नई दिल्ली : अपने ‘कोलावरी…’ गीत से लाखों-करोड़ों लोगों के दिलों मे जगह बना चुके रजनीकांत के दामाद एवं अभिनेता धनुष की पहली बॉलीवुड फिल्म ‘रांझना’ ने रुपहले पर्दे पर दस्तक दिया है। इस फिल्म में गीत-संगीत, रोमांस, अभिनय सभी कुछ उम्दा है जिसे दर्शक अवश्य पंसद करेंगे।
फिल्म निर्माता आनंद एल. राय एक बेहतरीन फिल्म बनाने के लिए बधाई के पात्र हैं।
फिल्म की कहानी बनारस की है। यहां तमिल ब्राह्मण कुंदन (धनुष के. राजा) को मुस्लिम लड़की सोनम (जोया) से मोहब्बत हो जाती है। लड़की के मां-बाप नहीं चाहते तो कि दोनों के बीच संबंध आगे बढ़े। कुंदन और जोया के प्यार को रोकने केर लिए जोया के माता-पिता दोनों को अलग करने की ठान लेते हैं। जोया को पढ़ाई के लिए दूसरे शहर भेज दिया जाता है। आठ साल बाद जब वह लौटती है तो सब कुछ बदल चुका होता है।
जोया अब पहले वाली लड़की नहीं रहती। वह किसी और से प्रेम करती है लेकिन कुंदन को यह रास नहीं है कि जोया किसी और से प्रेम करे। कुंदन किसी भी कीमत पर अपने प्यार को पाना चाहता है।
इस बीच, घटनाक्रम बदलता है और जोया जिस लड़के से प्यार करती है उसकी मौत हो जाती है। इसके बाद कुंदन अपने प्यार को पाने के लिए जो रास्ते अपनाता है वह काफी दिलचस्प और रोचक है।
फिल्म में इंटरवल तक कुंदन और जोया के प्यार की कहानी चलती है और इसके बाद फिल्म में प्यार तो है लेकिन आम आदमी के संघर्ष और एक प्रेमी के पश्चाताप को भी बखूबी दिखाया गया है। ‘राझंना’ एक रोमांटिक फिल्म होकर भी पूरी तरह से रोमांटिक नहीं है।
अभिनय के लिहाज से अगर बात करें तो धनुष जब-जब पर्दे पर आते हैं, अपनी छाप छोड़ते हैं। धनुष ने अपने अभिनय से साबित कर दिया है कि अभिनेता बनने के लिए केवल सुंदर चेहरे और सुडौल शरीर की ही जरूरत नहीं होती। धनुष का अभिनय काफी शानदार है। वहीं, सोनम कपूर का अभिनय उनकी अन्य फिल्मों से ज्यादा निखर कर सामने आया है। अभय देओल ने अपनी भूमिका से पूरी तरह न्याय किया है। एक राजनीतिक कार्यकर्ता की भूमिका निभाने के लिए उनका चुनाव काफी अच्छा है।
इन कलाकारों के अलावा मोहम्मद जीशन अयूब और स्वर भास्कर ने अपने अभिनय से प्रभावित किया है। तकनीकी रूप से भी यह फिल्म काफी मजबूत है। बनारस की शानदार एवं लाजवाब दृश्यों को नटराजन सुब्रमण्यम और विशाल सिन्हा ने खूबसूरती से अपने कैमरे में कैद किया है।
फिल्म का संगीत कर्णप्रिय है। संगीतकार ए.आर. रहमान का संगीत सुनने में अच्छा लगता है। ‘पिया मिलेंगे’, ‘तुम तक’ गीत पहले ही हिट चुके हैं। जबकि फिल्म के संवाद अपनी कहानी के अनुरूप हैं।
कुल मिलाकर रोमांस के केंद्र में रखते हुए यह फिल्म पूरी तरह रोमांटिक नहीं है। इसमें रोमांस है तो सियासत और चालबाजी भी है। एक लंबे अरसे के बाद दर्शकों को थोड़ा अलग हटकर फिल्म देखने को मिलेगी। थिएटर में फिल्म देखने के बाद सुखद अहसास के साथ घर लौटा जा सकता है।