भारत का इतिहास इस बात का साक्षी है कि सदा से ही भारतीय वसुंधरा विश्व-कल्याण का पथ प्रशस्त करने वाले महापुरुषों, र्ती्थकरों, संतों, शहीदों व समाज सुधारकों को जन्म देती आई है। प्रत्येक युग में दिव्य तेज से युक्त महापुरुषों ने नव जाग्रति का संदेश देकर विश्व की विकृतियों का विखंडन किया। अहिंसा जैन धर्म की ही नहीं, बल्कि समग्र भारतीय संस्कृति की प्रमुख पहचान है। जिस प्रकार जीवों का आधार स्थान पृथ्वी है, वैसे ही भूत और भावी ज्ञानियों के जीवन दर्शन का आधारभूत तत्व अहिंसा है। अहिंसा एक शाश्वत तत्व है। सह-अस्तित्व के लिए अहिंसा अनिवार्य है। अहिंसा सबको अभय प्रदान करती है। वह सृजनात्मक शक्तियों से परिपूर्ण है।
अहिंसा मनुष्य की प्राण वायु है। प्रकृति, पृथ्वी, पर्यावरण और प्राणि मात्र की रक्षा करने वाली अहिंसा है। अहिंसा का संबंध मनुष्य के हृदय के साथ है, मस्तिष्क के साथ नहीं। अहिंसा तर्क-वितर्क व विवेक शून्य विश्वास के साथ नहीं, बल्कि हृदय की गहरी अनुभूति के साथ है। यह हमारी अंतस चेतना का सूक्ष्म अंग है, लेकिन इसके अलावा भी एक सूक्ष्म सत्य है कि प्राणि मात्र में विभिन्नता के साथ ही एक अमिट साम्य भी है। सभी प्राणी सचेतन हैं। सभी में आत्मा का निवास है। आनंद प्रत्येक आत्मा का स्वाभाविक लक्ष्य है। जिस दिन मानव अपने और दूसरे की आत्मा के मध्य भेद को विस्मृत कर देगा उस दिन उसकी अहिंसा की साधना सफल हो जाएगी। अहिंसक व्यक्ति का उपदेश केवल वाचिक नहीं होता, उसकी अहिंसा उसके जीवन में भी परिलक्षित होती है। आज का सभ्य संसार वातावरण में घुटन का अनुभव कर रहा है।
विध्वंसक भौतिकता ने विषाक्त स्वार्थपरक भावनाओं को जन्म दिया है। आज आध्यात्मिक जाग्रति आवश्यक है। हमें घृणा, द्वेष व स्वार्थ के मूल को नष्ट करना है। जिससे विश्व बंधुत्व की भावना का सही प्रसार हो सके। आचार्य पतंजलि ने अपने योग दर्शन में कहा है कि जिन व्यक्तियों के मन में अहिंसा प्रतिष्ठित है, उनका किसी से बैर-विरोध नहींरहता।