संयुक्त राष्ट्र, 22 अप्रैल (आईएएनएस)। भारत के पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि पर्यावरण के मुद्दे पर भारत अब विकसित देशों को चुनौती देता है और उनके दबाव में नहीं आएगा।
जावड़ेकर ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में कहा, “पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने के मामले में हमलोग दुनिया को रास्ता दिखा रहे हैं। अब हमलोग विकसित राष्ट्रों से सवाल पूछ रहे हैं। हमलोग उनके समक्ष दीर्घजीवी उपभोग और जीवन शैली जैसे मुद्दे उठा रहे हैं।”
उन्होंने कहा कि भारत की चुनौती का परिणाम है कि जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के प्रस्तावना में दीर्घजीवी उपभोग को शामिल किया गया है। ग्लोबल वार्मिग से लड़ने के लिए यह ऐतिहासिक दस्तावेज है, जिस पर शुक्रवार को वह और 160 देशों के नेता हस्ताक्षर कर रहे हैं।
जावड़ेकर ने कहा, “दीर्घजीवी उपभोग और जलवायु न्याय जैसी दो अवधारणएं थी जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनिया के सामने जोर दकर उठाया था। इसे विश्व भर में स्वीकार भी गया है। ”
उन्होंने कहा कि इससे भारत का प्रभाव बहुत अच्छे ढंग से स्थापित हुआ है।
दीर्घजीवी उपभोग की अवधारणा से तात्पर्य धनी देशों में जीवन शैली संयमित करने से है। इन देशों की जीवन शैली का पर्यावरण पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और ग्लोबल वार्मिग की स्थिति और बदतर होती है।
जलवायु न्याय का संबंध विकसित देशों द्वारा लगातार अति उपभोग के लिए पूर्व में किए गए पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन की भरपाई से है। इसके तहत विकसित और विकासशील देशों के बीच कार्बन उत्सर्जन मामले में असमानताओं को भी शामिल किया गया है।
अक्सर विकसित देशों के रानेताओं और विदेशी मीडिया द्वारा प्रदूषण को लेकर भारत की अनुचित आलोचना की जाती थी। वे भारत को प्रदूषण फैलाने वाला तीसरा शीर्ष देश मानते हैं। इस संबंध में जब जावड़ेकर से पूछा गया कि क्या भारत दबाव में था तो जावड़ेकर ने कहा कि भारत का कार्बन उत्सर्जन अमेरिका के 10वें और ब्रिटेन के 5वें भाग के बराबर है।
उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिग और जलवायु परिवर्तन से निपटने के मामले में भारत सबसे आगे है।
जावड़ेकर ने जोर देकर कहा, “भारत ने कोयला के आयात या उपभोग पर दुनिया में सबसे अधिक छह डॉलर प्रति टन की दर से कर लगाया है। इसलिए भारत आगे है। मैंने दुनिया के 15 देशों के मत्रियों से मुलाकात की और सभी ने कर लगाने के भारतीय कदम की सराहना की।”
जावड़ेकर ने कहा कि कर से प्राप्त होने वाले छह अरब डॉलर राष्ट्रीय स्वच्छ पर्यावरण कोष में जमा होगा, जो स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन और जलवायु को स्वच्छ बनाने के लिए चिन्हित है।
उन्होंने कहा, “अगर दुनिया भर में छह डॉलर वाला कर लगता है तो आसानी से 100 अरब डॉलर की आय प्राप्त हो जाएगी।”
पर्यावरण मंत्री ने कहा कि हरित भारत और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जो संसाधन चाहिए उसे पूरा करने के लिए देश के सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों ने भी अपनी-अपनी गतिविधियों की श्रृंखला शुरू की हैं।
उन्होंने कहा कि राजमार्गो और रेलवे लाइन के किनारे वृक्षारोपण किए जा रहे हैं। गंगा पुनर्जीवन योजना के तहत गंगा नदी के डूब क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर जंगल लगाने का काम हो रहा है।
जावड़ेकर ने कहा कि निजी क्षेत्र भी वृक्षारोपण में सहयोग कर रहा है। उन्होंने कहा, “सभी प्रयासों को मिलाने से देश को हरित बनाने में मदद मिलेगी।”