब व मोहलालगंज के वन क्षेत्रों में लगातार गश्त करेंगी। डीएफओ ने सभी रेंजरों को निर्देश दिया है कि वन क्षेत्र में घूमने वाले संदिग्ध लोगों को रोककर उनकी तलाशी ली जाए तथा वन क्षेत्र में आने का कारण पूछा जाए।

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