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मप्र:पत्रकारों को नहीं है शासन की सुरक्षा,मालिक भी नहीं मानते अपना

June 2, 2017 10:51 am by: Category: सम्पादकीय Comments Off on मप्र:पत्रकारों को नहीं है शासन की सुरक्षा,मालिक भी नहीं मानते अपना A+ / A-

भोपाल से अनिल सिंह 

मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का सुशासन है यह दावा है स्वयं मुख्यमंत्री एवं उनके कारिंदों का लेकिन क्या यह महंगा दावा सही है महंगा इसलिए क्योंकि इस दावे को जन-जन तक पहुँचाने में करोड़ों खर्च हो गए हैं.चावल पका है या नहीं इस हेतु सिर्फ एक दाना परखा जाता है उसी तरह सुशासन का दावा परखने के लिए पत्रकारों एवं पत्रकारिता की स्थिति की परख  काफी है .व्यापम काण्ड को कवर करने आये दिल्ली के आज तक चैनल के पत्रकार की संदेहास्पद मृत्यु के बाद लगातार पत्रकारों की होती हत्याएँ यह साबित करने के लिए काफी हैं की सुशासन की स्थिति मप्र में क्या है .

हद तो तब हो गयी जब मंदसौर में नईदुनिया के पत्रकार कमलेश जैन को कार्यालय में घुस कर नशीले पदार्थों के सौदागरों ने गोली मार ह्त्या कर दी,पत्रकार प्रहरी माना जाता है लोकतंत्र का लेकिन अखबार प्रबंधन ने स्व. कमलेश जैन को अपना पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया एवं वितरक बता दिया.यह विडम्बना ही है अपने आप को राष्ट्रवादी होने का दावा करने वाले इस तरह पत्रकारिता की ह्त्या कर राष्ट्र के हितों की सुरक्षा का दम भरते हैं.इस घटना सेकई चेहरों से नकाब उतर गए,पत्रकारों की पैरोकारी करने वाले एक संगठन के मुखिया से जब कहा गया की इस घटना के विरोध  एवं उस पत्रकार के परिवार के लिए कुछ किया जाए तब उन्होंने सच जानते हुए भी संस्थान का पक्ष लिया और कुछ करने के लिए सभी रास्ते बंद करवा दिए.

मप्र में इसके पूर्व एक घटना भोपाल में दबंग दुनिया अखबार के पत्रकार नरेन्द्र शर्मा के साथ हुयी थी पानी की टंकी गिराने के दौरान हुए हादसे से उनका जबड़ा पूरी तरह नष्ट हो गया था उनके इलाज में पत्रकार संगठनों एवं मप्र जनसंपर्क ने मदद की लेकिन उनके पत्र-समूह ने उन्हें अपना पत्रकार मानने से मना कर दिया.क्षुब्ध पत्रकार ने इसके लिए न्यायालय में दावा लगा दिया है और अपने विरुद्ध हुई इस धोखाधड़ी के विरुद्ध लड़ने को कटिबद्ध है.

भारत निर्माण का दावा कर सत्ता हथिया लेने की व्यवस्था करने वालों को यह धरातल पर बताना होगा की वे पत्रकारिता के प्रति कितने जागरूक हैं,पत्रकार एवं पत्रकारिता का गला यदि घोंटा गया तो यह संकेत कुछ व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु लाभकारी भले ही सिद्ध हो लेकिन राष्ट्र एवं समाज के लिए अहितकर व् घातक सिद्ध होगा .संस्थानों पर आर्थिक नाकेबंदी जैसे दबाव ,पत्रकारों को रोजी-रोटी से मरहूम करने का दबाव वर्ना गोली मारना सरल बनवा दिया गया है जब पत्रकार लिखेगा नहीं और संस्थान छापेंगे नहीं कैसे होगा राष्ट्र नव-निर्माण?

भारत निर्माण का दावा कर सत्ता हथिया लेने की व्यवस्था करने वालों को यह धरातल पर बताना होगा की वे पत्रकारिता के प्रति कितने जागरूक हैं,पत्रकार एवं पत्रकारिता का गला यदि घोंटा गया तो यह संकेत कुछ व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु लाभकारी भले ही सिद्ध हो लेकिन राष्ट्र एवं समाज के लिए अहितकर व् घातक सिद्ध होगा .

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