
राष्ट्र-चेतना और निर्माण संघ का मुख्य सिद्धान्त
भागवत जी ने कहा की राष्ट्र चेतना जगाना और राष्ट्र भक्ति हमारा मुख्य सिद्धान्त है,विकास ठहरना नहीं चाहिये,सत्ता आने और याह निश्चय करने पर की संतुष्टि हो गयी है,विकास रुक जाता है.हम बहुत अच्छे ना बने,बहुत अच्छा बनने से विकास रुक जाता है.हमारा हर कर्तव्य देश के लिये होता है.
राष्ट्र निर्माण के लिये कार्यकर्ताओं की आवश्यकता,व्रती कार्यकर्ता की करेंगे निर्माण
राष्ट्र निर्माण हेतु समर्पित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता मातृ-भूमि को है,इन्ही के सम्बल पर राष्ट्र हित की रक्षा और निर्माण होगा.हमें हर गली ,मुहल्ले में कार्यकर्ता चाहिये,व्रती कार्यकर्ताओं के भरोसे ही राष्ट्र निर्माण का भार है.
शक्ति संचय अपने लिये होता है,शक्ति का उपयोग राष्ट्र के लिये
पथ संचलन द्वारा शक्ति प्रदर्शन करना अपनी शक्ति का समय-समय पर आकलन करना हमारा कार्य है,याह शक्ति हम अपने लिये एकत्रित करते हैं तो इसका स्वयम परीक्षण हमें ही करना होगा ताकि इसे हम राष्ट्र निर्माण में लगा सकें.
सरसंघचालक जी ने इस बौद्धिक के माध्यम से मध्य प्रांत के स्वयमसेवकों को नयी उर्जा और प्रेरणा से पूरित किया,उनका उद्बोधन होने के बाद बाहर निकलते सेवकों का उत्साह अलग ही प्रदर्शित हो रहा था .