भोपाल, 18 मार्च (आईएएनएस)। कई बार बचपन की कोई घटना व्यक्ति के जीवन पर कुछ ऐसा असर कर जाती है, जिसे वह पूरे जीवन संजोए रखता है और जब भी उसे मौका मिलता है, वह उसे मूर्तरूप देने से नहीं चूकता। ऐसा ही कुछ हुआ है भवन निर्माण (रीयल एस्टेट) के क्षेत्र में सक्रिय आकृति समूह के मुख्य प्रबंध निदेशक (सीएमडी) हेमंत सोनी के साथ, जिन्होंने बचपन में एक पौधे को बचाया था और अब उन्होंने प्रकृति के बीच एक छोटा-सा संसार ही बसा डाला है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित आकृति नेचर क्योर सेंटर (एएनसीसी) प्रकृति और भारतीय उपचार पद्धतियों से संवाद करता नजर आता है। यहां जमीन पर बिछी हरी घास और लहलहाते वृक्ष हर किसी को रोमांचित कर देते हैं। वास्तु को ध्यान में रखकर बनाए गए कॉटेज मन को भाते हैं और ऐसा लगता है मानो वे अपनी ओर खींच रहे हों।
लगभग 10 एकड़ क्षेत्र में फैले इस केंद्र में सेहत को दुरुस्त रखने के वे सारे इंतजाम हैं, जो हमारी पुरानी संस्कृति से सीधा नाता रखते हैं। यहां प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद व योग का ऐसा सम्मिश्रण है, जो सेहत को संवारने में मददगार हैं। इस केंद्र में बीमार व्यक्तियों का इलाज तो किया ही जाता है, साथ में सेहतमंदों को सेहत दुरुस्त रखने के गुर भी सिखाए जाते हैं।
आकृति के सीएमडी सोनी ने आईएएनएस को बताया कि बचपन में जब वह जयपुर में रहा करते थे, तब उन्होंने जमीन पर गिरे एक पेड़ को एक लकड़ी के सहारे खड़ा कर उसे बचाया था। तभी से उनके मन में प्रकृति और पेड़ों के प्रति लगाव बढ़ गया था। वह कारोबार के सिलसिले में जयपुर से भोपाल आए तो उनकी पुरानी आकांक्षा फिर जाग उठी और उन्होंने यह केंद्र बना डाला।
सोनी ने बताया कि यह केंद्र बनाना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके लिए उन्होंने योग्य लोगों की तलाश शुरू की। फिर उनके संपर्क में आए आईआईएम अहमदाबाद के संजय सिंह। संजय का भी वही मकसद था जो सोनी चाहते थे, लिहाजा संजय की मदद से सोनी अपनी कोशिशों में कामयाब भी हुए।
इस केंद्र में प्राकृतिक चिकित्सा से लोगों की सेहत संवारी जाती है। भाप स्नान, मिट्टी थेरेपी और पंचकर्म जैसी आयुर्वेदिक विधियों के सहारे उपचार किया जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेद के विशेषज्ञ यहां लोगों को उचित परामर्श भी देते हैं। इतना ही नहीं योग सभागार में प्राणायम से लेकर संगीत थेरेपी तक सभी गतिविधियां शरीर को ऊर्जा से भर देती हैं।
केंद्र में सात्विक और पौष्टिक आहार दिया जाता है। इसके साथ ही प्राकृतिक वनस्पतियों के रस भी उपलब्ध कराए जाते हैं। शरीर को दुरुस्त रखने के लिए इस परिसर में पैदल चलने के लिए मार्ग बनाया गया है।
केंद्र की जिम्मेदारी संभाल रहे संजय सिंह बताते हैं कि बीते वर्षो में यहां एक हजार से ज्यादा लोग आए हैं। इनमें कई ऐसे लोग हैं जो एक से ज्यादा बार भी आए हैं। परिवारों के साथ आने वाले बच्चों के लिए जंगल जोन बनाया गया है।
सिंह के अनुसार, इस केंद्र का मकसद आर्थिक लाभ अर्जित करना नहीं, बल्कि लोगों की सेहत को संवारने में मदद करना है। यह देश के प्रमुख प्राकृतिक चिकित्सा केंद्रों में से एक और मध्य भारत का सबसे बड़ा केंद्र है।
सोनी बताते हैं कि राज्य सरकार ने उन्हें सहयोग का वादा किया था, इसके लिए करार भी हुआ, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी और सरकार अपने वादे से पीछे हट गई। आज हालत यह है कि इस संस्थान को चलाने में उन्हें प्रतिवर्ष 50 लाख रुपये का अतिरिक्त भार उठाना पड़ता है। इसके बावजूद उनका सपना पचमढ़ी में लगभग 150 एकड़ क्षेत्र में देश का सबसे बेहतर प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र स्थापित करने का है।
प्रकृति का आनंद उठाने के साथ सेहत को दुरुस्त रखने में सहायक यह केंद्र थोड़ा महंगा जरूर है, लेकिन स्वास्थ्य और खुशहाली के फिक्रमंदों के लिए इसकी महंगाई ज्यादा मायने नहीं रखती।