वाराणसी। ज्योतिष व द्वारिकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के प्रतिनिधि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद का मानना है कि केदारघाटी में जलप्लावन व जन धन की हानि प्रकृति का प्रकोप है।
उत्तराखंड सरकार, मानों आदमियों की संख्या से अधिक बांध बनाना चाह रही है। इससे कुपित हो प्रकृति ने बदला लिया है। अब भी सरकार को जागने की आवश्यकता है। एक छोटा ताल टूटने से यह हाल तो टिहरी जैसा विशाल बांध टूटने पर क्या होगा। गंगा साक्षात देवी हैं, क्रोधित होंगी तो उनके श्राप से कोई नहीं बच सकता।
उत्तराखंड में तबाही के गवाह स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद बुधवार को अपराह्न काशी लौटे। उन्होंने बताया कि सरकार स्थिति का सामना करने की बजाय वास्तविकता पर पर्दा डालने में जुटी है। लगभग 70 हजार लोग फंसे हुए हैं। उत्तराखंड में कुदरत का कहर थमा तो तबाही का मंजर सामने है। बाबा केदारनाथ की दशा दिल को दहलाने वाली है। मंदिर की दशा देख वहां कभी न गए श्रद्धालुओं का मन भी भारी हो रहा है। इसे बाबा का प्रताप ही कहेंगे कि सब कुछ तबाह होने के बावजूद ज्योतिर्लिग और उसे आच्छादित किए सदियों पुराना गुंबद सुरक्षित है।
मंदिर के नजदीक रामबाड़ा में ही रविवार रात बादल फटा था। केदारनाथ, रामबाड़ा और गौरीकुंड तबाह हो गए हैं।
सैकड़ों लोगों के मरने की आशंका है। मौके की हेलीकॉप्टर से ली गईं तस्वीरें रोंगटे खड़े कर देने वाली हैं। बचाव दल अभी भी गंभीर रूप से प्रभावित इलाकों में नहीं पहुंच पाए हैं।
त्रासदी के प्रत्यक्षदर्शी केदारनाथ में तैनात रुद्रप्रयाग के पुलिस उपाधीक्षक आर डिमरी ने बताया कि मंदिर परिसर मलबे और बोल्डर से पटा हुआ है। परिसर में जहां-तहां शव भी पड़े हुए हैं।
मंदिर के गर्भगृह में पानी के साथ बहकर मलबा घुस गया है। लगातार बारिश और पानी के तेज बहाव से मंदिर के आसपास के ज्यादातर भवन जमींदोज हो गए हैं।
इसके अलावा गौरीकुंड-केदारनाथ पैदल मार्ग पर सात किलोमीटर दूर स्थित रामबाड़ा का वजूद खत्म हो गया है। शासन ने भी इसकी पुष्टि कर दी है। 100-150 दुकानों वाले रामबाड़ा बाजार में आमतौर पर यात्रा काल में पांच सौ या छह सौ लोग हमेशा मौजूद रहते थे। यहां कितने लोग हताहत हुए हैं, इसका पता नहीं चल सका है। रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी वीके ढौंडियाल ने बताया कि केदारनाथ में मरने वालों की संख्या सैकड़ों में हो सकती है। शासन के अनुसार पूरे प्रदेश में आपदा से मरने वालों का आंकड़ा 67 पहुंच गया है।
तीन दिन बाद मंगलवार को बारिश थमते ही सरकारी मशीनरी सक्रिय हुई और राहत एवं बचाव कार्य आरंभ हो पाया। हालांकि सड़कें व संपर्क मार्ग ध्वस्त होने के कारण प्रभावित क्षेत्रों तक मदद पहुंचाना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। मौसम में आ रही खराबी के कारण हेलीकॉप्टर से राहत कार्य चलाने में बाधा भी आ रही है। सेना, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) की टीम राहत कार्यो में जुटी हैं।
केदारनाथ से हेलीकॉप्टर के जरिए फंसे लोगों को निकालने का सिलसिला भी मंगलवार को शुरू हो सका। करीब 800 श्रद्धालुओं को निकालकर गुप्तकाशी और फाटा पहुंचाया गया है। प्रशासन के अनुसार केदारनाथ में पांच सौ और आस पास के इलाकों में अभी भी साढ़े तीन हजार लोग फंसे हैं।
चार धाम के विभिन्न पड़ावों पर फंसे चालीस हजार से ज्यादा तीर्थ यात्रियों को अभी भी नहीं निकाला जा सका है। इन यात्रियों के लिए खाने के पैकेट गिराए जा रहे हैं। दूसरी ओर उत्तरकाशी पहुंचे आपदा प्रबंधन मंत्री यशपाल आर्य को प्रभावितों के गुस्से का सामना करना पड़ा। हालात बिगड़ते देख आर्य उत्तरकाशी में बामुश्किल 15 मिनट रहकर लौट आए। हरिद्वार और ऋषिकेश में गंगा समेत पहाड़ की ज्यादातर नदियों के जलस्तर में अपेक्षाकृत कमी दर्ज की गई है, लेकिन ये खतरे के निशान से ऊपर बह रही है।
रुद्रप्रयाग जिले में हालात बेहद गंभीर हैं। सड़कें, पुल और संपर्क मार्ग क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। बीस हजार से ज्यादा प्रभावितों को विभिन्न स्कूलों में ठहराया गया है। मंगलवार को अलग-थलग पड़े झींगुरपानी, मुनकटिया और गौरी गांव में हेलीकाप्टर से खाने के पैकेट गिराए गए। चमोली जिले में मदद का कार्य दोपहर बाद शुरू हो सका। हेमकुंड साहिब के विभिन्न पड़ावों पर हेलीकॉप्टर से खाने के पैकेट गिराए गए। उल्लेखनीय है कि हेमकुंड साहिब और बदरीनाथ के विभिन्न पड़ावों पर बीस हजार से ज्यादा तीर्थ यात्री भी फंसे हुए हैं। हेमकुंड और जोशीमठ इलाकों में 19 शव मिले हैं। इनके श्रद्धालु होने की आशंका है।
केदारनाथ-
उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में 3,593 मीटर ऊंचाई पर मौजूद प्राचीन केदारनाथ मंदिर में स्थापित शिवलिंग देश के 12 च्योतिर्लिगों में से एक है।
पुराणों के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए यहां पर तपस्या की थी। इस दौरान उन्होंने 80 फुट ऊंचे भगवान केदारनाथ के मंदिर का निर्माण करवाया।
ऐसी मान्यता है कि सतयुग काल में राज करने वाले राजा केदार के नाम पर इस भव्य मंदिर का नाम पड़ा। यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
प्रतिकूल मौसम के कारण मंदिर के कपाट केवल अप्रैल से नवंबर माह तक ही श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु खोले जाते हैं।
हर साल भारी संख्या में श्रद्धालु भगवान केदारनाथ के दर्शन करने के लिए देश के कोने-कोने से आते हैं।
केदारनाथ यात्रा भारत के चार प्रमुख धाम यात्राओं में से एक है। इसके अतिरिक्त बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम हैं।
मंदाकिनी नदी के घाट पर बने इस मंदिर के भीतर घोर अंधकार रहता है। दीपक के सहारे ही शंकर जी के दर्शन होते हैं। मंदिर में पांचों पांडवों समेत द्रोपदी की भी मूर्तियां हैं।
छह फुट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बने केदारनाथ मंदिर के बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं।