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सहिष्णुता के लिए 5 माह लंबी शांति यात्रा (फोटो सहित)

नोएडा (उत्तर प्रदेश), 13 दिसम्बर (आईएएनएस)। देश में मौजूद तरह-तरह की समस्याओं के बीच हर रोज नई-नई समस्याएं पैदा होती जा रही हैं और साथ ही समाधान की कोशिशें भी।

नोएडा (उत्तर प्रदेश), 13 दिसम्बर (आईएएनएस)। देश में मौजूद तरह-तरह की समस्याओं के बीच हर रोज नई-नई समस्याएं पैदा होती जा रही हैं और साथ ही समाधान की कोशिशें भी।

इसी बीच सहिष्णुता और असहिष्णुता की समस्या भी आ खड़ी हुई है। देश में सड़क से संसद तक इस पर बहस जारी है। इस समस्या को सुलझाने के अलग-अलग तरीके भी सामने आए हैं -विरोध, प्रतिरोध, और सद्आग्रह भी।

इस बीच, धर्म भारती मिशन के संस्थापक स्वामी सच्चिदानंद भारती ने सड़क का रास्ता चुना है।

उन्होंने ‘त्यागार्चना शांति मिशन’ में इस समस्या का समाधान देखा है। मिशन के तहत वह इन दिनों देश की सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में शांति यात्रा पर हैं। इस यात्रा का नाम उन्होंने ‘त्यागार्चना शांति यात्रा’ रखा है। यात्रा बीते स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त को शुरू हुई थी और महात्मा गांधी की पुण्यतिथि यानी 30 जनवरी को इसका समापन होना है।

यात्रा की कड़ी में नोएडा पहुंचे सच्चिदानंद ने आईएएनएस से हुई विशेष बातचीत में कहा, “सहिष्णुता उनके अभियान का एक मुद्दा है, लेकिन सिर्फ यही अकेला मुद्दा नहीं है। आजादी के 69 वर्ष बाद भी देश में बच्चे भूखे हैं, दूसरी ओर गोदाम में अनाज सड़ रहे हैं। यह शर्मनाक है। त्यागार्चना शांति यात्रा लोगों से त्याग का आग्रह करती है। त्याग एक ऐसा उपाय है, जिसके जरिए देश क्या धरती की सभी समस्याएं सुलझ सकती हैं।”

मूल रूप से केरल निवासी स्वामी सच्चिदानंद पहले एन.वी. जॉन थे। वायुसेना में स्क्वोड्रन लीडर थे। धर्म, आध्यात्म के प्रति नास्तिकता का भाव था। लेकिन 1982 में घटी एक दुर्घटना ने उन्हें एन.वी. जॉन से स्वामी सच्चिदानंद बना दिया। उन्होंने 1990 में आचार्य परंपरा में दीक्षा ली, संन्यासी बन गए और धर्म भारती मिशन की स्थापना की।

दरअसल, दिल्ली से केरल के लिए जिस विमान पर वह सवार थे, उसमें आग लग गई थी। लेकिन ईश्वर ने उन्हें बचा लिया, ऐसा वह कहते हैं। उन्होंने 1996 में अपनी आईआरएस पत्नी की सम्मति से परिवार और संपत्ति का त्याग कर दिया।

बकौल स्वामी जी, उन्हें ज्ञान हुआ कि सबकुछ त्याग कर ही जीवन का असली सत्व हासिल किया जा सकता है। आज वह इसी ज्ञान को बांटने निकल पड़े हैं।

वह बताते हैं, “त्यागार्चना शांति मिशन का विचार 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद आया। ऐसा लगा कि लोगों को धर्म का सही अर्थ पता नहीं है। इस यात्रा के दौरान लोगों को यह अर्थ बताया जा रहा है।”

सच्चिदानंद ने दंगों के बाद मुजफ्फरनगर में रहकर शांति स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी।

उन्होंने कहा, “आजादी के बाद देश में कोई बड़ा अभियान चला ही नहीं। (महात्मा) गांधी जी का सत्याग्रह देश को आजाद कराने में सफल हुआ था। लेकिन आज सत्याग्रह उतना कारगर नहीं है। उस समय बाहरी दुश्मनों से लड़ना था, आज अंदर के, अपने भीतर के दुश्मनों से लड़ना है। आज एक बड़े आध्यात्मिक आंदोलन की जरूरत है। त्यागार्चना शांति मिशन इसी दिशा में एक पहल है।”

‘एयरफोर्स बाबा’ के नाम से मशहूर सच्चिदानंद ने शांति यात्रा के लिए उत्तर प्रदेश को चुना है। उन्होंने इस बारे में बताया, “वायुसेना में सेवा के दौरान अधिकांश समय उत्तर प्रदेश में बीता है। राज्य से लगाव है। देश की सबसे बड़ी आबादी भी यहां रहती है। समस्याएं भी बहुत हैं।”

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2013 में देश में सर्वाधिक सांप्रदायिक अत्याचार और दंगों की 250 घटनाएं उत्तर प्रदेश में घटी थीं। वर्ष 2014 में भी हिंसा की सर्वाधिक घटनाएं इसी राज्य में घटी हैं।

उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के बाद यह यात्रा देश में विस्तार लेगी।

शांति यात्रा के समन्वयक फादर आनंद ने आईएएनएस से कहा कि यह यात्रा समाज में शांति, प्रेम और सद्भावना के लिए है, सभी धर्मो, जातियों को एकजुट करने की एक बड़ी पहल है।

उन्होंने बताया कि शांति यात्रा 69वें स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त, 2015) पर वाराणसी से शुरू हुई है और इसका समापन 30 जनवरी, 2016 को लखनऊ में होगा।

शांति यात्रा में कुल 14 लोग शामिल हैं। इनमें रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी भी हैं। जगह-जगह नुक्कड़ नाटक और मंचीय नाटक (अमानत) होते हैं, गीत-संगीत, और स्वामी सच्चिदानंद लोगों को शांति यात्रा के विचार से अवगत कराते हैं।

‘अमानत’ मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘मंदिर-मस्जिद’ पर आधारित है। यह कहानी सांप्रदायिकता पर चोट करती है, सद्भाव की वकालत करती है।

यात्रा का फिलहाल चौथा चरण चल रहा है। इस दौरान उत्तर प्रदेश के मध्यवर्ती हिस्से में शांति यात्रा जारी है। यात्रा के पांचवें और अंतिम चरण में राज्य के उत्तरी और अवध क्षेत्र शामिल होंगे। लगभग पांच माह लंबी इस यात्रा को 125 से अधिक शहरों से गुजरनी है।

फादर आनंद ने बताया, “यात्रा में वे सभी क्षेत्र शामिल किए गए हैं, जहां अतीत में अधिक दंगे हुए थे। जहां धार्मिक टकराव हुए थे।”

उन्होंने कहा, “यह कोई प्रतिरोध यात्रा नहीं है, शांतियात्रा है। छोटे-छोटे त्याग पर केंद्रित है। बच्चों को भी त्याग के लिए प्रेरित किया जाता है।”

एक सवाल के जवाब में आनंद ने कहा कि “यात्रा को व्यापक समर्थन मिल रहा है। लगभग 200 संगठनों ने इसका समर्थन किया है।”

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