Saturday , 18 May 2024

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शिवकृपा से काम, क्रोध और लोभ पर विजय संभव

shivगया। त्रिपुरासुर नामक दैत्य का संहार अत्यंत कठिन था। उसे वरदान प्राप्त था कि उसका अंत तभी होगा जब उसके द्वारा आकाश में निर्मित तीन नगरों (पुरों) पर कोई एक ही साथ प्रहार करने में सफल हो। अंततोगत्वा यह कार्य भगवान शंकर को सौंपा गया तथा त्रिपुरासुर का संहार करने के कारण उन्हें ‘त्रिपुरारी’ कहा जाने लगा।

श्री साईं चरणानुरागी भाई डा. कुमार दिलीप सिंह ने कहा कि ‘त्रिपुर’ का आध्यात्मिक तात्पर्य काम, क्रोध और लोभ रूपी तीनों पुरों से है तथा उनमें निवास करने वाला दैत्य ‘मन’ है। मन इतना चंचल है कि कभी काम के, कभी क्रोध तथा कभी लोभ के नगर में जा बसता है। स्थिति ऐसी बन पड़ती है कि यदि एक को जीत लें तो मन दूसरे में जा फंसता है। अभिप्राय यह कि तीनों नगरों में जो छिपने वाले इस मनरूपी दैत्य पर एक साथ प्रहार होना चाहिए। अन्यथा काम, क्रोध और लोभ में से एक न एक जीवित रह जाएगा। स्पष्ट है, मात्र जीव के प्रयास से नहीं, केवल शिवकृपा से काम, क्रोध और लोभ पर विजय संभव है।

शिवकृपा से काम, क्रोध और लोभ पर विजय संभव Reviewed by on . गया। त्रिपुरासुर नामक दैत्य का संहार अत्यंत कठिन था। उसे वरदान प्राप्त था कि उसका अंत तभी होगा जब उसके द्वारा आकाश में निर्मित तीन नगरों (पुरों) पर कोई एक ही सा गया। त्रिपुरासुर नामक दैत्य का संहार अत्यंत कठिन था। उसे वरदान प्राप्त था कि उसका अंत तभी होगा जब उसके द्वारा आकाश में निर्मित तीन नगरों (पुरों) पर कोई एक ही सा Rating:
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