नई दिल्ली-पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ की गई शिकायतों पर दो साल से अधिक समय तक कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) ने हाल ही में जो कारण बताया, उसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया.
एसएलए ने दावा किया था कि चूंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में था, इसलिए कंपनी के खिलाफ आगे की कार्रवाई अदालत के आदेश/निर्णय के अधीन होगी, जबकि अदालत के आदेश में कहा गया कि इस अदालत ने ऐसे किसी भी कार्रवाई का इंतजार करने का कोई निर्देश जारी नहीं किया है.
इसी बीच, आयुष मंत्रालय ने अदालत में एक हलफनामा दायर किया जिसमें यह कहा गया कि एसएलए ने फरवरी 2022 में दायर एक शिकायत पर चेतावनी देने और कंपनी को विज्ञापन बंद करने के लिए कहने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि कंपनी ने पूरे दो सालों तक विज्ञापन देना जारी रखा.
अदालत ने आगे कहा कि भारत सरकार द्वारा राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को संबोधित दिनांक 08 मार्च, 2024 के पत्र को देखने से उसके जारी होने की तारीख से दो दिनों के भीतर उसके द्वारा की गई विस्तृत कार्रवाई प्रदान करने के लिए कहा गया है. पत्र से पता चलता है कि राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है, जैसा कि अधिनियम के तहत अपेक्षित है.
इसमें कहा गया है कि आयुष मंत्रालय को एसएलए के जवाब से पता चलता है कि कंपनी को अभी चेतावनी जारी की गई थी.
नवंबर 2023 में सुनवाई के दौरान पतंजलि ने अदालत को आश्वासन दिया था कि वह ‘औषधीय प्रभावकारिता का दावा करने वाले या चिकित्सा की किसी भी प्रणाली के खिलाफ कोई भ्रामक बयान नहीं देगी.’ हालांकि, कंपनी ने 4 दिसंबर, 2023 और फिर 22 जनवरी, 2024 को इसी तरह के विज्ञापन जारी किए.
उसके बाद फरवरी में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने विज्ञापनों के माध्यम से भ्रामक स्वास्थ्य उपचारों का प्रचार जारी रखने के लिए कंपनी के संस्थापक योगगुरु रामदेव और पतंजलि/दिव्य फार्मेसी के एमडी आचार्य बालकृष्ण को अवमानना नोटिस जारी किया. अदालत ने पतंजलि के ‘भ्रामक और झूठे’ विज्ञापनों पर कोई कार्रवाई न करने के लिए केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई थी.
शिकायतकर्ता और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) की केंद्रीय कार्य समिति के सदस्य डॉ. केवी बाबू ने कहा, ‘पतंजलि के भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ फरवरी 2022 में मेरी पहली शिकायत में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि यह ड्रग्स एंड मैजिक रेमेडीज एक्ट (डीएमआरए) की धारा 3 का उल्लंघन है, जो 54 बीमारियों और स्थितियों के लिए दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाता है. जब इसे आयुष मंत्रालय ने उत्तराखंड एसएलए को भेजा, तो उन्होंने मंत्रालय को वापस लिखा कि वे ड्रग्स और कॉस्मेटिक्स नियमों के नियम 170 के तहत कार्रवाई नहीं कर सकते क्योंकि इस पर एक अदालत ने रोक लगा दी है. जब शिकायत डीएमआरए के उल्लंघन की थी तो नियम 170 कहां से आया?’