शायद चालकदल की ही किसी ग़लती के कारण ‘सिन्धुरक्षक’ पनडुब्बी के साथ घटी दुर्घटना ने भारत के सामने एक महत्त्वपूर्ण समस्या यह खड़ी कर दी है कि जल्दी से जल्दी उसकी भरपाई कैसे की जाए और भारतीय नौसैनिक बेड़े को कैसे पहले की तरह पूरी तरह से सक्षम बनाया जाए।
ऐसी हालत में हो सकता है कि भारत सरकार भारतीय नौसैनिक बेड़े के लिए छह नई ग़ैरपरमाणविक पनडुब्बियाँ ख़रीदने की अपनी उस योजना पर जल्दी से जल्दी अमल करे, जो उसने पहले ही बना रखी थी। रूस रणनीतिक और तक्नोलौजी विश्लेषण केन्द्र के विशेषज्ञ वसीली काशिन का कहना है कि यदि ऐसा होता है तो रूस भी भारत सरकार द्वारा जारी किए जाने वाले उस टेण्डर में ज़रूर भाग लेगा।
इस समय भारतीय नौसैनिक बेड़े के पास दो तरह की ग़ैरपरमाणविक पनडुब्बियाँ हैं। इनमें से एक है — परियोजना 877 ए०के०एम के आधार पर निर्मित रूसी पनडुब्बियाँ और दूसरी हैं परियोजना संख्या 1500 की जर्मन पनडुब्बियाँ। क़रीब-क़रीब ये सभी पनडुब्बियाँ भारतीय नौसेना ने पिछले सदी के अन्तिम दो दशकों में ख़रीदी थीं। ‘सिन्धुरक्षक’ पनडुब्बी के साथ घटी दुर्घटना के दौरान भारतीय नौसेना को एक नहीं, बल्कि दो पनडुब्बियों से हाथ धोना पड़ा है। ‘सिन्धुरक्षक’ के बराबर में ही खड़ी पनडुब्बी ‘सिन्धुरत्न’ को भी उस दुर्घटना में बुरी तरह से नुक़सान पहुँचा है।
भारत को आज जिन पनडुब्बियों की ज़रूरत है, उन पनडुब्बियों की सप्लाई रूस के अलावा फ़्राँस, जर्मनी और स्पेन कर सकते हैं। रूस से भारत अमूर-1650 क़िस्म की पनडुब्बी ख़रीद सकता है जबकि पश्चिमी देशों से उसे स्कोरपेन, टाईप-214 या एस०-80 क़िस्म की पनडुब्बियाँ मिल सकती हैं। ये सभी पनडुब्बियाँ अत्याधुनिक पनडुब्बियाँ हैं जो हवा पर निर्भर न करने वाले इंजनों से लैस हैं और जिन्हें आधुनिकतम हथियारों से लैस किया जा सकता है।