नई दिल्ली, 4 जून (आईएएनएस/इंडियास्पेंड)। सरकारी आंकड़े के मुतााबिक देश की कृषि विकास दर 2014-15 की आखिरी तिमाही में 0.02 फीसदी दर्ज की गई है।
नई दिल्ली, 4 जून (आईएएनएस/इंडियास्पेंड)। सरकारी आंकड़े के मुतााबिक देश की कृषि विकास दर 2014-15 की आखिरी तिमाही में 0.02 फीसदी दर्ज की गई है।
उधर 2 जून 2015 को भारतीय मौसम विभाग ने इस साल मानसूनी बारिश के अपने अनुमान में नकारात्मक सुधार करते हुए इस दीर्घावधि औसत का 88 फीसदी कर दिया। यदि यह अनुमान सही ठहरता है, तो 2015 आधिकारिक तौर पर सूखा होगा, जो मानसूनी बारिश में औसत से 10 फीसदी से अधिक कमी दर्ज करने पर घोषित की जाती है।
इसके साथ ही बेमौसमी बारिश ने भी फसल को बर्बाद किया है और इसके कारण आस्ट्रेलिया से गेहूं का आयात करना पड़ रहा है।
उल्लेखनीय है कि गत 20 साल में पांच वर्षो में कृषि विकास दर नकारात्मक रही है, जिसमें से तीन वर्ष सूखा वर्ष थे।
आम लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था के लिहाज से दो संकेतक काफी महत्वपूर्ण हैं। ये हैं अनाज उत्पादन और प्रति व्यक्ति अनाज की उपलब्धता।
गत दो दशकों में अनाज उत्पादन जहां 32 फीसदी बढ़ा वहीं आबादी करीब 42 फीसदी बढ़ी। 1994-95 से 2013-14 के बीच प्रति व्यक्ति अनाज उपलब्धता 471 ग्राम से बढ़कर 511 ग्राम हो गई है।
भारतीय कृषि लगभग पूरी तरह से मौसम पर निर्भर है और इसके कारण कृषि विकास दर में उतार-चढ़ाव काफी होता है।
किसान बन रहे हैं कृषि मजदूर :
1991, 2001 और 2011 की जनगणना रिपोर्टों से पता चलता है कि देश में किसानों की संख्या घट रही है और कृषि मजदूरों की संख्या बढ़ रही है।
इससे यह पता चलता है कि कृषि क्षेत्र में जितने लोग लगे हैं, उनमें अधिकतर भूमिहीन हैं और दूसरे के खेत में काम करते हैं।
साथ ही कृषि क्षेत्र में लगे अधिकतर लोग अकुशल होते हैं।
इस बीच यह भी उल्लेखनीय है कि देश में शहरों और गांवों के बीच का फासला 1993-94 से 2011-12 के बीच बढ़ा है।
भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम)-अहमदाबाद के एक अध्ययन के मुताबिक इस अवधि में दो स्पष्ट रुझान देखे गए हैं।
– गांवों के लिए प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) सात गुना बढ़ा है और शहरों में यह आठ गुना बढ़ा है।
– 1993-94 में शहरों का प्रति व्यक्ति जीडीपी गांवों के मुकाबले 2.3 फीसदी अधिक था, जो 2011-12 में 2.5 गुना अधिक हो गया है।
इस बढ़ते फासले से यह स्पष्ट है कि देश में जहां आर्थिक उत्पादकता बढ़ रही है, वहीं ग्रामीण भारत कम आय का सृजन करने वाले खेती के धंधे में फंसा हुआ है।
(एक गैर लाभकारी, जनहित पत्रकारिता मंच, इंडियास्पेंड डॉट ओआरजी के साथ एक व्यवस्था के तहत। प्रस्तुत विचार लेखक के अपने हैं।)