रांची, 3 फरवरी (आईएएनएस)। राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग के अध्यक्ष पी. एल. पुनिया ने बुधवार को राज्य के कमजोर वर्गो के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में कोताही बरतने को लेकर झारखंड सरकार की कड़ी आलोचना की।
पुनिया ने यहां एक प्रेस वार्ता में कहा, “झारखंड में अनुसूचित जातियों के खिलाफ दर्ज मामलों में सजा की दर महज 2.08 फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत 23.81 फीसदी से काफी कम है और देश में सबसे कम है। यहां तक कि इन मामलों में राज्य सर्तकता निगरानी समिति की 2007 से कोई बैठक नहीं हुई है। जबकि यह बैठक साल में दो बार करने का प्रावधान है। इस समिति के प्रमुख मुख्यमंत्री हैं।”
पुनिया ने कहा कि राज्य में कोई अनुसूचित जाति आयोग नहीं है। अनुसूचित जाति व जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून 1989 में साल 2015 में किए गए संशोधन, जिसे साल 2016 में अधिसूचित किया गया, के मुताबिक अनुसूचित जाति/जनजाति से जुड़े मामलों को देखने के लिए विशेष अदालत और समर्पित सार्वजनिक अभियोजन पक्ष होना चाहिए। साथ ही चार्जशीट दाखिल करने की समयसीमा और मामलों के निपटारे की समयसीमा होनी चाहिए। लेकिन झारखंड में इनमें से किसी भी दिशानिर्देश का पालन नहीं किया गया।”
इसके अलावा उन्होंने सरकार द्वारा अनुसूचित जाति की कल्याण योजनाओं से संबंधित आंकड़ा मुहैया कराने में नाकाम रहने पर भी नाखुशी जाहिर की। उन्होंने कहा कि एक बार हमें आयोग की बैठक इसलिए रद्द करनी पड़ी क्योंकि उनके पास आंकड़े नहीं थे। यहां तक कि आज की बैठक (बुधवार) में भी उन्होंने अनुसूचित जाति संबंधी आंकड़े जैसे मैला ढोने, बंधुआ मजदूरी, नकली एससी प्रमाणपत्र संबंधी आंकड़े नहीं दे पाए। इसके अलावा अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए चलाए गए कल्याणकारी योजनाओं का लेखाजोखा भी मुहैया कराने में झारखंड सरकार नाकाम रही है।