Thursday , 9 May 2024

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तथाकथित शिक्षक समाज ‘जुगाड़ू-वृत्ति’ के वशीभूत

शिक्षा के मूलतत्व से बिखरता तथाकथित शिक्षक समाज ‘जुगाड़ू-वृत्ति’ के वशीभूत है। ऐसे जुगाड़ू शिक्षक भला भावी पीढ़ी को क्या ‘जुगाड़ू-संस्कार देंगे? उत्तर प्रदेश में ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। बेसिक शिक्षा विभाग ही नहीं, माध्यमिक, उच्च, चिकित्सा एवं प्राविधिक सहित समूचे शिक्षा जगत में जुगाड़ का बोलवाला है। ऐसे लोगों में शिक्षक-धर्म के नैतिक मूल्य दूर-दूर तक नहीं दिख रहे हैं।

शिक्षा के मूलतत्व से बिखरता तथाकथित शिक्षक समाज ‘जुगाड़ू-वृत्ति’ के वशीभूत है। ऐसे जुगाड़ू शिक्षक भला भावी पीढ़ी को क्या ‘जुगाड़ू-संस्कार देंगे? उत्तर प्रदेश में ये बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। बेसिक शिक्षा विभाग ही नहीं, माध्यमिक, उच्च, चिकित्सा एवं प्राविधिक सहित समूचे शिक्षा जगत में जुगाड़ का बोलवाला है। ऐसे लोगों में शिक्षक-धर्म के नैतिक मूल्य दूर-दूर तक नहीं दिख रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने के शिक्षामित्र की भर्ती हुई थी, जिन्हें सहायक अध्यापक बना दिया गया। साथ ही टीईटी की अनिवार्यता के साथ काउंसिलिंग के जरिये नियुक्तियां हुईं, इस समूची कवायद में जुगाड़ वृत्ति का बोलबाला रहा। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के इटावा जनपद के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विज्ञान व गणित के 182-182 शिक्षक नियुक्त हुए, साथ ही विज्ञान एवं गणित के शिक्षकों की प्रतीक्षा सूची भी जारी हुई।

एक के बाद एक सात चरणों में काउंसिलिंग हुई। यहां तमाम अभ्यर्थियों ने स्नातक-शिक्षा परीक्षण एवं टीईटी मार्क्‍सशीटों से छेड़छाड़ की और नियुक्ति की महत्वाकांक्षा सिद्ध कर ली। असफल होने वाले अभ्यर्थी प्रिया पोरवाल, विजया गुप्त, अर्चना पोरवाल उत्तम कुमार बगैरह ने शिकायत की कि चयनित 161 शिक्षकों ने टीईटी के फर्जी अंकपत्रों एवं कूट रचित मार्कशीटों का प्रयोग किया।

इस आरोप के आधार पर अभ्यर्थियों द्वारा लगाए गए टीईटी अंकपत्र के रोल नंबर की ऑनलाइन पड़ताल करने से पता लगा कि ‘बहुतेरे अभ्यर्थियों ने फेल होने के बावजूद जुगाड़ से फर्जी अंकपत्र लगाया, जिसमें वह न केवल पास दिखाए गए हैं, बल्कि प्राप्तांक भी दोगुने दर्ज हैं। तमाम ने जिस रोल नंबर की टीईटी मार्कशीट लगाई है, वह ऑनलाइन पड़ताल में किसी और के नाम की पाई गई है।’

ऐसा ही ‘हाई मेरिट’ कायम करने की जुगाड़ में माध्यमिक व स्नातक मार्कशीटों में जुगाड़ी कूटरचना की गई होगी। बहरहाल, अभ्यथियों ने ‘जुगाड़ू-वृत्ति’ का खुलकर इस्तेमाल किया।

इसके साथ ही सात चरणों में हुई काउंसिलिंग प्रक्रिया ही सवाल के घेरे में दिख रही है। काउंसिलिंग का तात्पर्य मात्र संलग्न प्रपत्रों की मूलप्रतियां देखना है, तो ठीक है, लेकिन तेजी से हो रही ई-गवर्नेस यानी डिजिटिल प्रक्रिया का इस्तेमाल नहीं किया गया। जब टीईटी के अंकपत्र ऑनलाइन देखें जा सकते हैं, लगभग सभी बोर्ड और विश्वविद्यालय के परीक्षा परिणाम भी संबंधित वेबसाइटों पर हैं, तो फिर काउंसिलिंग में अभ्यर्थियों के प्रपत्रों का सत्यापन क्यों नहीं किया गया?

टीईटी रिजल्ट मात्र 2011 का ही ऑनलाइन है, इसके बाद 2012, 2013, 2014 2015 का रिजल्ट ऑनलाइन अपडेट नहीं है, आखिर क्यों? सवाल उठता है कि क्या ‘जुगाड़ू-वृत्ति’ का लिंक हाईलेवल से है?

फिर भी कम से कम आवेदक द्वारा लगाए गए दस्तावेजों की सत्यता को जानने के लिए बोर्ड, विश्वविद्यालय एवं टीईटी प्रबंधन तंत्र से नहीं करने चाहिए? वास्तव यदि सत्यनिष्ठा से मौजूदा तैनात अथवा सेवानिवृत्त हो चुके बेसिक, माध्यमिक, उच्च, चिकित्सा एवं प्रावधिक शिक्षकों के दस्तावेजों का सत्यापन हो जाए तो ‘जुगाड़ू-संस्कार’ की जड़ों तक पहुंचा जा सकता है, साथ ही नवनियुक्तियों में पारदर्शिता रखनी परम आवश्यक है। (आईएएनएस/आईपीएन)।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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