बाबा साहब अंबेडकर, संत रविदास, जगजीवन राम व कांशीराम के जरिए दलितों को रिझाने की कोशिशें अब ज्यादा तेज हो गई हैं।
सत्ता में वापसी तय करने में जुटी सपा :
सत्ता में वापसी तय करने में जुटी सपा को दलितों में भी अपनी पैठ बढ़ाने की चिंता है। उसकी रणनीति दलितों में गैर जाटव जातियों में पासी, वाल्मीकि, खटिक, कोरी, धोबी का बड़ा समर्थन हासिल करने की है। पार्टी इन जातियों को बताना चाहती है कि बसपा सरकार में इनकी उपेक्षा हुई। पार्टी का अनुसूचित जाति जन प्रकोष्ठ प्रकोष्ठ दलित बस्तियों में बताएगा कि कैसे अखिलेश सरकार दलित वर्ग के हित में काम कर रही है।
चुनाव को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पिछले साल अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस पर रद्द सार्वजनिक अवकाश को इस साल बहाल कर दिया।
सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं, “चुनाव में आरक्षण भी एक मुद्दा रहेगा। आरएसएस के दबाव में भाजपा सरकार कब आरक्षण उलट दे, कहा नहीं जा सकता। एक ओर संघ प्रमुख आरक्षण के खिलाफ बयान दे रहे हैं, दूसरी तरफ प्रधानमंत्री अपने को अंबेडकर भक्त बताते हुए आरक्षण जारी रखने का इरादा बताते हैं। फिर भी लोग विश्वास नहीं कर रहे हैं। बिहार में क्या हुआ, दुनिया ने देखा।”
मायावती देंगी करारा जवाब :
कभी संत रविदास तो कभी बाबा साहब अंबेडकर। दलित वोटबैंक में सेंध लगाने की विरोधी दलों की लगातार चल रही कोशिशों का बसपा मुखिया मायावती 14 अप्रैल को लखनऊ में बड़ा जमावड़ा कर करारा जवाब देंगी।
बसपा दलित समाज में जन्मे संतों, गुरुओं, महापुरुषों के सम्मान में उनकी जयंती व पुण्यतिथि पर बड़े आयोजन करती रही है। बाबा साहब अंबडेकर के जन्मदिन 14 अप्रैल और परिनिर्वाण दिवस 6 दिसंबर को पार्टी हर वर्ष आयोजन करती रही है, लेकिन विधानसभा चुनाव नजदीक आने के साथ ही जिस तरह विरोधी दलों ने पार्टी के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश तेज कर दी है, उसके बाद पार्टी ने बाबा साहब के जन्मदिन पर इस बार शक्ति प्रदर्शन से जवाब देने का फैसला किया है।
बसपा के खिलाफ भाजपा छेड़ेगी जंग :
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बसपा के खिलाफ बड़ी सियासी जंग छेड़ने की तैयारी में है। दलित वोटों को लेकर बसपा के साथ होने वाले इस सियासी टकराव में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर सबसे बड़ा मुद्दा होंगे।
भाजपा 14 अप्रैल को बाबा सहेब की जयंती को अपने सभी छोटे-बड़े कार्यालयों पर प्रमुखता से मनाएगी। अंबेडकर जयंती के बहाने भाजपा मायावती और उनकी नीतियों पर हमला बोलेगी।
अंबेडकर जयंती के साथ प्रदेशभर में शुरू होने वाली भाजपा की इस मुहिम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) जैसे सहयोगी संगठन भी शामिल बताए जा रहे हैं। लेकिन भाजपा का कोई नेता यह बताने को तैयार नहीं है कि अंबेडकर को हिंदू धर्म क्यों छोड़ना पड़ा और भाजपा समर्थकों को मायावती की पार्टी ‘मनुवादी’ क्यों कहती है।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, भाजपा 10 से 20 फीसदी दलित वोटों को अपनी ओर खींचने की इस मुहिम के तहत ग्रामीण इलाकों पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित करने जा रही है।
कांग्रेस ने दलित नेताओं को आगे बढ़ाया :
लगातार 10 साल केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में दलितों के बीच नए नेतृत्व उभारने में जुट गई है। पार्टी में दलितों के बीच अच्छी पैठ रखने वाले नेताओं को आगे बढ़ाया जा रहा है।
पार्टी की ओर से हाल ही में कांग्रेस ने लखनऊ में ‘दलित नेतृत्व विकास और संवाद’ विषय पर दलित कान्क्लेव का आयोजन किया गया था। इसमें कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी शिरकत की थी। पार्टी अब उत्तर प्रदेश में दलित चेहरे के तौर पर पन्नालाल पुनिया को आगे कर रही है।
इससे पहले कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में भीम ज्योति यात्रा निकाल चुकी है। इसका मकसद कांग्रेस से दूर हो चले दलितों को फिर से पार्टी के साथ जोड़ना है।