नई दिल्ली, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को राज्यसभा सचिवालय और केंद्र सरकार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर जवाब देने को कहा, जिसमें राज्यसभा टीवी और सचिवालय में वरिष्ठ अधिकारियों की नियुक्ति में अनियमितता बरतने का आरोप लगाया गया है।
जनहित याचिका में संयुक्त सचिव स्तर के वरिष्ठ अधिकारियों और उससे ऊपर के अधिकारियों की नियुक्ति के साथ ही उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के विशेष कार्य अधिकारी और राज्यसभा टीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और मौजूदा महासचिव गुरदीप सिंह सप्पल की नियुक्ति में अनियमितता बरते जाने का आरोप लगाया गया है।
इस जनहित याचिका में राज्यसभा टीवी चैनल के सीईओ की नियुक्ति की भी जांच करने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी एवं न्यायमूर्ति आर.एस. एंडलॉ की खंडपीठ ने राज्यसभा सचिव और कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग को इस मामले में आठ जुलाई तक एक लघु हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
जनहित याचिका अधिवक्ता प्रशांत भूषण के जरिए गैर सरकारी संगठन(एनजीओ) ‘सेंटर फॉर पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन’ ने दायर की थी। इस याचिका में राज्यसभा सचिवालय (नियुक्ति के तरीके एवं योग्यता) आदेश, 2009 के खंड छह (ए) की वैधता को चुनौती दी गई है और राज्यसभा सचिवालय में 2009 के बाद हुई सभी नियुक्तियों की जांच के आदेश देने की मांग की गई है।
नियमों के अभाव का आरोप लगाते हुए याचिका में मांग की गई है कि जब तक नियम निर्धारित नहीं होते हैं तबतक राज्यसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव की नियुक्ति के लिए सरकार को लोकसभा भर्ती और एवं सेवा आदेश की शर्तो का पालन करने के आदेश दिए जाएं।
याचिका में कहा गया है, “राज्यसभा में पिछले कुछ सालों में प्रतिनियुक्ति के माध्यम से की गई सभी विवेकाधीन नियुक्तियों और राज्यसभा टीवी के सीईओ की नियुक्ति को लेकर राज्यसभा सचिवालय (नियुक्ति के तरीके एवं योग्यता) आदेश, 2009 के उल्लंघन के संबंध में जांच की जानी चाहिए।”
याचिका के मुताबिक, राज्यसभा टीवी के सीईओ सप्पल एक सरकारी चैनल के पहले गैर-नौकरशाह सीईओ हैं।
आरटीआई के जरिए मिली जानकारी के मुताबिक, राज्यसभा टीवी के सीईओ की नियुक्ति के संबंध में लोकसभा टीवी की तरह विज्ञापन जारी नहीं किए गए। याचिका में कहा गया है कि लोकसभा टीवी में नियुक्तियों के संबंध में विज्ञापन जारी होते हैं और सप्पल को बिना किसी प्रतिस्पर्धा के नियुक्त कर दिया गया।
एनजीओ ने पूर्व में सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन शीर्ष न्यायालय ने उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दाखिल करने के लिए कहा था।