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रेगिस्तानी शहर में हाइड्रोकार्बन से आया बदलाव

indexबाड़मेर, 17 अक्टूबर – कभी सरकारी कर्मचारियों के लिए ‘काला पानी’ नाम से जाना जाने वाला राजस्थान का भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसा बाड़मेर जिला आज हाइड्रोकार्बन के कारण बड़े शहरों से मुकाबला कर रहा है।

हाइड्रोकार्बन भंडार की खोज और इसके तेजी से बढ़ते उत्पादन ने बाड़मेर को राज्य के मुख्य जिलों की दौड़ में पहुंचा दिया है।

इस बदलाव की यात्रा में फर्श से अर्श तक पहुंचने के लिए इस जिले को एक दशक लगा। 2004 में केयर्न इंडिया ने यहां पर मंगला तेल क्षेत्र की खोज की थी, जो देश में भूमि पर स्थित सबसे बड़ा तेल क्षेत्र माना गया। इससे पहले सरकार के सालाना आर्थिक सर्वेक्षण में बाड़मेर को ‘शून्य औद्योगिक संभावना’ वाला जिला घोषित किया गया था।

अचानक परिस्थितियों ने करवट ली और कभी धूल फांकता और सोते हुए क्षेत्र के तौर पर जाना जाने वाला बाड़मेर आज देश के महानगरों से मुकाबला कर रहा है। परिवेश के मामले में भले ही ना हो, लेकिन जमीन की कीमत और घर के किराए के मामले में जरूर यह महानगरों से मुकाबला कर रहा है।

पुराने दिनों को याद करते हुए जोधपुर के ओम प्रकाश ओझा ने बताया कि पुलिस में नौकरी करने वाले उनके पिताजी का जब बाड़मेर में तबादला किया गया तो वह दो साल उनके लिए बड़े कठिन थे। दैनिक जरूरतों की चीजें मिलना भी मुश्किल था। न ही पीने के लिए साफ पानी था और न ही रहने के लिए कोई अच्छी जगह। बाजार और परिवहन के लिए भी कुछ नहीं था।

अब वह दिन लद गए जब पानी की कमी के कारण इस जगह को काला पानी के नाम से जाना जाता था। कच्चे तेल के उत्पादन और नई तकनीक के प्रयोग से यहां की परिस्थितियों में एतिहासिक बदलाव आए हैं। अब पीने का पानी कार्ड स्वाइप करते ही एनी टाइम वाटर मशीनों से मिलने लगा है।

केयर्न इंडिया में कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी प्रमुख नीलेश जैन ने आईएएनएस को बताया कि जिस क्षेत्र में हम काम करते हैं वहां पर इस स्तर का विकास अपार संतुष्टि देता है। हम उम्मीद करते हैं कि विकास की यह यात्रा आने वाले दशकों में ऐसे ही जारी रहे।

उत्पादन शुरू होने के पांच साल के भीतर ही केयर्न के बाड़मेर तेल क्षेत्र से सरकारी खजाने को 35,000 करोड़ रुपये की आय हो चुकी है। इस ब्लॉक से कच्चे तेल के उत्पादन ने सरकार को अपने आयात भुगतान में 31 मार्च 2013-14 में 1,19,000 करोड़ रुपये कटौती करने में सहायता मिली है।

उल्लेखनीय है कि देश अपनी कुल जरूरत के 70 फीसदी कच्चे तेल का आयात करता है। घरेलू तेल उत्पादन का लगभग 25 फीसदी बाड़मेर तेल क्षेत्र से होता है।

मंगला तेल क्षेत्र की खोज ने इस क्षेत्र को सामाजिक और आर्थिक तौर पर मजबूती दी है। वो किसान जो कभी बाजरा की खेती करने के लिए बादलों का मुंह ताकते थे आज अपनी जमीन केयर्न और जिंदल समूह के जेएसडब्ल्यू को ऊंचे से ऊंचे दामों में बेच रहे हैं।

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