भोपाल, 14 सितंबर (आईएएनएस)। हादसा होता है। लोग बेमौत मारे जाते हैं। सरकारें आरोपी अधिकारियों पर कार्रवाई करने और मामले की जांच बैठाने का ऐलान कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का स्वांग करती हैं, लेकिन हालात नहीं बदलते। झाबुआ जिला विस्फोट में भी ऐसा ही रुख अपनाया जा रहा है।
भोपाल, 14 सितंबर (आईएएनएस)। हादसा होता है। लोग बेमौत मारे जाते हैं। सरकारें आरोपी अधिकारियों पर कार्रवाई करने और मामले की जांच बैठाने का ऐलान कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का स्वांग करती हैं, लेकिन हालात नहीं बदलते। झाबुआ जिला विस्फोट में भी ऐसा ही रुख अपनाया जा रहा है।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या आर्थिक मदद, अधिकारियों पर कार्रवाई और जांच का ऐलान कर सरकार स्वयं को निर्दोष साबित कर सकती है?
झाबुआ के पेटलावद में शनिवार सुबह होटल में गैस सिलेंडर फटने के बाद खनन के लिए संग्रहीत की गईं जिलेटिन की छड़ों और डेटोनेटर (विस्फोटक) में विस्फोट हुआ। इस हादसे में 88 लोग मारे गए। वहीं 100 से ज्यादा लोग अब भी अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं।
पेटलावद के विस्फोट के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न्यायिक जांच, मृतक आश्रितों को पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद और एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की। इसके साथ ही आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। वह पेटलावद का दौरा कर पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश कर हैं।
राज्य में पिछले कुछ वर्षो में हुए हादसों से सरकार कितना सबक लेती है, यह बात गृहमंत्री बाबूलाल गौर का बयान बयां करता है। बाबूलाल ने कहा, “जब कोई घटना होती है, उसके नतीजे सामने आते हैं और उसके बाद ही कार्रवाई होती है।”
सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा, “सरकार किसी हादसे से न तो सबक लेती है और न किसी हादसे को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाती है। वर्ष 2009 में सिंगरौली के औद्योगिक क्षेत्र में एक ट्रक में हुए विस्फोट में 23 लोग मारे गए थे। हादसे की जांच हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं हुआ।”
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव बादल सरोज ने कहा, “मौजूदा मुख्यमंत्री सिर्फ घोषणाएं करने तक सीमित हैं। पिछले दिनों पन्ना जिले में एक बस में आग लगी थी। बस में दो दरवाजे न होने के कारण 35 से ज्यादा लोग जिंदा जल गए थे। उस वक्त बसों में दो द्वार होना अनिवार्य कर दिया गया था, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।”
राज्य में हुए हादसों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दतिया के रतनगढ़ में मंदिर में दो हादसे हुए, जिसमें कई जानें गईं। उसके बाद चित्रकूट मंदिर में हादसा हुआ, लेकिन तब भी प्रशासन ने हालात सुधारने के लिए कोई जरूरी कदम नहीं उठाए। हर बार हादसा होता है और फिर उसे न दोहराने का संकल्प लिया जाता है, लेकिन स्थिति जस की तस रहती है।