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 बेबाक मोदी और आतंकवाद-अध्यात्म-व्यापार | dharmpath.com

Sunday , 8 June 2025

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बेबाक मोदी और आतंकवाद-अध्यात्म-व्यापार

नरेंद्र मोदी की दूसरी अमेरिका यात्रा और संयुक्त राष्ट्र को ‘आतंकवाद’ की परिभाषा स्पष्ट न करने पर चेतावनी को जल्द ही दुनियाभर में भारत के आत्मविश्वास और विश्वगुरु बनने के एजेंडे के रूप में देखा जाएगा।

नरेंद्र मोदी की दूसरी अमेरिका यात्रा और संयुक्त राष्ट्र को ‘आतंकवाद’ की परिभाषा स्पष्ट न करने पर चेतावनी को जल्द ही दुनियाभर में भारत के आत्मविश्वास और विश्वगुरु बनने के एजेंडे के रूप में देखा जाएगा।

अब जहां-तहां, राजनीतिक-कूटनीतिक पंडित इस बयान का चीरफाड़ करेंगे और कई मायने निकालेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री का, बेबाकी भरा लहजा और आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र की 70 वर्षो की कार्यशैली को घेरना, भारत की बढ़ती साख, ताकत और स्थायी सदस्यता के लिए मानवतावादी देशों से खुले समर्थन के आह्वान की कूटनीतिक रणनीति से कम नहीं है।

इतना ही नहीं, अच्छे और बुरे आतंकवाद को लेकर संयुक्त राष्ट्र को कोसना, इशारों ही इशारों में पाकिस्तान का नाम लिए बिना सारा ठीकरा एक तरह से अमेरिका, चीन पर फोड़ना, क्या नहीं लगता कि भारत विश्व पटल पर नई ताकत बनता जा रहा है?

यूं तो प्रधानमंत्री ने इस दौरे में उपलब्धियों के लिहाज से नया कुछ भी नहीं गिनाया, लेकिन जिस दम-खम से उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के ढुलमुल रवैये का जिक्र किया, जरूर हैरान कर देने वाला रहा। शायद संयुक्त राष्ट्र के मठाधीशों ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा।

दूसरे शब्दों में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर संपन्न और ताकतवर देशों की बार-बार की टोका-टाकी, प्रधानमंत्री का आंख दिखाना और कार्यपद्धति पर ही सवाल उठाना मानवतावादी, गरीब और विकासशील देशों का झुकाव भारत की ओर करने का आह्वान ही था। शायद ऐसे बयान की उम्मीद अमेरिका को भी नहीं होगी। आतंकवाद और ग्लोबल वार्मिग को बराबर नजरिए से देखना, अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारत की बढ़ती दखल और हैसियत का परिचायक है। सच है, बिना आंतकवाद के खात्मे दुनिया में शांति कैसे आएगी?

फेसबुक मुख्यालय में प्रधानमंत्री एक अलग ही अंदाज में नजर आए। मार्क जुकरबर्ग से सार्वजनिक मंच पर बातचीत में मां और गरीबी पर उनका भावुक चेहरा, आम भारतीय-सा नजर आया। वहीं मार्क जुकरबर्ग का खुलासा कि जब फेसबुक बिकने की कगार पर थी, उनके गुरु और एपल के पूर्व सीईओ स्टीव जॉब्स की सलाह पर वह बड़ी उम्मीदों के साथ भारत आए। महीने भर मंदिर-मंदिर घूमकर वह हासिल करते रहे जिसने फेसबुक को न केवल फिर से खड़ा किया, बल्कि वह अरबों डॉलर की कंपनी बन गई। मार्क ने भारत की आध्यात्मिक ताकत को विश्वमंच पर स्वीकार, हमारी संभावनाओं के द्वार का अहसास कराया।

प्रधानमंत्री ने भी हाथों-हाथ बार-बार मंदिरों की याद दिलाकर जुकरबर्ग को फेसबुक मुख्यालय भारत में बनाने का न्योता दे दिया। जुकरबर्ग की बात में दम है, क्योंकि उपनिषद से उपग्रह तक भारत की पहुंच और पहले ही प्रयास में मंगलयान की सफलता यही बताती है। प्रधानमंत्री ने भारत की अंतरिक्ष क्षेत्र की ताकत और हैसियत का अहसास करा, धनवान देशों को भारत में निवेश का आमंत्रण भी दिया, जो कि भावी रणनीति के रूप में देखी जाएगी।

यकीनन यह बहुत बड़ी कूटनीतिक, आर्थिक मोर्चेबंदी जैसा ही है, क्योंकि भारत में स्किल्ड मैनपॉवर की लागत दूसरे विकसित-विकासशील देशों के मुकाबले लगभग आधे से भी कम है। यह भारत के विकास के लिए मील का पत्थर ही है।

हमेशा की तरह इस बार भी नरेंद्र मोदी ने नया सूत्र ‘जैम’ (जेएएम) दिया और भारत में उनकी इसकी सफलता का ब्योरा भी। ‘जे’ यानी जनधन बैंक एकाउंट, जिसमें 18 करोड़ सर्वहारा वर्ग के खाते खुले और गरीबों की दरियादिली से देश को 32 लाख करोड़ रुपये का डिपॉजिट मिला। ‘ए’ अर्थात आधार कार्ड पर फोकस किया, जिससे बायोमीट्रिक पद्धति से हर नागरिक की विशिष्ट पहचान बने और धोखाधड़ी को रोका जा सके।

‘एम’ अर्थात मोबाइल गवर्नेस जो कि तकनीकी की ताकत और तुरंत पहुंच से सबको रू-ब-रू कराना है। जिससे डिजिटल इंडिया का संजोया सपना पूरा होगा। मोदी की सोशल मीडिया की जोरदार वकालत बताती है कि इस ताकत को नकारना किसी जोखिम से कम नहीं। दुनियाभर की सरकारों के कामकाजों का यही, सही विश्लेषक है। इसी ताकत ने दुनिया में तेजी से बड़े बदलाव दिखाए। अब कुछ भी गोपनीय या देर से मिलने वाली जानकारी नहीं है। सेकेंडों में दुनिया को सब कुछ पता चल जाता है। इसलिए आने वाले समय में सरकारों के कामकाज और संचालन में महती भूमिका भी होगी।

सबसे बड़ी बात यह रही कि जहां अमेरिका में भी लोकनायक जयप्रकाश नारायण को याद कर, चुनाव के वक्त बिहार के मतदाताओं पर गहरा असर डाला, वहीं शहीद भगत सिंह को भी उनकी जयंती पर याद कर सभी को फिर भावविभोर कर अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय देने से भी नहीं चूके।

बस देखना यह है कि अब प्रधानमंत्री की बेबाकी का संयुक्त राष्ट्र पर क्या असर दिखता है। वह भी तब, जब भारत विश्वगुरु बनने की राह पकड़ चुका है।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं टिप्पणीकार हैं)

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