स्वर्ग की अनुभूति कराने वाला यह ऐतिहासिक बारादरी वजीरगंज कस्बे से करीब 1 किलोमीटर दूर पश्चिम की ओर प्रवाहित कोंडर झील के तट पर बनी हुई है। इसका निर्माण नबाब आसिफुददौला ने सन् 1775 से 1785 के मध्य जमशेद बाग के रूप में कराया था। उस वक्त जमशेद बाग के अंदर मस्जिद, न्यायालय एवं अनेक भवन भी निर्माण हुए थे।
कहा जाता है कि कलांतर के 1837-7842 ई0 के मध्य मंे नबाब अमजदअली शाह ने इन धरोहरों को अपने मंत्री अमीनउद्दौला व मुंशी बकर अली को सौंप दिया। जो गुजरे वक्त के यादों के अतीत के पन्नों मे सिमटे आज अपनी दास्तां बयां कर रही है। वक्त के साथ-साथ इनका वजूद भी मिट गया।
आलम यह है कि बदहाली के चादर में सिमटे इस वक्त सिर्फ एतिहासिक बारादरी देखने को मिल रहा है। जो अपने बेबसी पर आंसू बहा रहा है। कहा जाता है कि बारादरी भवन का निर्माण अचानक अंग्रेजों के आक्रमण से अधूरा रह गया था। आसमान को छूने वाली ये इमारत आज आइनें की भांति टूटकर बिखरती जा रही है।
स्वर्ग की अनुभूति कराने वाले ऐतिहासिक बारादरी का मुख्य आकर्षण इसके दक्षिण में सीढ़ियों को स्पर्श करती कोंडर झील है, जहां नबाब आसिफुद्दौला अपनी बेगम के साथ सैर करने के लिए जाते थे। उन्होंने अपनी बेगम की याद मे एक मकबरा भी यहां बनवाया था। जो वक्त के गर्त में समा चुका है। उन दिनों बारादरी स्थित झील में लगे केवड़ों की खुशबू से जहां पूरा वातावरण महका करता था, जो आज वह स्थान शराबियों व जुआरियों का अड्डा बन चुका है।
सरकार व पुरातत्व विभाग से अभी तक जहां उपेक्षा का दंश झेल रहा था। कुछ दिनों पहले इसकी मरम्मत जरुर हुई। मगर बदरंगी का रंग इस पर आज भी चढ़ा हुआ है। दूसरी ओर, तोप के गोलों को भी झेलने वाली ऊंची चाहरदीवारी जहां से सेनाएं गोलियां बरसातीं थीं, वह भी टूटकर बिखर रही है। इतना कुछ होने के बावजूद इस स्थल का नजारा स्वर्ग की अनुभूति कराकर मन को मोह लेता है।
ऐतिहासिक बारादरी के पास ही हाल फिलहाल दुर्गा व शिव मंदिर का निर्माण करवाया गया है, जहां भक्त श्रद्धापूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। इतना ही नहीं, पास ही मां दुर्गा का पवित्र स्थान भी है, जहां आने जाने वालों का सिर खुद बखुद श्रद्धापूर्वक झुक जाता है।
स्वर्ग की अनुभूति कराने वाली कोंडर झील क निर्मल जल पर इन दिनों जलकुंभियों ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है। इसके तले दब कर झील का निर्मल जल अपना आस्तित्व खोता जा रहा है। अफसोस तो यह है कि ऐतिहासिक बारादरी की शोभा बढ़ाने वाली झील पर्यटक व पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के चलते अपने बदहाली पर सिसकियां भर रही हैं। इस पर किसी की भी नजरे इनायत नहीं हो रही है।