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हिंदी पत्रकारिता दिवस: डिजिटल हिंदी पत्रकारिता का संघर्ष

May 30, 2021 5:31 pm by: Category: सम्पादकीय Comments Off on हिंदी पत्रकारिता दिवस: डिजिटल हिंदी पत्रकारिता का संघर्ष A+ / A-

अनिल कुमार सिंह धर्मपथ के लिए

डिजिटल मीडिया पर हिंदी पत्रकारिता की गति बहुत धीमी है ,हिंदी पत्रकारिता के पाठक कम हैं,डिजिटल प्लेटफार्म वैश्विक है और इस पर हिंदी के पाठक कम हैं इसलिए हिंदी वेबसाइटों को ट्रैफिक कम मिल पाता है ,कई वेबसाइटें पाठकों को आकर्षित करने के लिए अन्य पठनीय सामग्रियां भी अपनी वेबसाइट पर डालती हैं जिससे पाठकों की संख्या बेहतर बनी रहती है ,हिंदी पत्रकारिता पर सरकारों का भी ध्यान नहीं है जिसकी वजह से आर्थिक स्थितियां इन संस्थानों की बदहाल हैं लेकिन संघर्षशील पत्रकार इसे जीवित रखने एवं इसे बढ़ाने के प्रयास में लगे हुए हैं ,जितना खर्च सरकारें हिंदी भाषा के अन्य माध्यमों को बढ़ाने में करती हैं उसका कुछ प्रतिशत भी वे हिंदी डिजिटल मीडिया के प्रचार-प्रसार में खर्च नहीं कर रही हैं,हिंदी पत्रकारिता दिवस पर हिंदी डिजिटल मीडिया के उजजवक भविष्य की हम कामना करते हैं

तकनीकी विकास को साथ-साथ जनसंचार माध्यमों यथा हिन्दी पत्रकारिता के रूख में तेजी से परिवर्तन देखने को मिला है। तकनीकी के विस्तार से हिन्दी पत्रकारिता के विस्तार में मदद मिली है। हिन्दी समाचार चैनल, समाचार पत्रों के साथ-साथ हिन्दी में समाचार वेबसाइट के कारण हिन्दी पत्रकारिता का दायरा बढ़ा है। हिन्दी पत्रकारिता को व्यवसायिक कलेवर में ढाला जा चुका है। वहीं तमाम समानान्तर माध्यम भी कार्य कर रहे है, जो व्यवसायिकता से अभी परे है। यह समय के साथ लगातार विकसीत हो रहा है। तकनीकी के कारण सूचनाओं पर लगने वाली बंदिशे कम हुई है और लोगो तक अबाध सूचना का मार्ग प्रशस्त हुआ है। इन सबके चलते हिन्दी पत्रकारिता ने नये दौर मे प्रवेश किया है।

21वीं शताब्दी सूचना प्रौद्योगिकी का युग है। आधुनिक संचार तकनीकी का मूल आधार इन्टरनेट है। कलमविहीन पत्रकारिता के इस युग में इन्टरनेट पत्रकारिता ने एक नए युग का सूत्रपात किया है। वेब पत्रकारिता को हम इन्टरनेट पत्रकारिता, ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता के नाम के जानते है। यह कम्प्यूटर और इंटरनेट द्वारा संचालित एक ऐसी पत्रकारिता है, जिसकी पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखण्ड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं अपितु समूचे विश्व तक है।

प्रिंट मीडिया से यह रूप में भी भिन्न है इसके पाठकों की संख्या को परिसीमित नहीं किया जा सकता है। इसकी उपलब्धता भी सर्वाधिक है। इसके लिए मात्र इन्टरनेट और कम्प्यूटर, लैपटॉप या मोबाइल की जरूरत होती है। इंटरनेट वेब मीडिया की सर्वव्यापकता को भी चरितार्थ करती है जिसमें खबरें दिन के चौबीसों घण्टे और हफ्ते के सातों दिन उपलब्ध रहती हैं वेब पत्रकारिता की सबसे बड़ी खासियत है उसका वेब यानी तरंगों पर आधारित होना । इसमें उपलब्ध किसी दैनिक, साप्ताहिक, मासिक पत्र-पत्रिका को सुरक्षित रखने के लिए किसी आलमीरा या लाइब्रेरी की ज़रूरत नहीं होती।

