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कैसे परखेंगे फर्जी महामंडलेश्वरों को?सिंहस्थ में अघोरी,तांत्रिक लिखने वालों के दावों से रहे सतर्क

February 19, 2016 10:42 pm by: Category: धर्म-अध्यात्म Comments Off on कैसे परखेंगे फर्जी महामंडलेश्वरों को?सिंहस्थ में अघोरी,तांत्रिक लिखने वालों के दावों से रहे सतर्क A+ / A-

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उज्जैन- सिंहस्थ को अब कुछ ही समय बचा हुआ है ,महामंडलेश्वर की पदवी से विभूषित कई महात्मा अपना अखाड़ा उज्जैन में बनायेंगे .हम उन बनावटी महामंडलेश्वरों से किस तरह सावधान रहा जाय आपको बता रहे हैं ताकि आप अपनी अमूल्य श्रद्धा को ठगा हुआ महसूस ना कर सकें .आपको वे बातें पता होनी चाहिए जिन प्रक्रियाओं से महामंडलेश्वर बनाए जाते हैं यदि वह प्रक्रिया नहीं अपनाई गयी है तब आप समझ लीजिये की वह वो नहीं है जो अपने आप को प्रदर्शित कर रहा है.पिछले वर्षों धन के बल पर कुछ व्यापारियों ने अपने आप को महामंडलेश्वर घोषित करवा लिया.लेकिन उनका हश्र सबके सामने है .अतः यदि आप सिंहस्थ में संतों के दर्शन के उद्देश्य से जा रहे हैं तो कृपया कुछ बातों की जानकारी साथ रखिये ताकि आप ठगा ना जाएँ.अपने आप को अघोरी,तांत्रिक या किसी पदवी धारी का बाना पहने पर तुरंत विशवास ना करें पहले परख लें तब विशवास दें वर्ना पछताना पड़ सकता है.

साधू-संतों सनातन पद्धति में संन्यास ग्रहण करने की  की प्रक्रिया जटिल है और महामंडलेश्वर बनने के लिए संन्यासी होना अनिवार्य है। उन्होंने बताया कि संन्यास की प्रक्रिया दो तरीके से संपन्न कराई जाती है। पहली बाल्यकाल और दूसरी गृहस्थ आश्रम की जिम्मेदारियां पूरी करने के बाद।

गृहस्थ आश्रम से वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश के दौरान व्यक्ति को किसी अखाड़े से जुड़ना चाहिए। बड़ा अखाड़ा उदासीन के महामंडलेश्वर स्वामी हरिचेतनानंद बताते हैं कि किसी भी व्यक्ति को अखाड़ों में कम से कम 10 वर्ष तक धर्म और लोक सेवा करनी होती है। इन लोगों के आचार-व्यवहार पर अखाड़े के प्रमुख संतों की समिति नजर रखती है।

समिति के मानदंडों पर खरा उतरने के बाद अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कुंभ में विधि विधान के साथ संन्यास दीक्षा देते हैं। संन्यास दीक्षा में व्यक्ति को अपना मुंडन संस्कार व पिंडदान करना होता है। पिंडदान के बाद संन्यासी बनाने की प्रक्रिया का सबसे अहम पड़ाव है “विजयाहोम”।

इसे आचार्य महामंडलेश्वर संपादित करते हैं। इस प्रक्रिया को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। अखाड़े में वास के दौरान उस व्यक्ति को वानप्रस्थ आश्रम के नियम-कायदे का धर्म सम्मत तरीके से पालन करते हुए धर्म, शास्त्र, वेद, पुराण और अन्य धर्मग्रंथों का पठन-पाठन करना होता है।

संन्यास दीक्षा पूरी करने के बाद वह अखाड़े में फिर से सेवा कार्य करता है और इस दौरान अखाड़े के प्रमुख संतों की समिति उसके आचार व्यवहार पर नजर रखती है। इसके बाद यदि वह मानदंडों में खरा उतरता है तो समिति की सिफारिश पर उसे महामंडलेश्वर की पदवी के लिए चुना जाता है।

 

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