नई दिल्ली, 20 अप्रैल (आईएएनएस)। इंडियन माइक्रो फर्टिलाइजर्स मैन्युफैक्चर्स एसोसिएशन (इम्मा) ने शुक्रवार को फसलों पर खतरनाक कीटनाशी दवाओं के प्रयोग से होने वाले नुकसान के प्रति आगाह करते हुए पोषक तत्वों से भरपूर सूक्ष्म उर्वरकों का इस्तेमाल करने की सलाह दी।
राष्ट्रीय फसल पोषण सम्मेलन 2018 में सूक्ष्म उर्वरक विनिर्माताओं और विशेषज्ञों ने कहा कि फसल में पोषक तत्वों की कमी से बीमारी का प्रकोप होता है। इससे बचाव के लिए कीटनाशी दवाओं का छिड़काव करते हैं, जिससे खतरनाक रसायन के कारण फसल की गुणवत्ता कमजोर हो जाती है और वह स्वास्थ्य के लिए भी नुकसानदेह बन जाती है।
इम्मा ने कहा कि फसल पर महंगी कीटनाशी दवाओं का इस्तेमाल करने से किसानों की लागत भी बढ़ जाती है। इस खर्च में कमी करने से शुद्ध कृषि आय में वृद्धि होगी। कीट एवं रोगों को नियंत्रित करने की एक प्रमाणित पद्धति संतुलित पोषण है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकांश किसान फसल पोषण के बजाए खतरनाक कीटनाशी दवाओं का उपयोग करते हैं।
इम्मा के अध्यक्ष महेश शेट्टी ने कहा, “भारत में फसलों पर अत्यंत खतरनाक पेस्टीसाइड का अत्यधिक इस्तेमाल किया जाता है, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण है। ज्यादातर किसान फसल पोषण के बजाए खतरनाक पेस्टीसाइड का उपयोग करते हैं। संपूर्ण फसल चक्र के दौरान संतुलित रूप से जरूरी मुख्य, द्वितीयक और सूक्ष्म पौष्टिक तत्वों की आपूर्ति से फसल स्वस्थ होगी और उसपर रोग का भी खतरा नहीं होगा।”
इम्मा के उपाध्यक्ष, डॉ. राहुल मीरचंदानी ने कहा, “उद्योग और सरकार को कृषि क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। यदि हम संयुक्त रूप से इस समस्या का समाधान नहीं करेंगे तो स्वास्थ्यवर्धक आहार प्राप्त करने का हमारा अधिकार एक सपना बना रहेगा।”
इस मौके पर इम्मा ने कृषि को पर्यावरण के लिए उपयुक्त और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभप्रद बनाने के लिए विकसित राष्ट्रों में प्रचलित यूरो-गैप एवं ग्लोबल-गैप के अनुरूप विशेष रूप से संतुलित फसल पोषण सहित इंडियन गुड एग्रीकल्चरल प्रैक्टिसेस (इंड-गैप) की स्थापना करने की सिफारिश की।
सम्मेलन में विभिन्न राज्यों के कृषि निदेशकों एवं आयुक्तों और देश की प्रमुख न्यूट्रिशन कंपनियों के साथ एफएआई, आईसीएआर, कृषि मंत्रालय, कृषि एसोसिएशन के नेताओं सहित 200 से अधिक प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।