इस पवेलियन में ली यिंग चन्दन की लकड़ी के पट्टे पर ला स्याही से कलाकृतियां उकरने में व्यस्त थीं। जिसके बाद उन्होंने बहुत ही बारीकी से इस पर भगवान बुद्ध की छवि को बड़े ही सुंदर तरीके से उकेरा।
चीन की इस ऐतिहासिक संस्कृति पर मेले में आने वावे आगंतुकों का ध्यान आकर्षित होना लाजमी था।
एक आगंतुक आशीष ने कहा, “मुद्रण तकनीक का यह एक अनूठा तरीका है और मैं इसे अपने घर में एक स्मृति के रूप में रखूंगा।” आशीष की तरह ही पारोमिता सिंह ने भी इस तकनीक को सीखने और स्वयं के लिए इसकी एक और मुद्रण की मांग की।
ली ने बताया कि उन्होंने इस तरह के करीब 200 मुद्रण अब पुस्तक मेला शुरू होने के तीन घंटे के भीतक बेच दिए थे। उन्होंने बताया कि यह तकनीक करीब 868 ईसा पूर्व के वक्त की है। यह तकनीक तांग राजवंश के महान मुद्रण तकनीक का उचित उदाहरण है। यह तकनीक बौद्ध धर्म से जुड़ी है और इसीलिए यह भारत के लोगों के लिए काफी अर्थपूर्ण है।
इस मुद्रण तकनीक के अलावा मेले में आए लोगों का ध्यान चीन की चाय की संस्कृति ने भी खींचा। सुंदर परिधानों में खड़े आयोजकों ने चाय बनाने की प्रक्रिया को एक नृत्य के जरिए दर्शाया जा रहा है। आगंतुक यहां एक प्याली चाय भी पीते हैं और इसके पैकेट तोहफे के तौर पर घर लेकर जाते हैं।
चीन के चाय के स्टॉल पर आयोजक भारत के लोगों के लिए छह प्रकार की चाय की पेशकश कर रहे हैं।
इस साल पुरस्तक मेले में चीन ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ है और चीन ने हॉल नबंर सात में अपने पवेलियन को बेहद ही खूबसूरत तरीके से सजाया है, जिसमें कई चीनी किताबों की हिंदी अनुवाद वाली प्रतिलिपि भी मिल रही हैं।