नई दिल्ली, 9 अगस्त (आईएएनएस)। मेक इन इंडिया के नए मंत्र को ध्यान में रखते हुए सरकार ने तय किया है कि वह रक्षा उपकरणों का आयात तभी करेगी, जब देश में उसका निर्माण असंभव हो। सूत्रों के मुताबिक स्वदेशीकरण नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) का मूल मंत्र होगा।
नई दिल्ली, 9 अगस्त (आईएएनएस)। मेक इन इंडिया के नए मंत्र को ध्यान में रखते हुए सरकार ने तय किया है कि वह रक्षा उपकरणों का आयात तभी करेगी, जब देश में उसका निर्माण असंभव हो। सूत्रों के मुताबिक स्वदेशीकरण नई रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी) का मूल मंत्र होगा।
संशोधित डीपीपी के मसौदे पर रक्षा मंत्रालय में विचार-विमर्श जारी है और उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिाक इस माह के अंत तक इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
डीपीपी में मेक इन इंडिया पर जोर देने के लिए एक प्रस्तावना को शामिल किया जाएगा।
सूत्र ने आईएएनएस से कहा, “डीपीपी में एक प्रस्तावना होगी, जिसका मूल यह होगा कि हर उत्पाद का देश में ही डिजाइन, विकास और निर्माण होना चाहिए।”
सूत्र ने कहा, “देश में निर्माण संभव नहीं होने पर ही अंतिम विकल्प के तौर पर आयात को अनुमति दी जाएगी।”
रक्षा मंत्रालय ने मेक इन इंडिया को तहत अनेक बड़ी परियोजनाएं मंजूर की हैं और नई प्रक्रिया इसी की अगली कड़ी है।
रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि डीपीपी में 100 करोड़ रुपये की शुरुआती पूंजी के साथ प्रौद्योगिकी विकास कोष (टीडीएफ) स्थापित करने का प्रावधान होगा।
मौजूदा डीपीपी में ‘बनाओ प्रक्रिया’ के तहत घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने का प्रावधान है। अधिकारी ने हालांकि कहा कि इसका अपेक्षित परिणाम नहीं मिल रहा है
अन्य बदलाव के तहत डीपीपी में शिकायत निपटारा की प्रक्रिया तय की जाएगी। कंपनियों को काली सूची में डालने की प्रक्रिया भी संशोधित करने का प्रस्ताव है।
अधिकारी ने यह भी कहा कि ऑफसेट नीति में थोड़ा बदलाव किया जाएगा और इसे मेक इन इंडिया से जोड़ा जाएगा। इसके तहत विदेशी कंपनियों को स्पेयर पार्ट भारत में बनाने के लिए भारतीय कंपनियों से साझेदारी करने के लिए कहा जाएगा।
डीपीपी पहली बार 1992 में तैयार किया गया था। 2002 में इसमें संशोधन किया गया। इसके बाद 2003, 2005, 2006, 2008, 201 और 2013 में भी संशोधन किया गया।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने डीपीपी में संशोधन के लिए 10 सदस्यीय समिति गठित की थी, जिसने गत महीने अपनी रपट का मसौदा सौंपा है।