पंचकूला। जिला पंचकूला में ऐतिहासिक नगर मनीमाजरा के निकट शिवालिक पर्वत मालाओं की गोद में सिन्धुवन के अतिंम छोर पर प्राकृतिक छटाओं से आच्छादित एकदम मनोरम एवं शांति वातावरण में स्थित है सतयुगी सिद्घ माता मनसा देवी मंदिर। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति सच्चे मन से 40 दिन तक निरंतर मनसा देवी के भवन में पहुंचकर पूजा अर्चना करता है, तो मां मनसा देवी उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण करती है। माता मनसा देवी का चैत्र और आश्रि्वन मास के नवरात्रों में मेला लगता है।
माता मनसा देवी के मंदिर को लेकर कई धारणाएं व मान्यताएं प्रचलित हैं। श्रीमाता मनसा देवी का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि अन्य सिद्घ शक्तिपीठों का। इन शक्ति पीठों का कैसे और कब प्रादुर्भाव हुआ इसके बारे में शिव पुराण में विस्तृत वर्णन मिलता है। धर्म ग्रंथ तंत्र चूड़ामणि के अनुसार ऐसे सिद्घपीठों की संख्या 51 है, जबकि देवी भागवत पुराण में 108 सिद्घ पीठों का उल्लेख मिलता है, जो सती के अंगों के गिरने से प्रकट हुए।
मान्यता है कि जब माता पार्वती अपने पिता हिमालय के राजा दक्ष के घर अश्वमेध यज्ञ में बिना बुलाए चली गई, तो किसी ने उनका सत्कार नहीं किया और यज्ञ में शिवजी का भाग भी नहीं निकाला, तो आत्म सम्मान के लिए मां ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में होम कर दिया। जिसका पता चलते ही शिवजी यज्ञ स्थान पर पहुंचकर सती का दग्ध शरीर लेकर तांडव नृत्य करते हुए देश-देशातंर में भटकने लगे। भगवान शिव का उग्र रूप देखकर ब्रंादि देवताओं को चिंता हुई, तो भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्त्र से लक्ष्यभेद कर सती के शरीर को खंड-खंड कर दिया। जिसके बाद विभिन्न स्थानों पर सती के शरीर के अंग जहां-जहां गिरे वहीं शक्तिपीठों की स्थापना हुई और शिव ने कहा कि इन स्थानों पर भगवती शिव की भक्ति भाव से आराधना करने पर कुछ भी दुलर्भ नहीं होगा।
पंचकूला शिवालिक गिरिमालाओं पर देवी के मस्तिष्क का अग्र भाग गिरने से मनसा देवी शक्तिपीठ देश के लाखों भक्तों के लिए पूजा स्थल बन गए हैं। इसके अलावा अनेक कथाएं श्री माता मनसा देवी मंदिर के बारे में प्रसिद्ध हैं। मंदिर के विकास के लिए सरकार द्वारा श्रीमाता मनसा देवी पूजास्थल बोर्ड की स्थापना कर दी गई है, जोकि मंदिर बडे़ ही सुचारू ढंग से रख-रखाव कर रहा है।