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 बुंदेलखंड के हालात से ‘बेशर्म’ सरकारें बेखबर : राजेंद्र सिंह (साक्षात्कार) | dharmpath.com

Monday , 16 June 2025

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बुंदेलखंड के हालात से ‘बेशर्म’ सरकारें बेखबर : राजेंद्र सिंह (साक्षात्कार)

संदीप पौराणिक

संदीप पौराणिक

छतरपुर, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड का हाल किसी से छुपा नहीं है, यहां अधिकांश जलस्रोत सूख चुके हैं, रोजी-रोटी की तलाश में घर छोड़ चुके परिवारों के कारण गांव खाली नजर आ रहे हैं, मगर सरकारें वह नहीं कर रही हैं, जो उनके हिस्से में आता है।

ऐसे हालात देखकर स्टॉकहोम वॉटर प्राइज से सम्मानित राजेंद्र सिंह सरकारों की नीयत पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि सरकारें ‘बेशर्म’ हो गई हैं और वे यहां के हालात से बेखबर बनी हुई हैं।

जलपुरुष राजेंद्र सिंह इन दिनों देशव्यापी जल सत्याग्रह यात्रा पर हैं। वे इस यात्रा के दौरान लोगों को जल संचयन के लिए जल संरचनाओं में सुधार करने के लिए अभियान चलाने को प्रेरित कर रहे हैं। इस अभियान के दौरान वे 17 अप्रैल से अब तक बिहार के अलावा कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना के बाद बुंदेलखंड की यात्रा कर चुके हैं।

बुंदेलखंड प्रवास के दौरान उन्होंने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा, “इस इलाके में पानी के संकट के चलते जो हालात बने हैं, वे डरावने हैं। यह सब प्रकृति जनित नहीं, बल्कि मानव जनित है। बीते वर्ष बारिश कम हुई थी, मगर इतनी भी कम नहीं कि अकाल की स्थिति बन जाए। पानी रोकने के इंतजाम नहीं किए, लिहाजा अप्रैल आते-आते अधिकतर जलस्रोत सूख चुके हैं, पीने के पानी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, कई-कई किलोमीटर का सफर तय करने पर पीने का पानी नसीब हो पा रहा है।”

उन्होंने पिछले अकालों का जिक्र करते हुए कहा कि तब तो लोग धरती के पेट से पानी निकाल लिया करते थे, मगर इस बार तो धरती के भीतर से भी उन्हें पानी नहीं मिल पा रहा है। अप्रैल में यह हाल है तो मई-जून में क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है।

उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा, “बुंदेलखंड की हालत कर्नाटक, तेलंगाना और महाराष्ट्र से भी बुरी है। पहली बार अकाल के दौर में यह देखने को मिल रहा है कि लोगों को साफ पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है। पानी के संकट और रोजगार के अभाव का ही नतीजा है कि बेटे अपने बुजुर्ग मां-बाप को घरों में छोड़कर पलायन कर गए हैं। पलायन के कारण गांव खाली पड़े हैं, अगर कोई बचा है तो बुजुर्ग और बच्चे।”

बुंदेलखंड मध्यप्रदेश के छह और उत्तर प्रदेश के सात जिलों को मिलाकर बनता है। इन सभी तेरह जिलों के हालात लगभग एक जैसे हैं। दोनों राज्यों की सरकारों से राजेंद्र सिंह निराश हैं।

उनका कहना है कि ये सरकारें ‘बेशर्म’ होकर इस क्षेत्र की बदहाली की ओर से मुंह मोड़े हुए हैं। लोगों को पानी और रोजगार न दे पाना इन सरकारों की विफलता और लापरवाही दर्शाता है। उत्तर प्रदेश की सरकार ने तो गरीबों की मदद के लिए कदम उठाए हैं और जल संरचनाएं सुधारने के साथ नई जल संरचनाएं बनाने के प्रयास किए हैं, मगर मध्यप्रदेश की सरकार तो आंखों पर पट्टी बांधे बैठी है।

बुंदेलखंड के छतरपुर जिले के अचरा और टीकमगढ़ जिले के पंचमपुरा गांव के ग्रामीणों की जुबानी सुनाते हुए राजेंद्र सिंह कहते हैं कि इन गांव के लोग बता रहे हैं कि पहली बार ऐसा हुआ है जब उनके गांव के तालाबों में एक बूंद पानी नहीं बचा है।

उनका कहना है कि सरकारों से तो अब उम्मीद रही नहीं, अब तो लोगों को ही जल संरक्षण के लिए काम करना होगा, यही कारण है कि वे पूरे देश में अभियान पर निकले हैं, जिसे लोगों का समर्थन मिल रहा है और जगह-जगह तालाब गहरीकरण के लिए लोग श्रमदान करने आगे आ रहे हैं। कई स्थानों पर सामाजिक संस्थाएं, नगरीय निकाय और ग्राम पंचायतें अपनी जिम्मेदारी को समझकर उसे निभा रही हैं।

बुंदेलखंड के हालात से ‘बेशर्म’ सरकारें बेखबर : राजेंद्र सिंह (साक्षात्कार) Reviewed by on . संदीप पौराणिकसंदीप पौराणिकछतरपुर, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड का हाल किसी से छुपा नहीं है, यहां अधिकांश जलस्रोत सूख चुके हैं, रोजी-रोटी क संदीप पौराणिकसंदीप पौराणिकछतरपुर, 29 अप्रैल (आईएएनएस)। सूखे की मार झेल रहे बुंदेलखंड का हाल किसी से छुपा नहीं है, यहां अधिकांश जलस्रोत सूख चुके हैं, रोजी-रोटी क Rating:
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