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Saturday , 7 June 2025

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शिकायत और सरकार

शिवपाल सिंह यादव का अखिलेश यादव से दोहरा रिश्ता है, पहला रिश्ता पारिवारिक है, वह अखिलेश यादव के चाचा हैं। दूसरा रिश्ता संवैधानिक है, वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कैबिनेट के सदस्य हैं। साढ़े तीन वर्ष के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि शिवपाल अपनी पहली अर्थात चाचा वाली भूमिका को पीछे रखते हैं। वह मंत्री के रूप में अपनी भूमिका पर ही ध्यान केंद्रित रखते हैं।

शिवपाल सिंह यादव का अखिलेश यादव से दोहरा रिश्ता है, पहला रिश्ता पारिवारिक है, वह अखिलेश यादव के चाचा हैं। दूसरा रिश्ता संवैधानिक है, वह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की कैबिनेट के सदस्य हैं। साढ़े तीन वर्ष के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि शिवपाल अपनी पहली अर्थात चाचा वाली भूमिका को पीछे रखते हैं। वह मंत्री के रूप में अपनी भूमिका पर ही ध्यान केंद्रित रखते हैं।

भारतीय सामाजिक चिंतन में भतीजा भी पुत्रवत माना जाता है। शिवपाल के लिए राहत की बात यह है कि परिवार में मुखिया की भूमिका का बखूबी निर्वाह उनके बड़े भाई मुलायम सिंह यादव कर देते हैं। चाचा के लिए उस भूमिका में कुछ कहने का अवसर ही नहीं बचता।

वह यह भी जानते हैं कि कैबिनेट का सदस्य होने के कारण उनकी भी एक सीमा है। संसदीय शासन व्यवस्था में मंत्रिपरिषद सामूहिक उत्तरदायित्व के आधार पर काम करती है। ऐसे में वह सरकार को कुछ कहें भी तो कैसे। मुलायम सिंह की बात अलग है। वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनके बोलने पर सामाजिक या संवैधानिक बाधा नहीं है। इसीलिए वह समय-समय पर सरकार को झकझोरने वाली बातें कहते रहते हैं।

अब तो ऐसा लगता है कि जैसे अखिलेश यादव को सार्वजनिक मंच से उनकी बातें सुनने का अभ्यास हो गया है। मुलायम सिंह सुनाते रहते हैं, अखिलेश केवल सुनते ही नहीं हैं, मुस्कराते भी रहते हैं। उन्हें माइक पर आकर किसी योजना के उद्घाटन की तारीख भी बतानी पड़ती है।

लेकिन सार्वजनिक कार्यक्रम में चाचा शिवपाल का शिकायती अंदाज शायद अखिलेश ने पहली बार देखा था। लखनऊ में नलकूपों के लोकार्पण समारोह का अवसर था, इसमें शिवपाल ने अपनी दोनों भूमिकाओं का निर्वाह एक साथ किया। यहां वह चाचा थे और मंत्री भी। उन्होंने सरकार की शिकायत की और मंत्री के रूप में अपने कार्यो की बात भी रखी।

अखिलेश एक बार मन ही मन परेशान अवश्य हुए होंगे। सोचा होगा कि अभी तक जो पार्टी मुखिया ही सुनाते थे, अब चाचा भी मुखर हो रहे हैं। अखिलेश अपने को रोक नहीं सके। पूरी बातें धैर्य से सुनीं, फिर बोले कि आज चाचा मूड में हैं। उनके चाचा ने कहा था कि आईएएस अड़ंगेबाज और इंजीनियर कमीशनखोर हैं। वह यहीं पर नहीं रुके, कहा कि मुख्यमंत्री के विभाग ही बाधा उत्पन्न करते हैं।

समारोह में मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव दीपक सिंघल भी मौजूद थे। इनके लिए शिवपाल ने कहा कि ये अड़ंगेबाज नहीं लगते। गौर कीजिए, शिवपाल ने यह नहीं कहा कि ये अड़ंगेबाज नहीं हैं और नहीं लगते में बड़ा फर्क है। एक में गारंटी है, दूसरे में संशय है।

बताया जाता है कि शिवपाल के इस बयान की आईएएस खेमे में खूब चर्चा रही, लेकिन क्या करें, खुद मुख्यमंत्री ने इस बात को आगे बढ़ा दिया। लगे हाथ उन्होंने भी अधिकारियों पर निशाना लगा दिया। कहा कि ये आईएएस अधिकारी कुर्सी के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इतना ही नहीं, अखिलेश ने आईएएस का नया नामकरण कर दिया।

उन्होंने कहा कि आईएएस का मतलब होता है- ‘इंडीविजुअल आफ्टर सरकार।’ बताया जा रहा है कि इस समारोह के बाद आईएएस खेमे में बड़ी हलचल रही। लेकिन किसी ने खुलकर अपनी भावनाओं का इजहार नहीं किया। एक चर्चित आईएएस अधिकारी ने वाट्सएप पर इसका विरोध किया। वह कुछ समय बाद अवकाश ग्रहण करने वाले हैं।

यह संयोग था कि नलकूप लोकार्पण समारोह के अगले दिन अखिलेश और शिवपाल फिर एक मंच पर थे। लखनऊ में पंचायत भवन प्रशिक्षण केंद्र उद्घाटन के अवसर पर पिछले दिन जैसा नजारा नहीं था। इसमें माहौल बड़ा खुशनुमा था, दूर-दूर तक ना कोई तल्खी थी, न शिकवा-शिकायत।

नलकूप लोकार्पण समारोह में जहां शिवपाल की शिकायत थी कि कुछ लोग मुख्यमंत्री के कान भर देते हैं, इससे योजनाओं में विलंब हो जाता है। लेकिन इसके अगले दिन वाले समारोह में शिवपाल ने कई बार अखिलेश के कान में कुछ कहा, फिर दोनों के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर जाती थी।

यह अच्छी बात है, माहौल को सामान्य बनाए रखना चाहिए। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मुलायम सिंह यादव के द्वारा कई बार और शिवपाल यादव द्वारा एक बार उठाया गया मुद्दा बेहद गंभीर है।

दोनों लोगों के पद की अपनी-अपनी गरिमा है। सपा प्रदेश की सत्ता में है, इसलिए प्रशासन से संबंधित समस्याओं का समाधान भी उसी को करना है। इसके मद्देनजर संविधान से सरकार को पर्याप्त अधिकार मिले हैं।

सत्ता में बैठे लोगों का यह दायित्व है कि वह व्यवस्था में सुधार करे। यदि कोई आईएएस अनुचित अड़ंगेबाजी करता है, या कोई अधिकारी कमीशनखोर है, तो उसका इलाज भी सरकार को करना है। आलोचना को इसी रूप में लिया जाए तो उसके सार्थक परिणाम मिलेंगे। (आईएएनएस/आईपीएन)

(लेखक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री चर्चित स्तंभकार हैं)

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