समाचार पत्रों और टेलीविजन की तुलना में इंटरनेट पत्रकारिता की उम्र बहुत कम है लेकिन उसका विस्तार बहुत तेजी से हुआ है। उल्लेखनीय है कि भारत में इंटरनेट की सुविधा 1990 के मध्य में मिलने लगी। इस विधा में कुछ समय पहले तक अंग्रेजी का एकाधिकार था लेकिन विगत दशकों में हिन्दी ने भी अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज की है। इंदौर से प्रकाशित समाचार पत्र ‘नई दुनिया’ ने हिन्दी का पहला वेब पोर्टल ‘वेब दुनिया’ के नाम से शुरू किया। अब तो लगभग सभी समाचार पत्रों का इंटरनेट संस्करण उपलब्ध है। चेन्नई का ‘द हिन्दू’ पहला ऐसा भारतीय अखबार है जिसने अपना इंटरनेट संस्करण वर्ष 1995 ई. में शुरू किया। इसके तीन साल के भीतर यानी वर्ष 1998 ई. तक लगभग 48 समाचार पत्र ऑन-लाइन हो चुके थे। ये समाचार पत्र केवल अंग्रेजी में ही नहीं अपितु हिन्दी सहित अन्य भारतीय भाषाओं जैसे मलयालम, तमिल, मराठी, गुजराती आदि में थे। आकाशवाणी ने 02 मई 1996 ‘ऑन-लाइन सूचना सेवा’ का अपना प्रायोगिक संस्करण इंटरनेट पर उतारा था। एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2006 ई. के अन्त तक देश के लगभग सभी प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं टेलीविजन चैनलों के पास अपना इंटरनेट संस्करण भी है जिसके माध्यम से वे पाठकों को ऑन-लाइन समाचार उपलब्ध करा रहे हैं।
ऑन-लाइन पत्रकारिता, हिन्दी ब्लॉग, हिन्दी ई-पत्र-पत्रिकाएँ, हिन्दी ई-पोर्टल, हिन्दी वेबसाइट्स, हिन्दी विकिपीडिया आदि के रूप में नव-जनमाध्यम आधारित हिन्दी पत्रकारिता के विविध स्वरूपों को समझा जा सकता है।

वर्ष 2016 से 18 के दौर में एंड्रॉयड एप्लीकेशन ने हम सभी को इंफॉर्मेशन के हाईवे पर लाकर खड़ा कर दिया है। रेडियो को 50 लाख लोगों तक पहुंचने में 8 वर्ष का समय लगा था। जबकि डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू को 50 लाख लोगों तक पहुंचने में केवल 2 साल का समय लगा। आज हमारे देश में 80% रीडर मोबाइल पर उपलब्ध हैं। पत्रकारिता के लिए कंटेंट सोर्स रेलीवेंसी और क्वालिटी की जरूरत है।

भारत में हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के पोर्टल्स का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। हिंदी पढ़ने वालों की दर प्रतिवर्ष 94 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रही है जबकि अंग्रेजी में यह दर 19 प्रतिशत है। यही कारण है कि तेजी से नए पोर्टल्स सामने आ रहे हैं। अब पोर्टल के काम में कई बड़े खिलाड़ी आ गए हैं। इनके आने का भी कारण यही है कि आने वाला समय हिंदी पोर्टल का समय है। पोर्टल पर जो भी लिखा जाए वह सोच समझ कर लिखना चाहिए क्योंकि अखबार में तो जो छपा है वह एक ही दिन दिखता है, लेकिन पोर्टल में कई सालों के बाद भी लिखी गई खबर स्क्रीन पर आ जाती है और प्रासंगिक बन जाती है।
डिजीटल मीडिया का है समय

वर्तमान समय डिजिटल मीडिया का समय है। ऐसे में हम इस संगोष्ठी के माध्यम से यह समझना चाहेंगे कि डिजिटल मीडिया में हिंदी का स्थान क्या है और आगे उसके लिए संभावनाएं कितनी है।

वहीं विषय विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण करते हुए नागपुर विद्यापीठ के पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष धर्मेश धामणकर ने बताया कि रिसर्च एक बहुत सीरियस विषय है। रिसर्च का ऑब्जेक्ट, की-वर्ड, मेथोडोलॉजि होती है लेकिन इसका अभाव दिखता है। उमेश आर्य ने कहा की 100 खबरों के आधार पर भी शोध हो सकता है लेकिन अगर हम ज्यादा से ज्यादा खबरों के आधार पर शोध करेंगे तो उसका प्रभाव दिखेगा। शोध में फैक्ट्स और फिगर पर काम करना आवश्यक है।

हिंदी डिजिटल पत्रकारिता का युग अपनी शैशव अवस्था में है तथा संकट के दौर से गुजर रहा है ,सरकार को चाहिए की डिजिटल माध्यम की आर्थिक मदद कर डिजिटल हिंदी पत्रकारिता को मजबूती प्रदान करे.

राजेश भाटिया ,अध्यक्ष (डिजिटल प्रेस क्लब)

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